क्या भारत फिर ‘सोने की चिडिय़ा’ बन पाएगा

punjabkesari.in Monday, Oct 10, 2016 - 01:39 AM (IST)

(आकार पटेल): हमें आमतौर पर बताया जाता है कि भारत में किसी समय आर्थिक तौर पर स्वर्णकाल था। एक ऐसा समय जब उपमहाद्वीप का वैश्विक अर्थव्यवस्था में बड़ा हिस्सा था जो संभवत: आज के 3 प्रतिशत से भी कम के मुकाबले वैश्विक जी.डी.पी. में 20 से 25 प्रतिशत तक। क्या हम फिर इसे प्राप्त कर सकते हैं? यदि ऐसा है तो इसके लिए क्या करना होगा? 

हम कुछ उन देशों पर नजर डालते  हैं जो समय के साथ महान शक्तियां बन गए ताकि समझ सकें कि भारत के लिए किस चीज की जरूरत है। पहली महान शक्ति थी 2500 वर्ष पूर्व पर्शिया और यह विश्व पर अपना प्रभाव डालने मेें सक्षम था। 

पर्शिया के पारसी राजाओं का कंधार से लेकर तुर्की तक साम्राज्य था। इतिहासकार हेरोडोट्स का कहना है कि 479 बी.सी. में हुए प्लाटेआ के युद्ध में पारसी राजा जेरक्सेस ने यूनान की सेना का नेतृत्व किया था, जिसमें भारतीय सैनिक शामिल थे, जो संभवत: पंजाब से थे। 

प्राचीन यूनानी अपने साहित्य में पर्शियन राजाओं को हमेशा ‘महान’ (ग्रेट) कहकर संबोधित करते थे। विश्व की दूसरी महान शक्ति थी सिकंदर महान। मकदूनिया के योद्धा को उनकी उपलब्धियों के कारण ‘महान’ नहीं कहा जाता, उन्हें इसलिए ऐसा कहा जाता है क्योंकि उन्होंने डारियस द ग्रेट को हराया था और उनसे यह खिताब लिया था। 

तीसरी शक्ति थी रोमन साम्राज्य, जो पहले पूरे इटली में फैला और फिर फ्रांस, स्पेन तथा अधिकतर यूरोप में और सुदूर पूर्व में फिलस्तीन में भी। जूलियस सीजर रोमन साम्राज्य को ब्रिटेन ले गए, मगर रोम एक नौसैनिक शक्ति नहीं थी। मुस्लिम, जो चौथी प्रमुख वैश्विक शक्ति थे, उनमें कई देश शामिल थे। अरबों ने उत्तरी अफ्रीका (जिस कारण मिस्री लोग अरबी बोलते हैं) तथा स्पेन के कुछ हिस्से पर विजय हासिल की, मगर वास्तव में सशक्त मुस्लिम शक्तियां थे तुर्क, पर्शियन, मध्य एशियाई तथा अफगान। 

मुस्लिम देश भी नौसैनिक शक्ति नहीं थे। दरअसल यूरोपियन शक्तियों का बहुत बड़ा प्रभाव था, तब भी जब औरंगजेब का पूरे उत्तर भारत पर प्रभुत्व था। यह इस कारण कि शाही लोगों को हज के लिए मक्का जाने के लिए समुद्र का सफर करना पड़ता था और जल पर यूरोपियनों का नियंत्रण था।  

15वीं शताब्दी में स्पेन, पुर्तगाल, इंगलैंड, डच तथा फ्रांस जैसी बस्तीवादी ताकतों को उभरते देखा। उनमें समान बात क्या है? वे सभी अटलांटिक के किनारे बसे हैं जो एक कठिन महासागर है। इसे पार करने के लिए मजबूत तथा बड़े जहाजों की जरूरत थी जिन पर उच्च गुणवत्ता वाले कपड़े से बनी पाल  लगी होती थी। केवल इसी के तट पर बसे देशों को इन्हें बनाने में महारत हासिल थी। चूंकि जहाज बड़े थे, वे  शक्तिशाली तथा भारी तोपें ले जाने में सक्षम थे। यही कारण था कि ये देश समुद्र पार करने और अमेरिकन देशों को अपनी बस्तियां बनाने में सक्षम थे और यही कारण है कि जर्मनी, रूस, इटली तथा अन्य प्रमुख यूरोपियन देश जो अटलांटिक के किनारे नहीं बसे हैं, बड़ी बस्तीवादी ताकतें नहीं बन सके। 

क्या भारत किसी शताब्दी में एक महान ताकत था? विश्व की कुल जी.डी.पी. में भारत का 5वां हिस्सा था और इसका एकमात्र कारण यह था कि उपमहाद्वीप में विश्व की जनसंख्या का 5वां हिस्सा रहता था। इतिहास में उस समय लगभग हर कोई एक कृषक था, उनके कुछ मूलभूत निर्माण थे जैसे कि बर्तन तथा कपड़ा, मगर अधिकतर आर्थिक उत्पादन व्यक्तियों की मजदूरी पर निर्भर करता था। जितने अधिक किसी देश अथवा क्षेत्र में लोग थे उतना ही बड़ा उसका हिस्सा वैश्विक जी.डी.पी. में था। 

15वीं शताब्दी के बाद और विशेषकर न्यूटन, हूके तथा बोयल के नेतृत्व में यूरोप में वैज्ञानिक क्रांति के बाद हम पिछड़ गए। ये यूरोपियन देश ही थे जो आर्थिक रूप से आगे बढ़े  और हम वहीं के वहीं रह गए। उस समय से वही आर्थिक रूप से शक्तिशाली देश विश्व को प्रभावित करने में सक्षम थे, जिनमें अमरीका भी शामिल था। आज महज बड़ी सेनाओं और यहां तक कि परमाणु हथियारों से सम्पन्न होना ही एक महान शक्ति बनना सुनिश्चित नहीं करता, अन्यथा उत्तर कोरिया और पाकिस्तान महान शक्तियां होते। 

आधुनिककाल में वही देश महान बनने में सक्षम हैं जो स्वास्थ्य तथा शिक्षा की मूलभूत स्थितियां उपलब्ध करवाते तथा एक प्रभावी राज्य के तौर पर काम करते हैं। जापान, कोरिया तथा अभी हाल ही में चीन इन स्थितियों को अपनाने में सफल रहे हैं। 
भारत का अभी इन पर ध्यान नहीं है, मगर मेरी राय में सरकार भी आम तौर पर निष्प्रभावी है। यहां तक कि 2016 में राष्ट्रविरोधी नारों, पड़ोसियों के साथ झड़पों तथा संस्कृति व पहचान के मुद्दों को लेकर राष्ट्र अपने लक्ष्य से भटका है। स्वास्थ्य तथा शिक्षा पर तीक्ष्ण तथा कड़ा लक्ष्य लापता है। 

इसके साथ ही न्याय प्रदान करने तथा कानून को लागू करने की क्षमता  भी गायब है। भारत की सरकारें तो देश के प्रभाव की मूलभूत स्थितियां भी उपलब्ध नहीं करवा सकीं। सामूहिक हिंसा तथा हत्याएं सामान्य बात है और इसका कोई असर नहीं पड़ता कि कौन सी सरकार सत्ता में है। जब तक हमें ये मूलभूत अधिकार नहीं मिल जाते, एक महान शक्ति बनने की ओर हमारा सफर धीमा रहेगा।


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