क्या सिसोदिया वास्तव में दोषी हैं या...

punjabkesari.in Friday, Sep 09, 2022 - 05:49 AM (IST)

आम आदमी पार्टी के एक ‘भ्रष्ट’ नेता मनीष सिसोदिया को लेकर डाले जा रहे शोर-शराबे के पीछे क्या सच्चाई है? इस मामले में मैं भी उतना ही कोरा हूं जितना कि कोई अन्य सूझवान भारतीय। केवल भाजपा के कट्टर समर्थक तथा भोली-भाली जनता ही उस प्रोपेगंडा को हज्म कर सकती है जो इस व्यक्ति की आलोचना करने के लिए फैलाया जा रहा है। मगर सबूत कहां हैं? 

बंगाल के मंत्री के विपरीत, जिसके पास से करोड़ों रुपए का धन बरामद हुआ, सी.बी.आई. द्वारा सिसोदिया के कार्यालयों, घर तथा बैंक लॉकर पर की गई सर्च में कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ। ऐसा लगता है कि उनके खिलाफ आरोप यह है कि उनके तथा उनकी पार्टी द्वारा शराब की बिक्री के लिए जो नीति अपनाई गई उसने खजाने को बहुत भारी नुक्सान पहुंचाया है। यह एक ऐसा आरोप है जो विभिन्न समयों पर भारत और विश्व के किसी भी हिस्से में सरकारों तथा कार्पोरेट्स पर लगाया जा सकता है। 

प्रत्येक नीति को सोच-विचार करके लागू नहीं किया जाता। कई नीतियों का उद्देश्य अच्छा होता है लेकिन वे असफल हो जाती हैं। उदाहरण के लिए प्रधानमंत्री का नोटबंदी का निर्णय विनाशकारी था। मगर किसी भी राजनीतिज्ञ अथवा नौकरशाह को उस बड़ी गलती के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया गया। इसे शीघ्र ही एक गलती के तौर पर भुला दिया गया। मगर सिसोदिया के मामले में आरोपियों का इरादा जनता को हुए नुक्सान की भरपाई करना नहीं बल्कि एक छोटी  लेकिन उभर रही विपक्षी पार्टी के एक स्टार परफार्मर को राजनीतिक नक्षत्र से हटाना है। जब भाजपा ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जीतने में सफलता प्राप्त की तथा उसके अलावा तीन अन्य राज्यों में सरकार बनाई, एक शाम मोदी ने पार्टी के कार्यालय के बाहर निष्ठावान कार्यकत्र्ताओं की एक विजयी रैली का आयोजन किया। 

उन्होंने अपने शासन के एक महत्वपूर्ण अभियान के तहत भ्रष्टाचारियों को काबू करने का इरादा जाहिर किया। उनके समर्थकों ने बुलंद आवाज में उनको स्वीकृति दी। उन्हें बिल्कुल नहीं पता था कि उनका मतलब क्या है? यहां तक कि सूझवान पर्यवेक्षक भी उनके इरादे को नहीं भांप सके। प्रवर्तन निदेशालय की मदद से विपक्षी पार्टियों के कमजोर सूत्रों को काबू करके उनको बिखराने का अभियान शुरू किया गया। भाजपा सहित प्रत्येक राजनीतिक दल को संचालन के लिए धन की जरूरत होती है। चुनावी सफलताओं के साथ कार्यकत्र्ताओं की एक फौज भी निरंतर फैलती रही। यदि सफलता नहीं मिलती तो दल-बदलने के लिए लालच दिए जाते हैं। ऐसा करने के लिए धन की जरूरत होती है। धन के बिना किसी भी चीज को प्रभावित नहीं किया जा सकता। 

जब पार्टी ने बैलेट बॉक्स पर सफलता प्राप्त नहीं की और न ही पर्याप्त संख्या में अन्य पार्टियों के लालची विधायकों को अपने साथ जोडऩे में सफल रही तब अडिय़ल विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल करने के लिए केंद्रीय एजैंसियों की मदद ली गई। अधिकांश स्थानों पर यह तरकीब काम आई। यह महाराष्ट्र में सफल रही। मगर जहां पर इसे बहुत कठिन लगा, जैसे कि ‘आप’ विधायकों के मामले में, तो उन्हें सबक सिखाने के लिए नए रास्ते तथा तरीके तलाशे गए। मुझे हैरानी नहीं होगी यदि दिल्ली में कथित ‘शराब घोटाला’ ऐसा ही एक नया प्रयोग हो। इस वक्त कुछ भी स्पष्ट नहीं है। यह सच है कि ‘बिना आग के धुआं नहीं निकलता’, लेकिन हमने जोरदार प्रोपेगंडा के बावजूद धुएं का कोई भी संकेत अभी तक नहीं देखा। ‘घोटाले’ के संबंध में देश भर में डाले जा रहे छापों में तेलंगाना के मुख्यमंत्री की बेटी के कथित संबंध के बहुत धूमिल संकेत हो सकते हैं। 

स्वतंत्र पर्यवेक्षक यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि चूंकि तेलंगाना के मुख्यमंत्री एक ऐसा कांटा हो सकते हैं जिनसे बाद में निपटा जा सकता है, उनकी बेटी का ब्यौरा हो सकता है जो मीडिया में प्रकाशित किया गया जिसे लेकर सी.बी.आई. ने अपनी जांच शुरू की। हैरानी की बात है कि भारी धन के हेर-फेर के आरोपों के बावजूद शुरू में ई.डी. को अलग रखा गया था। गत सोमवार (5 सितम्बर) को पहली बार यह घोषणा की गई कि इस मामले में कई आरोपियों में से एक पर किए गए स्टिंग आप्रेशन में नई नीति के एक लाभार्थी ने संकेत दिया है कि केजरीवाल तथा सिसोदिया को उनका हिस्सा दिया गया। यह ऐसे ही है जैसे राफेल मामले में राहुल गांधी का मोदी को ‘चोर’ कहना। किसी ने भी उन पर विश्वास नहीं किया। मैंने तो निश्चित तौर पर नहीं। मैं सिसोदिया के बारे में बहुत अधिक नहीं जानता लेकिन मैं यह मानने से इंकार करता हूं कि केजरीवाल अपने निजी इस्तेमाल के लिए काले धन को स्वीकार करेंगे। अधिकांश राजनीतिज्ञ ऐसा धन पार्टी फंड के तौर पर ले लेते हैं। 

मीडिया में सिसोदिया मामले के बारे में पढऩे पर मेरे पुलिस अधिकारी के मन में जो एक अन्य विचार आया वह यह कि दिल्ली के आबकारी विभाग के आई.ए.एस. तथा अन्य अधिकारियों की ओर से किसी भी रिकवरी, यदि कोई है, के बारे में प्रैस को कोई ब्यौरा लीक नहीं किया गया। यह काफी असामान्य है। मुझे ऐसा लगता है कि सी.बी.आई. को वहां कुछ नहीं मिला। मुझे पता चला है कि इन दिनों आई.ए.एस. अधिकारी केंद्र में डैपुटेशन के लिए उपलब्ध नहीं होते। अब, सिसोदिया के ताजा मामले को ध्यान में रखते हुए दिल्ली राज्य के प्रशासन में नियुक्तियों से भी बचा जाएगा। अधिकारी भाजपा तथा ‘आप’ के बीच चल रहे इस झगड़े में नहीं फंसना चाहेंगे। निश्चित है कि जिस अधिकारी की भी सेवाएं ‘आप’ सरकार के लिए उपलब्ध करवाई जाएंगी, उस पर कड़ी नजर रहेगी। एक ऐसी पार्टी के साथ संबंधों, यहां तक कि आधिकारिक भी, के होने के कई जोखिम हैं जिसे मोदी तथा शाह किसी भी तरह गिराना चाहते हैं। 

भाजपा द्वारा एक अन्य खेल झारखंड में खेला जा रहा है। ऐसा बताया जाता है कि उस जन-जातीय प्रभुत्व वाले राज्य में राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को खुद को एक खनन अनुबंध देने के लिए चुनाव आयोग द्वारा दोषी पाया गया है। झारखंड के राज्यपाल ने चुनाव आयोग की जांच बारे सार्वजनिक खुलासा नहीं किया है। उन्होंने रिपोर्ट प्राप्त होने के एक सप्ताह बाद भी मुख्यमंत्री के खिलाफ कार्रवाई नहीं की है। उन्होंने अपने इरादे बारे सभी को अनुमान लगाने और मुख्यमंत्री व उनकी सहयोगी कांग्रेस को अपने लोगों को बचाने के लिए ‘रिजार्ट’ पॉलिटिक्स के लिए छोड़ दिया है। गत सोमवार को सोरेन तथा उनके व कांग्रेस के विधायकों ने विधानसभा में सोरेन द्वारा प्रस्तुत विश्वासमत जीत लिया है। निश्चित तौर पर उन्हें यह विचार केजरीवाल से मिला होगा। 

प्रिंट मीडिया में यह रिपोर्ट प्रकाशित हुई है कि झारखंड के राज्यपाल ‘मार्गदर्शन तथा निर्देशों’ के लिए दिल्ली रवाना हो गए। यदि राज्यों में इसी तरह से सरकारें चलाई जाती रहीं तो हम जनता का तो कोई अस्तित्व ही नहीं है। जब तक यह मामला सुलझ नहीं जाता सरकार अपनी गतिविधियां जारी नहीं रख सकती। मगर केंद्र में जो पार्टी है उसने सभी पार्टियों को अनुमान लगाने के लिए सभी तार खींच रखे हैं, इंतजार है तो बस चोट करने के लिए एक सही समय का।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)     


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