चीन यात्रा के अनुभव और भारत से तुलना के दिलचस्प तथ्य
punjabkesari.in Saturday, Nov 01, 2025 - 05:02 AM (IST)
चीन की 10 दिन की यात्रा में यह विशाल देश बहुत अधिक देखना संभव नहीं था लेकिन सीमित समय में जो कुछ देखा और समझ में आया, उससे तुलना करने पर काफी कुछ ऐसा लगा जो समान था जैसे कि आॢथक और सामाजिक परिस्थितियां और जहां तक राजनीति की बात है तो यह कम्युनिस्ट विचारधारा पर चलने वाला देश है तथा एक ही दल के शासन का प्रतीक है।
तुलनात्मक अध्ययन: हमारा देश ब्रिटिश शासन से वर्ष 1947 में मुक्त हुआ तो चीन ने सन् 1949 में राजशाही, सामंती व्यवस्था और गृह युद्ध से मुक्ति पाई और चीनी गणराज्य की स्थापना हुई। हमारी लड़ाई एक ओर अंग्रेजों से थी तो दूसरी ओर राजा महाराजाओं के शासन से जिसकी कहानी अधिकतर अत्याचार, उत्पीडऩ और अंग्रेजी हुकूमत से मिलकर देशवासियों को गुलाम बनाए रखने की थी।
चीन में चियांग काई शेक ने देश को जोडऩे की कोशिश की तो भारत में सरदार पटेल ने सभी रियासतों को स्वतंत्र भारत में जोडऩे की कठिन भूमिका निभाई। चीन पर जापान ने आक्रमण किया और काफी प्रदेश हथिया लिए, हमारे यहां पाकिस्तान ने कश्मीर में पी.ओ.के. पर कब्जा किया और भारतीय हिस्से पर भी हमेशा से नजऱ गड़ाए बैठा है और आतंक मचाता रहता है। चीन में कुओमिंटांग या के.एम.टी. और चीन कम्युनिस्ट पार्टी ने मिलकर जापान का मुकाबला किया लेकिन 1945 में जापान की हार के बाद अलग विचारधारा होने के कारण गठबंधन तोड़ दिया जिसका परिणाम बड़े पैमाने पर गृह युद्ध से हुआ। कम्युनिस्टों ने के.एम.टी. को हरा दिया जिसका कारण किसान वर्ग का उसके साथ होना और गुरिल्ला युद्ध की तकनीक अपनाना था।
कह सकते हैं कि चीन में माओ युग और भारत में नेहरू पटेल युग का आरंभ हुआ। हमारे यहां जमींदारी प्रथा का अंत हुआ, भू-दान आंदोलन और स्वयं अपनी जमीन देने की मुहिम चली तो चीन में भूमि सुधार के नाम पर जमींदारों से जमीन छीनकर किसानों में बांटी गई। जिसने आनकानी की, उसकी हत्या या कैद में डाल दिया। उसके बाद वहां कोरियाई युद्ध हुआ तो हमने चीन और पाकिस्तान से जंग लड़ी। चीन ने सोवियत रूस शैली अपनाकर पंच वर्षीय योजना बनाई और 1954 में नया संविधान अपनाया, हमने भी 1950 में भारतीय संविधान अपनाकर देश का विकास करने की ठानी।
भूल कहां हुई : नेहरू और उनके मंत्रिमंडल ने मिलकर देश को जहां एक तरफ आधुनिक और लोकतांत्रिक व्यवस्था से विकसित करने की कोशिश की वहीं दूसरी तरफ यह भूल गए कि इन राष्ट्रीय संस्थाओं और संसाधनों का इस्तेमाल कैसे किया जाए। उन्होंने इन संस्थानों के मुखिया अपनी पार्टी से जुड़े नेताओं को बना दिया जिन्होंने लूट-खसूट और भ्रष्टाचार के नए कीॢतमान स्थापित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। नतीजे के तौर पर कुछेक अपवादों के साथ सभी पी.एस.यू. घाटे की भेंट चढऩे लगे। हमारे जो प्रतिभाशाली विज्ञानी थे, वे सी.एस.आई.आर. की प्रयोगशालाएं छोड़कर पश्चिमी देशों में डैपुटेशन या पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति पर चले गए और वहां अपने ज्ञान से उन देशों को समृद्ध और टैक्नोलॉजी संपन्न बनाने लगे। यही हश्र आई.सी.ए.आर. और उसके अंतर्गत स्थापित प्रयोगशालाओं का हुआ। खेतीबाड़ी और कृषि उपज में सुधार के लिए जो तकनीक विकसित की गईं, वे किसान तक पहुंचाने का प्रयास न होने से आज तक हम कृषि के पुराने तरीके अपना रहे हैं।
इसके विपरीत चीन ने अपने नागरिकों को आधुनिक और विज्ञानी सोच का पाठ पढ़ाया। अपनी बनाई टैक्नोलाजी के इस्तेमाल का पुख्ता इंतजाम किया और इतनी होशियारी बरती कि दुनिया को उसका सुरक्षा कवच भेदना असंभव हो गया। चीन ने दुनिया के लिए अपने दरवाजे खोले और विदेशी निवेश को बढ़ावा दिया लेकिन अपने हितों की कीमत पर नहीं। आज भी चीन आसानी से अपने यहां बसने नहीं देता लेकिन जो बस गया, वह वापस लौटने के बारे में नहीं सोचता। भारत से जो लोग वहां रेस्टोरैंट और अन्य व्यापारिक क्षेत्रों में काम कर रहे हैं, वे खुश हैं और अपने परिवार और रिश्तेदारों को यहां आने का न्यौता दे रहे हैं। अमरीका और यूरोप की जगह अब चीन प्रवासियों की मनपसंद जगह है।
भारत में नेहरू, इंदिरा और राजीव गांधी तक एक लंबे समय कांग्रेस सत्ता में रही। एक ही परिवार या उनके पिछलग्गू चांदी काट रहे थे और देश खोखला हो रहा था। एमरजैंसी में सब की बोलती बंद कर दी गई, ठीक इसी तरह चीन में भी लगभग साढ़े पांच लाख बुद्धिजीवियों को दक्षिणपंथी करार देकर लेबर कैम्पों में बंदी बना दिया। चीन में नकली कारोबार शुरू हुआ। जैसे भारत में इंस्पैक्टर राज का बोलबाला था, वैसे ही वहां भी विकास के झूठे आंकड़े पेश किए जाने लगे और भ्रष्टाचार का बोलबाला। गरीबी, भुखमरी इतनी बढ़ी कि हाहाकार मच गया। विकास की तेज रफ्तार: चीन में बुलेट ट्रेन और मैगलीवी ट्रेन ने देश की कायापलट कर दी।
सड़कों, पुलों का जाल बुना। रेल यात्रा के दौरान कल कारखानों की कतार और बहुमंजिला इमारतें दिखाई देती हैं जो इसकी भव्यता दर्शाती हैं। 2010 में चीन ने अर्थव्यवस्था के मामले में जापान को पीछे छोड़ दिया। 2013 तक हाई स्पीड रेल नैटवर्क बना। भ्रष्टाचार के लिए 15 लाख अधिकारियों को सजा दी जिनमें कई बड़े जनरल थे। जहां तक भारत की बात है, 2014 से भाजपा या एन.डी.ए. की सरकार है और इसने देश को सुस्ती से मुक्ति दिलाने में अहम योगदान किया है लेकिन चीन से तुलना करने पर लगता है कि इतना काफी नहीं है और जिस गति से काम होना चाहिए, वह धीमी है।-पूरन चंद सरीन
