क्या कांग्रेस के प्रत्येक अध्यक्ष का ‘प्रधानमंत्री’ बनना जरूरी है

punjabkesari.in Sunday, Dec 10, 2017 - 12:41 AM (IST)

राहुल गांधी की कांग्रेसाध्यक्ष के रूप में पदोन्नति और वह भी गुजरात परिणामों से पहले के बारे में मैंने जानबूझ कर लिखने का फैसला किया है। जहां पहली बात मेरे इस फैसले को प्रासंगिक और धारदार बनाती है वहीं दूसरी बात इसे अप्रासंगिक बना सकती है। 

यानी कि आपके पास मेरा नुक्ता समझने के लिए बहुत ही संकरी-सी गुंजाइश है। फिर भी मैं चाहूंगा कि आप एक और चेतावनी भी इसके साथ जोड़ लें। मैं एक सैद्धांतिक प्रश्र उठा रहा हंू, मोदी को नकार नहीं रहा हंू और न ही कांग्रेस की पुष्टि कर रहा हूं। मैं ऐसा मुद्दा उठा रहा हूं जो हजारों नहीं बल्कि लाखों के दिमाग में आ सकता है-यानी कि वे 2019 में किस तरह का मतदान करेंगे। क्या राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार करने की कीमत हमें नरेन्द्र मोदी को मतदान में उखाड़ फैंकने के रूप में अदा करनी होगी? 

मैंने यह सवाल इतने कटु ढंग से इसलिए प्रस्तुत किया है ताकि उस दुविधा को रेखांकित कर सकूं जिसकी ओर मैं संकेत कर रहा हूं। ऐसे बहुत से लोग हैं जो मोदी को सत्ता से बाहर देखना चाहते हैं लेकिन सरकार के मुखिया के रूप में राहुल गांधी की कल्पना मात्र से ही दहल जाते हैं? जहां पहले को वे नापसंद करते हैं वहीं दूसरे को अपरिपक्व एवं नाकाबिल होने के कारण खतरनाक मानते हैं। 

कांग्रेस के लोगों को यह सवाल पसंद नहीं आएगा। उन्हें तो इसमें यदि कोई पूर्वाग्रह न भी नजर आए तो भी कम से कम यह अन्यायपूर्ण अवश्य महसूस होगा। फिर भी यदि वे आंखें खोलकर देखते हैं कि राहुल गांधी के बारे में कैसी अवधारणाएं हैं तो उन्हें यह अनुभूति हो जाएगी कि यह एक ऐसा मुद्दा है जिससे भागा नहीं जा सकता और 18 महीने बाद होने वाले मतदान से पहले-पहले इसका समाधान ढूंढना होगा। यदि ऐसा न हुआ तो बहुत से लोग सरकार का बदलाव चाहने के बावजूद भी कांग्रेस के पक्ष में मतदान करने की स्थिति में नहीं होंगे। 

अब मैं दूसरे नुक्ते पर आता हूं जो सम्भावित उत्तर पर कुछ प्रकाश डाल सकेगा। मैं कांग्रेस अध्यक्ष बनने के राहुल गांधी के अधिकार पर सवाल नहीं उठा रहा हूं और उनकी पदोन्नति से शायद पार्टी का भाग्योदय हो जाए। लेकिन क्या कांग्रेस के प्रत्येक अध्यक्ष का स्वत: सिद्ध ढंग से प्रधानमंत्री बनना अनिवार्य है। इंदिरा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के जमाने में कांग्रेस के कई अध्यक्ष प्रधानमंत्री नहीं बन पाए थे। इससे भी अधिक धारदार तथ्य यह है कि सोनिया गांधी  ने कांग्रेस को सत्ता तक पहुंचा दिया लेकिन स्वयं प्रधानमंत्री पद स्वीकार करने से इंकार कर दिया। क्या 2019 के चुनाव से काफी पहले सोनिया गांधी-मनमोहन सिंह जैसी व्यवस्था दोहराई जा सकेगी और उन लोगों के मन में मौजूद दुविधा दूर हो सकेगी जो सरकार में बदलाव तो चाहते हैं लेकिन कांग्रेस के लिए मतदान करने को लेकर आशंकित हैं? 

मैं यह स्वीकार करता हूं कि उस व्यक्ति को नामित करना कठिन है जो मनमोहन सिंह जैसी भूमिका अदा कर सके लेकिन फिलहाल ऐसा करने की कोई जरूरत भी नहीं। जरूरत है तो केवल इस बात की स्पष्टता की कि 2004 से 2014 तक कांग्रेस में जैसी दोहरी व्यवस्था का बोलबाला था क्या 2019 में कांग्रेस की जीत होने पर फिर से वैसी व्यवस्था बहाल हो सकती है। स्वाभाविक तौर पर राहुल गांधी के लिए यह फैसला लेना आसान नहीं होगा। वह तो इस अंधविश्वास में ही पले-बढ़े हैं कि वह प्रधानमंत्री बनेंगे और उनके खानदान की चौथी पीढ़ी सत्ता की तारें हिलाएगी। इस दृढ़विश्वास से दामन छुड़ा पाना आसान नहीं होगा लेकिन यदि वह ऐसा कर पाते हैं तो यह उनकी महानता की निशानी होगी क्योंकि वह पार्टी और देश को खुद से आगे रख रहे होंगे। 

वास्तव में उनका ऐसा करना 2004 में उनकी मां के त्याग से भी बड़ा होगा। उनकी मां के इतालवी मूल के चलते उनका इंकार न केवल समझ आने योग्य था बल्कि अनिवार्य भी था। दूसरी ओर राहुल हम सबकी तरह भारतीय मूल के नागरिक हैं। एक अन्य बात: यदि राहुल यह घोषणा करते हैं कि वह प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे तो इससे वह जादुई तथा भावनात्मक प्रभाव पैदा कर सकेंगे। चुनाव लडऩा और जीतना लेकिन पद की लालसा न करना एक ऐसी विनयशीलता को प्रतिङ्क्षबबित करेगा जो हमारे सांस्कृतिक जीवन मूल्यों में रची-बसी है। ऐसा करने से मोदी के प्रति लोगों की अवधारणाएं तक बदल सकती हैं क्योंकि राहुल के ऐसे परित्याग के समक्ष मोदी की महत्वाकांक्षा शायद सत्ता की लालसा जैसी दिखाई देगी। 

यदि मैं सही हूं तो जो सवाल मैंने उठाया था और उसके जिस उत्तर का मैंने सुझाव दिया था वह हर महीना गुजरने के बाद और भी प्रचंड रूप धारण करता जाएगा। लेकिन यह भी सम्भव है कि मेरी बात गलत हो और जिस दृष्टि से राहुल को हम देखते हैं वह शायद इतनी व्यापक रूप में बदल जाए कि 2019 से पहले हमारी आशंकाओं का निवारण हो जाए। चलो देखते हैं कि आगे क्या होता हैं।-करण थापर


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