क्या पश्चिमी प्रभाव अब समाप्त हो रहा है

punjabkesari.in Monday, Mar 20, 2023 - 06:48 AM (IST)

चीन द्वारा मध्यस्थता किए गए सऊदी-ईरान मेल-मिलाप के महत्व का पता लगाने के लिए 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद से इस संबंध के विकास को देखना उपयोगी होगा। शांति के लिए तड़पते युग में ऐसा क्रांतिकारी विकास नि:संदेह संक्रामक होगा। जिस तरह दुनिया इस विकास पर अचंभित होकर बैठी है ऐसे में पश्चिम एशिया के जर्जर हालातों के अन्य हिस्सों की मुरम्मत के लिए महत्वपूर्ण प्रयासों के संकेत दिखाई देने लगे हैं। ईरान, तुर्की और सीरिया के उप-विदेश मंत्री मास्को के लिए रवाना हुए।

तैयप एर्दोगन चारों तरफ से सौदेबाजी के लिए तैयार होंगे अगर यह मई के चुनावों में उनकी संभावनाओं को बढ़ाते हैं। यदि वह सीरिया के राष्ट्रपति बशर-अल-असद के साथ शिखर सम्मेलन के बाद प्रतियोगिता में आते हैं तो क्या यह उनके लिए तख्तापलट नहीं होगा? तीनों नेताओं की बैठक को कुछ समय के लिए टाल दिया गया है क्योंकि मास्को शी जिनपिंग की अगवानी के लिए खुद को तैयार कर रहा है।

यह सच है कि 1979 में अयातुल्ला को सत्ता में लाने वाली क्रांति ने इस्लामी दुनिया में एक तीव्र द्विधु्रवीयता का परिचय दिया है लेकिन सऊदी को जो सबसे ज्यादा ङ्क्षचतित करता था वह उनके अपने गढ़ में विकास था। लगभग उसी समय ईरान में क्रांति हो रही थी, मुस्लिम उग्रवादियों के एक समूह ने खुद को ‘अखवान’ कहा, जो अखवान-उल-मुस्लमीन (मुस्लिम ब्रदरहुड) का एक प्रकार का वेरिएंट था जिसने मक्का में इस्लाम की सबसे  पवित्र मस्जिद पर कब्जा कर लिया और मांग की कि सऊदी की सभा पवित्र तीर्थ स्थलों का नियंत्रण छोड़ दे।

तर्क यह था कि राजशाही नियंत्रण इस्लाम विरोधी था। यह अयातुल्ला की मांग के विपरीत नहीं था। इसके परिणाम भी थे। सऊदी की सभा ने खुद को ‘पवित्र तीर्थों के रखवाले’ के रूप में वॢणत करना शुरू कर दिया। शाह के अधीन भी ईरान एक शिया देश था। अयातुल्ला ने साम्प्रदायिक झुकाव से परहेज किया और इसे ‘इस्लामी संकल्प’ कहा। वाशिंगटन, यरुशलम, रियाद गठबंधन द्वारा रणनीतिक कारणों से साम्प्रदायिक विभाजन को बढ़ाया गया था।

यहूदी राज की स्थापना के बाद से फिलिस्तीनी मुद्दे का अरब जगत में असाधारण महत्व रहा है। ईरानी क्रांति के लिए यह विश्वास का एक घोषित लेख था। इसराईल के साथ कोई सामान्यकरण स्थिति पैदा नहीं हो सकती थी जब तक कि सभी फिलिस्तीनी अधिकारियों को बहाल नहीं किया जाता। सद्दाम हुसैन, मुअम्मर गद्दाफी, बशर-अल-असद (उनके जीवित रहते हुए भी उनका देश नष्ट हो गया) के साथ जो हुआ उसके बावजूद ईरानी दृढ़ता से खड़े रहे जिससे उसने इसराईल और उसके सभी समर्थकों का क्रोध अर्जित किया।

जब सऊदी अरब के किंग अब्दुल्ला 2011 की गर्मियों में एक जर्मन अस्पताल से स्वस्थ होकर लौटे तो वह इस बात से निराश थे कि अरब सिं्प्रग ने उनके 2 दोस्तों मिस्र के होस्नी मुबारक और ट्यूनीशिया के जीन-अल-अबीदीन बेन अली की जान ले ली थी। उन्होंने शपथ ली कि अब और राजशाही, शेखों और सत्तावादी शासन को गिरने नहीं दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि अमरीकियों को ‘सांप का सिर काट देना चाहिए’। किंग अब्दुल्ला की भाषा में ‘सांप’ का मतलब ईरान था। ‘सांप’ तक पहुंचने के लिए शिया ताप को कमजोर करना पड़ा।

यही वह समय था जब असद के खिलाफ विद्रोह गढ़ा और भड़काया गया। मैंने खुद अमरीकी राजदूत स्टीफन फोर्ड और उनके फ्रांसीसी समकक्ष को होम्स, हमा और डेरा में विद्रोहियों के साथ मंडराते हुए देखा है। 2015 तक अमरीकी राष्ट्रपति  बराक ओबामा और विदेश मंत्री जॉन कैरी ने प्रशांत क्षेत्र की धूरी पर कदम रखा। ईरान के साथ परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर करके वे पश्चिम एशिया में एक शक्ति संतुलन बना रहे थे। ईरान, इसराईल, सऊदी अरब, मिस्र, तुर्की क्षेत्र में शक्ति संतुलन करेंगे जिससे अमरीका प्रशांत क्षेत्र में बड़े व्यवसायी चीन के उदय में भाग लेने में सक्षम होगा।

पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने समझौते को फाड़ दिया। उनके दामाद जैरेड कुशनर ने ईरान के कट्टर दुश्मन इसराईल के सिर पर क्षेत्रीय ताज रखने में मदद की। अमरीकी नीति में असंगति थकान पैदा कर रही थी। अफगानिस्तान से अराजक अमरीकी वापसी ने दुनिया को हांफने का कारण बना दिया। अमरीकियों ने अपना दाव बदलना शुरू कर दिया। यूक्रेन में रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन को भड़काया गया और उन्हें एक लम्बे युद्ध में झोंक दिया गया। अमरीका रूस को तब तक प्रतिबंधों में जकड़ कर रखना चाहता है जब तक कि पुतिन अपने घुटनों के बल न गिर जाएं।

यह अमरीका की घोषित मंशा थी। वास्तव में इस स्तर पर फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रां ने इसे सही कहा है, ‘‘300 वर्षों के बाद पश्चिमी प्रभाव समाप्त हो रहा है।’’ कल के आधिपत्य के रूप में अमरीका दृढ़ता से कम हो गया है। जब ट्रम्प ने पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर से पूछा, ‘‘हमें क्या करना चाहिए क्योंकि चीन हमसे आगे निकल रहा है।’’ तो कार्टर की प्रतिक्रिया कुछ ऐसी थी, ‘‘1978 में वियतनाम के साथ एक संक्षिप्त संघर्ष को छोड़ कर चीन युद्ध में नहीं हारा है।’’ कार्टर निश्चित तौर पर कह रहे थे कि, ‘‘हम युद्ध में कभी समाप्त नहीं हुए।’’ -सईद नकवी


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News