भारतीय लोकतंत्र किसी की जागीर नहीं
punjabkesari.in Saturday, Feb 19, 2022 - 07:04 AM (IST)

भारत की दूषित राजनीतिक संस्कृति में आमतौर पर आजकल ये सवाल उठाए जाते हैं कि देश के मामलों को समझने में हमारे नेता कहां गलती कर बैठे हैं? हम निरंतर ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के राजनीतिक प्रबंधन में एक बहाव की स्थिति देख रहे हैं? बेशक मोदी देश के मामलों को चलाने में कमियों के होने के लिए स्वीकार नहीं करेंगे मगर निरपवाद रूप से वे अपने आप को जीवन के ढांचे से बड़ा समझते हैं।
आजकल प्रशासन के बल को सत्ता या फिर राजनीतिक स्वार्थों, निजी फायदों के साधन के तौर पर इसका इस्तेमाल किया जाता है। सिस्टम को इस तरह से लूटना आमतौर पर लोगों की आंखों में प्रशासन की निरकुंशता ही माना जाता है। खेद है कि लोगों की भलाई की अवहेलना इस तरह से होती है। प्रशासन की प्रणाली में क्रियाशील फर्क भी उत्पन्न होते हैं। सत्ता का प्रयोग निरपवाद रूप से निजी फायदों के लिए किया जाता है तथा सरकारी तंत्र सरकारी पैसे का इस्तेमाल अपने आपको बढ़ाने के लिए करता है। निश्चित तौर पर यह विचलित करने वाली बात है। इस संदर्भ में कहा गया है कि भारतीय लोकतंत्र किसी की जागीर पर नहीं चल सकता। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने निरंतर इस मूल तथ्य को अपने दिमाग में रखा हुआ है।
यह सराहनीय है कि राजनीतिक संस्कृति आजकल अपनी ताकत जमीनी स्तर या फिर समाज के मूल्य आधारित घटकों से पैदा नहीं की जा सकती बल्कि यह तो बाहुबली, स्मगलर तथा तेज गति से आगे बढ़ रहे राजनेताओं के बल पर आगे बढ़ रही है। देश के लोकतांत्रिक सिस्टम और हमारे लोगों की अच्छाई के लिए लाए जाने वाली पारदॢशता के लिए भी यह एक वास्तविक चुनौती है। आने वाले वर्षों के दौरान सुनामी जैसी राजनीतिक उथल-पुथल वाली लहरों के लिए यही एकमात्र रास्ता है।
देश की राजनीतिक दीवार पर चुनौती स्पष्ट दिखाई पड़ती है। मगर समस्या यह है कि सिद्धांतों तथा पदार्थों वाले नेताओं की कमी है जो जरूरी सुधारों के बाद चीजों को आगे की ओर ले जाना चाहते हैं। यह सराहना करने की जरूरत है कि आज देश को अच्छी किस्म के राजनीतिक नेतृत्व की जरूरत है जो निजी हितों को नहीं बल्कि संस्थान के हितों की सोचे। देशवासियों के लिए जो एक उदाहरण ही नहीं बल्कि एक माडल को स्थापित करने की सोचे।
हमारे समक्ष एक उचित सवाल यह है कि कैसे प्रत्येक पार्टी सत्ता को छोटी अवधि का वोट बैंक समझती है? प्रत्येक नेता हर मुद्दे के लिए अपने आपको पार्टी तथा राष्ट्रीय हितों से पहले रखता है। ऐसी अवधारणा को सुधारने की जरूरत है। देश में प्रशासन की गुणवत्ता में अनेकों ही गैप हैं। प्रशासनिक ढांचा खामियों वाला तथा गैर-जिम्मेदार है। राजनीतिकरण हो चुका है तथा नौकरशाह उचित निर्देश को उपलब्ध करवाने में असफल रहे हैं। मूल समस्याओं को समझने के लिए देश को आज एक नई डील की जरूरत है। हम आशा करते हैं कि पंजाब के नेता उस सबक को याद रखें जो उन्होंने उग्रवाद के दिनों से सीखा था।
यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि क्या अभी तक कुछ उचित सबक सीखे गए हैं? हमारे सिस्टम को देखते हुए मैं ऐसा नहीं समझता। नए परिदृश्यों को दिमाग में रखते हुए राजनीतिक प्रबंधन ज्यादा ठोस हो गया है जोकि हमने हालिया वर्षों के दौरान देखा है। वर्तमान स्थापना में पंजाब राज्य राजनीति की गुटबाजी बर्दाश्त नहीं कर सकता। पंजाब के राजनीतिक नेताओं से आशा की जाती है कि वे भाईचारे को याद रखें जिसने हिंदुओं और सिखों को एक साथ जोड़े रखा क्योंकि दोनों की विरासत, पर पराएं, संस्कृति तथा पारिवारिक रिश्ते एक जैसे थे।
भाईचारे को आगे और सुदृढ़ करने की जरूरत है। पंजाब में दो रास्तों की तरफ देखा जाना चाहिए। एक तो ‘जैसे को तैसा’ वाला दृष्टिकोण जिसके तहत पापियों को उनकी पूर्व के लिए कभी भी ब शा न जाए कि न ही उनकी बातों को भूला जाए। दूसरा यह कि एक मानवीय तथा सुधारवादी दृष्टिकोण अपनाया जाए जिसके तहत व्यक्ति को अपने पूर्व के कार्यों को बदलने की अनुमति हो तथा वह एक स य चीजों को गले लगा लें।
हमारे नेता हमारे महान गुरुओं, संतों, स्वामियों तथा फकीरों की शिक्षाओं तथा उनके संदेशों से भली-भांति परिचित हैं। अपने दिमागी विकास और निजी विचारों के लिए दैवीय विचारों को अपनाया या फिर उन्हें रद्द किया जा सकता है। वर्तमान में पंजाब बंदूक के शासन से दूर होते हुए लोकतांत्रिक तथा मानवीय बदलाव देख रहा है। दशकों तक ऐसी बातों ने पंजाब को तबाह किया था। यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है। एक विशाल राष्ट्रीय ढांचे में यह कहा जाना चाहिए कि उग्रवाद तथा आतंकवाद की समस्या को दृढ़ता और रणनीति से निपटा गया है। पंजाब में हिंसा के बाद लोकतांत्रिक बलों को सफलता मिल सकती है। पंजाब की राजनीति राष्ट्रीय राजनीति की मु य धारा में फिर से लौटेगी। राष्ट्रीय राजनीति के ये सकारात्मक चिन्ह हैं।-हरि जयसिंह