कश्मीर समस्या : नई रणनीति तथा कार्य योजना बनानी होगी

punjabkesari.in Friday, Apr 08, 2022 - 05:14 AM (IST)

यह वही पुरानी कहानी है। कश्मीरी पंडित तथा प्रवासी घाटी में लगातार आतंकवादियों का निशाना बन रहे हैं। गत वर्ष अक्तूबर के बाद से 4 अप्रैल का हमला कश्मीरी पंडितों पर पहला था जब आतंकवादियों ने प्रमुख व्यवसायी एम.एल. बिंंद्रू को श्रीनगर में गोली मार कर मार दिया। पुलिस अधिकारी के अनुसार प्रवासियों पर हमले के पीछे उद्देश्य उनमें डर पैदा करना तथा उन्हें घाटी से बाहर निकालना है। ऐसी सोच निश्चित तौर पर कश्मीरियों के हित में नहीं है क्योंकि केंद्र का नया दबाव घाटी में तेज विकास तथा युवा कश्मीरियों के लिए नौकरियां पैदा करना है। 

यह बिल्कुल स्पष्ट है कि वर्षों के दौरान कश्मीर में स्थिति ने चिंताजनक आयाम हासिल कर लिए हैं। ऐसा लगता है कि हाल के वर्षों में अलगाववादियों तथा आतंकवादी नेताओं को आकॢषत करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं ताकि उन लोगों के दिलों को जीता जा सके जो विद्रोही समूहों का समर्थन करते हैं। यद्यपि देश को पाकिस्तान के आई.एस.आई. काडरों के खिलाफ एक नई रणनीति तथा योजनाओं की जरूरत है जो जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी शक्तियों की मदद तथा उनको बढ़ावा दे रहे हैं। 

व्यापक परिदृश्य तथा भू-राजनीतिक बाध्यताओं के मद्देनजर नई दिल्ली को इस्लामाबाद समर्थित आतंकवादियों पर नियंत्रण पाने तथा समस्या से प्रभावपूर्ण तरीके से निपटने के लिए एक नई रणनीति तथा कार्य योजना बनानी होगी। निश्चित तौर पर स्थिति खतरनाक है। समस्याओं के लिए कोई तैयार उत्तर नहीं हो सकता। इसके साथ ही हमें विभिन्न आतंकवादी समूहों को राष्ट्रीय राजनीति की मुख्य धारा में लाने के लिए नए उपाय खोजने होंगे। यह आसान कार्य नहीं है क्योंकि कश्मीर पाकिस्तानी नेताओं के लिए एकमात्र जुनून है। कोई हैरानी की बात नहीं कि नई दिल्ली के पाक समर्थित आतंकवाद से निपटने के प्रयास असफल हुए हैं। संभवत: उन पर विजय नहीं पाई जा सकती जिनके मुंह को खून लग चुका है या वे जिन्होंने बंदूक अथवा ग्रेनेड या महज आश्वासनों तथा खोखले वायदों या इस्लामिक उपदेशों के माध्यम से अपनी सम्पत्तियां बनाई हैं। जो जैसा है वैसा रहने दें।

नई दिल्ली को बेरोजगारों के लिए नौकरियों के अवसर पैदा करने के लिए नई स्थितियां बनानी होंगी। मेरा मानना है कि भारत को राज्य को आर्थिक दलदल से बाहर निकालने के लिए एक निश्चित योजना पर अवश्य काम करना होगा। इतना ही महत्वपूर्ण है कश्मीरी पंडितों की दयनीय स्थिति से निपटने के लिए प्रयासों में दोगुनी तेजी लाना। बहुत हो चुका। थोड़े समय के नेताओं तथा कट्टरवादियों के अल्पकालिक साम्प्रदायिक हितों के कारण इतिहास को अपने को दोहराने की इजाजत नहीं दी जा सकती। हो सकता है भारतीय सोच तथा कार्रवाई में कुछ भटकाव हो लेकिन हमारी मान्यताएं वास्तविक हैं। यदि पाकिस्तानी अपने मन को खुला रखें तथा अतीत के पूर्वाग्रहों को त्याग दें तो कश्मीर के मामले में कोई उपलब्धि हासिल की जा सकती है। 

समाधान के लिए दो महत्वपूर्ण तत्व हैं लचकता तथा व्यवहारवाद। यह आसान होगा यदि पाकिस्तानी अधिकारी कश्मीर में छद्म युद्ध को समाप्त कर दें और कट्टरवादियों तथा आतंकवादी समूहों पर नियंत्रण पा लें, जिन्होंने घाटी तथा उसके आगे के क्षेत्रों में शांति तथा  समरसता के साथ खिलवाड़ किया है। याद रखने वाला एक महत्वपूर्ण बिंदू यह है कि जम्मू-कश्मीर के सभी लोग मुसलमान नहीं हैं। इनमें लद्दाखी तथा जम्मू में हिंदुओं सहित विभिन्न सम्प्रदाय तथा समुदाय शामिल हैं, चाहे घाटी में वे कितनी भी कम संख्या में हों। 

यह भी याद रखने की जरूरत है कि कश्मीरी पंडितों को उनके घरों से इस्लामाबाद समर्थित सीमा पार आतंकवाद के कारण निकाल फैंका गया था। क्या कश्मीरी पंडित मानवाधिकारों के पात्र नहीं हैं? मानवाधिकारों तथा सामाजिक न्याय बारे बात करते हुए हम चयनात्मक नहीं हो सकते। विडम्बना से जम्मू-कश्मीर की स्थिति में कई तत्व हैं। कैसे सभी चर्चाओं में घाटी का प्रभुत्व रहता है? कैसे जम्मू तथा लद्दाख की आवाज इतनी कम सुनी जाती है। समय के साथ कश्मीरी परम्पराओं ने कट्टरवाद व आतंकवाद के कारण भारी कीमत चुकाई है।-हरि जयसिंह
 


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