अग्रिपथ योजना का मूल्यांकन कहीं राजनीतिक मजबूरी तो नहीं

punjabkesari.in Thursday, Jun 27, 2024 - 05:43 AM (IST)

जब जून 2022 में मोदी सरकार ने अचानक अग्रिपथ योजना का ऐलान कर दिया तो करीब 3 वर्षों से सेना, नौसेना और वायुसेना के लिए स्थायी भर्ती खुलने की इंतजार में बैठे नौजवान भड़क उठे और देशभर में हिंसक आंदोलन शुरू हो गए। कई चिंताजनक घटनाएं देखने को मिलीं। उस समय इस कालम के माध्यम से जोर दिया गया था कि आगजनी और देश की सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने वाली निंदनीय वारदातें किसी भी समस्या का हल नहीं। समाधान तो जन शक्ति के पास ही है मगर शर्त यह है कि इसके इरादे नेक हों। 

लोकतंत्र प्रणाली का यह कमाल है कि पूरे 2 वर्षों के उपरांत 18वीं लोकसभा के चुनावों के दौरान अग्रिवीर मुद्दे को लेकर देशभर के मतदाताओं को विशेषकर युवाओं और पूर्व सैनिक वर्ग ने इसका डट कर विरोध किया और चुनाव प्रभावित हुए। कुछेक किसान संगठनों के सर्वेक्षण के अनुसार करीब 75 लोकसभा की सीटों पर किसानों का असर दिखाई दिया। मगर वे भी जवानों को इसमें शामिल करना भूल गए। हकीकत यह है कि किसानों और जवानों ने चुनावी नतीजे प्रभावित किए। एन.डी.ए. के मुख्य सहयोगी जदयू के वरिष्ठ नेता के.सी. त्यागी और लोक जन शक्ति पार्टी (रामविलास पासवान) के चिराग पासवान ने मोदी 3.0 सरकार के गठन के समय जोर देकर कहा कि अग्रिवीरों की मुश्किलों पर विस्तार से चर्चा की जाए। 

वैसे तो कांग्रेस ने भी अपने चुनावी घोषणा पत्र में यह दर्ज किया था कि यदि उनकी सरकार बनती है तो अग्रिवीर स्कीम भंग कर दी जाएगी। राहुल गांधी ने तो राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भी इस सिलसिले में दखल देने की अपील की है। सूत्रों के अनुसार मोदी सरकार ने 10 प्रमुख मंत्रालयों के सचिवों के ग्रुप का इस मुद्दे को लेकर गठन किया है। यह ग्रुप लालफीताशाही अग्रिपथ योजना के बारे में पुनर्विचार करके स्कीम की कमियों और सुधारों के बारे में अपनी रिपोर्ट सरकार को प्रस्तुत करेगा। सरकार को यह बताया जाएगा कि हथियारबद्ध सेना में भर्ती कार्यक्रम को किस तरह से आकर्षक बनाया जाए। नौजवानों के दुख की नब्ज को पहचानने के लिए राजनीतिक नेताओं की ओर से अग्रिवीर मुद्दे के बारे में उठाया गया कदम प्रशंसनीय है पर यह कहीं राजनीतिक मजबूरी बनकर ही न रह जाए? 

बाज वाली नजर : जून 2022 में मोदी की 2.0 सरकार ने तीनों सशस्त्र सेनाओं के लिए 10/12 श्रेणी पास 17 वर्ष से 21 वर्ष तक की आयु के दरम्यिान 4 वर्षों के लिए बेहद तेजी के साथ भर्ती का सिलसिला आरंभ किया और अब तीसरे पड़ाव के लिए भर्ती जारी है। निर्धारित शर्तों के अनुसार 4 वर्षों की नौकरी के उपरांत चयनित अग्रिवीर 15 वर्ष तक सेना में सेवा निभा सकेंगे और 75 प्रतिशत छंटनी किए गए अग्रिवीरों को कुछ वर्ष वित्तीय लाभों के साथ पैरामिलिट्री या केंद्र के कुछ अन्य विभागों में आरक्षित नीति के अनुसार फिर से सेवा देने का वायदा तो किया जा रहा है मगर अग्रिवीरों के लिए नीति कोई दिखाई नहीं देती। 

पैंशन तो किसी को नहीं मिलनी और कैंटीन तथा स्वास्थ्य सहूलियतों पर भी प्रश्रचिन्ह लगा हुआ है। अग्रिवीरों को 24 सप्ताह की आरंभिक सिखलाई के उपरांत (स्थायी सैनिकों के लिए 40 से 44 सप्ताह)। उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में तैनात करना शुरू कर दिया और कुछ ने तो अपने प्राण भी न्यौछावर कर दिए। अस्थायी भर्ती वालों का वेतन 30,000 प्रति महीना और स्थायी सैनिकों को करीब 40,000, स्थायी सैनिकों के लिए 2 महीने का सालाना अवकाश और एक महीने की कैजुअल लीव मिलती है। अग्रिवीरों के लिए यह अवकाश 30 दिन का है। इस किस्म का भेदभाव राष्ट्रीय जज्बा कैसे पैदा कर सकता है? 

हमें इस बात की जानकारी है कि सेना का पुनर्गठन, सुधार और आधुनिकीकरण देश की सुरक्षा के हित में है। सेना में भर्ती, प्रशिक्षण, नियुक्ति, सेवाकाल, पैंशन-वेतन भत्ते, पूर्व सैनिकों को फिर से स्थापित करने के लिए विभिन्न विभागों के साथ जुड़े होने के कारण उनकी ओर से सुझाव लेना तो उचित है मगर अफसोस की बात यह है कि अग्रिवीर स्कीम को लागू करने के समय ‘स्टेक होल्डर’ को विश्वास में नहीं लिया गया और अभी भी सबक नहीं सीखा गया। वास्तव में बात यह है कि सरकार को सेना का पैंशन बजट खटकता है। स्कीम की राष्ट्रीय और सैन्य स्तर की त्रुटि तो यह है कि हर वर्ष तीनों सशस्त्र सेनाओं के 65000 के करीब सैनिक सेवामुक्त हो जाते हैं। 

अग्रिवीर स्कीम के अनुसार 42000 से 46000 के दरम्यिान भर्ती करने का प्रस्ताव है जिसका भाव यह है कि हर वर्ष 20000 के आसपास सेना की नफरी कम होती जाएगी। कोविड काल के समय पैंशन पर जाने वालों पर कोई रोक नहीं लगी मगर नई भर्ती बंद थी। एक अनुमान के अनुसार इस समय सैनिकों की कमी 1 लाख 50 हजार से ज्यादा है और अधिकारियों की कमी 8000 के आसपास है। रक्षा मामलों से संबंधित संसदीय स्थायी कमेटी ने फरवरी 2024 को सरकार को सौंपी रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया था कि जो अग्रिवीर लाइन आफ ड्यूटी पर मारे जाते हैं उनके परिवार को स्थायी सैनिकों की तरह पैंशन और बाकी की सहूलियतें दी जाएं। मगर यह तभी संभव हो यदि कोई राष्ट्रीय नीति बनी हो? 

नए चुने गए संसद मैंबरों को चाहिए कि संसद के सैशन के दौरान पार्टी स्तर से उठ कर तथ्यों पर आधारित अर्थपूर्ण बहस की जाए। बेहतर यह होगा कि यह विवादित स्कीम भंग कर दी जाए नहीं तो वर्ष 2026 से एक बार फिर छंटनी किए गए अग्रिवीर सड़कों पर होंगे जो समाज, सेना और देश की सुरक्षा के हित में नहीं होगा।-ब्रिगे. कुलदीप सिंह काहलों (रिटा.) 
 


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