इंडिया या भारत : नाम में क्या रखा है

punjabkesari.in Thursday, Sep 07, 2023 - 05:50 AM (IST)

अंग्रेजी के नाटककार विलियम शेक्सपीयर ने लिखा था कि ‘नाम में क्या रखा है’। जिसे हम गुलाब कहते हैं किसी भी अन्य नाम से उसकी खुशबू उतनी ही मीठी होगी। यह सही हो सकता है लेकिन जब देशों के नामकरण की बात आती है तो कई और विचार हो सकते हैं। देश का नाम बदल कर भारत करने के बारे में मौजूदा बहस कोई नई नहीं है, भले ही इसके समय और संदर्भ ने देश का नाम भारत रखने के वास्तविक सवाल पर छाया डाल दी है। नव स्वतंत्र राष्ट्र के लिए अपनाए जाने वाले नाम पर संविधान सभा में भी लम्बी बहस हुई जिसके बाद अंतत: यह कहने का निर्णय लिया गया कि  ‘इंडिया जोकि भारत है राज्यों का एक संघ होगा’। 

सेठ गोविंद दास सहित कई सदस्यों ने देश के नाम के रूप में भारत को प्राथमिकता दी थी। एक अन्य सदस्य हरगोविंद पंत ने कहा कि उत्तर भारत में लोग ‘भारत वर्ष’ नाम पसंद करेंगे और इसके अलावा कुछ नहीं। उन्होंने कहा कि इंडिया नाम विदेशियों द्वारा दिया गया था जिन्होंने हमारे देश पर हमला किया था और इसे अपने अधीन कर लिया था। उन्होंने कहा कि अगर हम इंडिया से चिपके रहेंगे तो यह केवल यह दिखाएगा कि हमें विदेशी शासकों द्वारा हम पर थोपे गए इस अपमानजनक शब्द पर कोई शर्म नहीं है। 

कई अन्य सदस्यों ने सुझाव दिया कि अंग्रेजी और अन्य भाषाओं में इंडिया का विकल्प भारत होना चाहिए। यह सर्वविदित है कि इंडिया नाम सिंधु नदी से निकला है जिसे मध्य पूर्व से आने वाली सेनाओं को पार करना पड़ता था। भारत शब्द की उत्पत्ति पर कोई एकमत नहीं है। अधिकांश इतिहासकार इसका श्रेय दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र को देते हैं जिन्होंने एक बड़े राज्य की स्थापना की। हालांकि डा. बी.आर. अम्बेडकर ने बहस को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि कोई भी इसे भारत नाम देने के विरोध में नहीं है और इसे ‘इंडिया’, दैट इज भारत नाम देने का प्रस्ताव पारित किया गया। ऐसे कई उदाहरण हैं जहां स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश का नाम बदला गया। सिलोन का नाम बदल कर श्रीलंका कर दिया गया जबकि बर्मा का नाम बदल कर म्यांमार। आयरिश फ्री स्टेट का नाम आयर या अंग्रेजी भाषा में आयरलैंड रखा गया। आजाद होने के बाद पूर्वी पाकिस्तान का नाम बंगलादेश रखा गया। 

केंद्र और विभिन्न राज्यों में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकारें नाम बदलने की होड़ में लगी हुई हैं। दिल्ली में सड़कों के नाम के अलावा कई शहरों और रेलवे स्टेशनों के नाम बदल दिए गए हैं। अपने कथन को जारी रखते हुए केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने हाल ही में आई.पी.सी. को आपराधिक प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम के नामों को भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय सुरक्षा संहिता के रूप में बदलने का प्रस्ताव दिया है। हालांकि भारत नाम का बहुत अधिक विरोध नहीं हो सकता है लेकिन इस कदम का समय और जिस तरह से इसका उपयोग शुरू किया गया है उसमें बहुत कुछ अभी बाकी है। 

यह स्पष्ट है कि नाम बदलने पर गंभीरता से विचार तभी किया गया जब विपक्षी दलों ने एकजुट होकर  बड़ी चतुराई से गठबंधन का नाम भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन या I.N.D.I.A. रखा। भाजपा और इसके गठबंधन सहयोगियों ने खुद को ऐसा नाम देने के लिए विपक्ष की कड़ी आलोचना की। सरकार द्वारा बिना किसी एजैंडे का खुलासा किए संसद के विशेष सत्र की घोषणा के बाद से कई अटकलें लगाई जा रही हैं। कुछ लोगों ने तो सोचा कि यह एक राष्ट्र-एक चुनाव प्रस्ताव पेश करना है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति का गठन जल्दबाजी में किया गया जिसमें विपक्ष के केवल एक सदस्य अधीर रंजन चौधरी शामिल थे जिन्होंने बाद में पैनल छोड़ दिया। सरकार ने इस बात से इंकार नहीं किया है कि वह प्रस्ताव के साथ आगे बढ़ेगी लेकिन अगर वह राज्यसभा में संवैधानिक संशोधन को आगे बढ़ाने की इच्छुक है तो उसे विपक्ष के एक वर्ग के समर्थन की जरूरत होगी। 

अब, विशेष संसदीय सत्र से बामुश्किल 2 हफ्ते पहले सरकार अचानक राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के पदनाम में बदलाव लेकर आई। पहली बार जी-20 प्रतिनिधियों के निमंत्रण पत्र में इंडिया के राष्ट्रपति को भारत का राष्ट्रपति बताया गया। साथ ही प्रधानमंत्री की इंडोनेशिया यात्रा के इवैंट नोट्स में उन्हें भारत का प्रधानमंत्री बताया गया है। मौजूदा सरकार के तहत भाजपा लगातार आश्चर्य या झटके दे रही है और राष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री के कार्यालय का नाम बदलने का नवीनतम कदम भी उसी श्रेणी में है। इंडिया को भारत कहने में कुछ भी गलत नहीं है। हालांकि जिन परिस्थितियों में सरकार ने यह निर्णय लिया और इसे लागू किया उनमें बहुत कुछ बाकी था। हालांकि सरकार को इंडिया नाम को पूरी तरह से हटाने के बारे में नहीं सोचना चाहिए जिसे विश्व भर में मान्यता प्राप्त है और जिसकी एक मजबूत ब्रांड छवि है। दोनों नामों का उपयोग सौहार्दपूर्ण ढंग से किया जाना चाहिए जैसा कि हमारे संविधान निर्माताओं ने चाहा था।-विपिन पब्बी


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