विकसित देशों में वीजा प्रतिबंधों का मामला

punjabkesari.in Wednesday, May 23, 2018 - 03:20 AM (IST)

यकीनन पिछले एक वर्ष में अमरीका, आस्ट्रेलिया, सिंगापुर, ब्रिटेन और न्यूजीलैंड सहित दुनिया के कुछ देशों में उठाए गए संरक्षणवादी कदमों के तहत वीजा पर सख्ती के परिदृश्य से इन देशों में काम कर रहे भारतीय आई.टी. प्रोफैशनल्स की दिक्कतें लगातार बढ़ती गई हैं। नि:संदेह जिन विकसित देशों में विदेशी पेशेवर प्रतिभाओं के कदमों को रोकने के लिए एक के बाद एक विभिन्न वीजा संबंधी रुकावटें लगाई जा रही हैं, उनमें से सबसे ज्यादा रुकावटें अमरीका में लगाई जा रही हैं और इससे सबसे ज्यादा भारतीय पेशेवर प्रभावित हो रहे हैं। 

हाल ही में 12 मई को अमरीका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के प्रशासन ने वीजा की अवधि समाप्त होने के बाद अमरीका में रह रहे स्टूडैंट्स के खिलाफ कार्रवाई के लिए एक कठोर ड्रॉफ्ट पॉलिसी जारी की है जो कि अगस्त 2018 से प्रभावी हो जाएगी। प्रस्तावित पॉलिसी के तहत स्टूडैंट्स की गैर-कानूनी मौजूदगी की अवधि को उस दिन से गिनना शुरू कर दिया जाएगा जिस दिन से स्टूडैंट्स पढ़ाई समाप्त कर चुके होते हैं और उन्हें कोई अन्य वर्क वीजा प्राप्त नहीं हुआ हो। इससे पहले 4 मई को डोनाल्ड ट्रम्प सरकार द्वारा एच-1 बी वीजाधारकों के जीवनसाथियों के लिए कार्य परमिट हेतु दिए जाने वाले एच-4 वीजा को खत्म करने की योजना प्रस्तुत की गई है। 

वीजा संबंधी नए नियमों से अमरीका में भारतीय आई.टी. कम्पनियों के थर्ड-पार्टी सप्लायर बेस को तगड़ा झटका लगा है। यह भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि भारत की आई.टी. कम्पनियों के लिए 2017 में भी एच-1बी वीजा की संख्या कम हुई है। अमरीकी थिंक टैंक द नैशनल फाऊंडेशन फॉर अमरीकन पॉलिसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि अमरीका में वीजा नियमों में सख्ती के कारण वर्ष 2017 में अमरीका में भारतीय कम्पनियों के लिए 8468 नए एच-1 बी वीजा प्राप्त हुए, यह संख्या वर्ष 2015 की तुलना में 43 फीसदी कम है। 

नि:संदेह इस समय अमरीका में विदेशी पेशेवरों के लिए लगाए जा रहे वीजा संबंधी विभिन्न प्रतिबंधों का अभूतपूर्व विरोध हो रहा है। ऐसे विरोध के बीच अमरीका की आऊटसोर्सिंग कम्पनियों के समूह एन.ए.एम. और डेरेक्स टैक्नोलॉजी ने ट्रम्प प्रशासन पर उच्च कौशल प्राप्त विदेशी पेशेवरों के लिए जारी होने वाले एच-1 बी वीजा पर लगाए गए प्रतिबंधों के खिलाफ मुकद्दमा दर्ज कराया है। कहा गया है कि एच-1बी वीजा पर लगाई गई कई तरह की बंदिशों के कारण अमरीकी  कम्पनियों को भारी नुक्सान होगा। अमरीकी पेशेवरों को रखना भारतीय पेशेवरों के मुकाबले बहुत अधिक खर्चीला साबित होगा। साथ ही अमरीकी कम्पनियों की शोध इकाइयों में काम कर रहे विदेशी वैज्ञानिकों को शीघ्रतापूर्वक बदलना असंभव है। 

मुकद्दमा दर्ज कराते हुए यह भी कहा गया है कि अमरीकी नागरिकता और आव्रजन विभाग को नियमों में बदलाव का अधिकार नहीं है। यह अमरीकी प्रशासनिक प्रक्रिया कानून का उल्लंघन है और ट्रम्प प्रशासन के वीजा संबंधी बदलाव के फैसले से अमरीका की कम्पनियों का काम करना मुश्किल हो गया है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि अमरीका में भारतीय पेशेवरों को प्रभावित करने वाले विभिन्न तरह के वीजा प्रतिबंधों के विरोध में भारत के शुभचिंतक अमरीकी सांसदों और अमरीकी आई.टी. कम्पनियों द्वारा जोरदार अभियान चलाया जा रहा है। 

18 मई को भारतीय मूल की अमरीकी सांसद प्रमिला जयपाल के नेतृत्व में रिपब्लिकन एवं डैमोक्रेटिक पार्टी के 130 सांसदों ने गृह सुरक्षा मंत्री क्रिस्टेन नीलसन को पत्र लिखकर ट्रम्प प्रशासन से अनुरोध किया है कि वह एच-1बी वीजाधारक प्रवासियों के जीवनसाथी को दिए जाने वाले वर्क परमिट को जारी रखे। इसके साथ-साथ भारत सरकार, अमरीका में प्रभावशाली प्रवासी भारतीय, भारत के शुभचिंतक अमरीकी सांसदों, नैशनल एसोसिएशन ऑफ साफ्टवेयर एंड सॢवसिज कम्पनीज (नासकॉम) और सिलिकॉन वैली में कार्यरत फेसबुक, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी विश्वविख्यात कम्पनियों द्वारा भी एच-4 वीजा को खत्म किए जाने वाली योजना का विरोध किया जा रहा है। 

निश्चित रूप से अमरीका में कुशल पेशेवरों के कदमों को रोकने के लिए विभिन्न प्रकार के सख्त इन वीजा प्रस्तावों के कार्यान्वयन को रुकवाने हेतु विशेष प्रयासों की जरूरत होगी। इस हेतु भारत सरकार, अमरीका में प्रतिष्ठित प्रवासी भारतीय मित्रों और भारत की आई.टी. कम्पनियों के हितों के लिए काम करने वाले संगठन नैशनल एसोसिएशन ऑफ  साफ्टवेयर एंड सॢवसिज कम्पनीज (नासकॉम) द्वारा वैसे ही रणनीतिक प्रयास किए जाने होंगे, जिस तरह उनके प्रयासों के बाद 2 जनवरी, 2018 को अमरीका के डिपार्टमैंट ऑफ  होमलैंड सिक्योरिटी (डी.एच.एस.) को ग्रीन कार्ड से संबंधित एच-1बी वीजा नियमों में संशोधन के प्रस्ताव को वापस लेना पड़ा था। 

यदि वह संशोधन प्रस्ताव पारित हो जाता तो बड़ी संख्या में एच-1बी वीजा पर अमरीका में रहकर ग्रीन कार्ड का इंतजार कर रहे भारतीयों सहित अन्य देशों के आई.टी. विशेषज्ञों को बड़ा झटका लग सकता था। इस वीजा को खत्म करने के पीछे मकसद यह था कि अमरीका में काम करने वाले कुशल पेशेवरों के लिए स्व-निर्वासन का माहौल तैयार किया जाए। जिस तरह अमरीका में प्रतिभा प्रवाह पर प्रतिबंधों के खिलाफ जोरदार आवाज बुलंद हो रही है, वैसी आवाज वीजा प्रतिबंध लगाने वाले अन्य विकसित देशों में भी बुलंद हो। 

जिस तरह 130 अमरीकी सांसदों ने एच-4 वीजा को खत्म किए जाने का विरोध किया है और ट्रम्प प्रशासन पर एच-1बी वीजा पर कई प्रतिबंधों के खिलाफ  जिस तरह मुकद्दमा दर्ज किया गया है, वैसे ही परिदृश्य अन्य विकसित देशों में भी उभरकर सामने आएंगे और इससे विकसित देशों की सरकारें कठोर वीजा प्रतिबंधों से पीछे हटेंगी। इससे प्रोफैशनल भारतीय प्रतिभाओं के दुनियाभर में मौके कम नहीं होंगे तथा भारतीय पेशेवरों द्वारा भेजी गई विदेशी मुद्रा से देश लाभान्वित होगा।-डा. जयंतीलाल भंडारी


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Pardeep

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