अवैध अप्रवासी : भारत के गले की फांस

punjabkesari.in Wednesday, Jun 04, 2025 - 05:36 AM (IST)

वर्ष 1975 : साइगोन के पतन के बाद राजनीतिक अत्याचार की आशंका के चलते दक्षिण वियतनाम से हजारों लोगों ने पलायन किया। आधुनिक इतिहास में समुद्री मार्ग द्वारा शरण लेने वालों का यह सबसे बड़ा पलायन था और इन लोगों को ‘वोट पीपुल’ का नाम दिया गया। विश्व के विभिन्न देशों ने इन शरणार्थियों को शरण दी। अमरीका ने पश्चाताप की भावना से बड़ी संख्या में इन लोगों को शरण दी। ब्रिटेन, जापान, आस्ट्रेलिया, थाईलैंड, मलेशिया और यहां तक कि छोटे से देश बरमूडा ने भी इन लोगों को शरण दी। 

वर्ष 1989 : विश्व समुदाय ने इन वोट पीपुल के बारे में अपनी सोच बदली और अब ये उनके गले की फांस बन गए हैं और उसके बाद वोट पीपुल की एक नई श्रेणी आॢथक शरणार्थी बनी, जिसमें किसान, फैक्टरी कामगार और श्रमिक थे, जो अन्य देशों में बेहतर जीवन के लिए पलायन करने लगे। भारत में 50 वर्षों में इतिहास अपनी पुनरावृत्ति कर रहा है। यहां के ‘वोट पीपुल’ अर्थात अवैध अप्रवासी हमारे पड़ोसी देशों से भारी संख्या में यहां आ रहे हैं और अपने लिए नई आॢथक संभावनाएं तलाश रहे हैं। इन अवैध अप्रवासियों का आगमन बंगलादेश से 1971 के युद्ध के बाद हुआ। उसके बाद पाकिस्तान और म्यांमार से भी ऐसा पलायन होने लगा। उस समय से लगभग 5 करोड़ अवैध अप्रवासी भारत में आ चुके हैं और अब वे  देश के गले की फांस बन गए हैं।  

जिस तरह वर्ष 1989 में अवैध अप्रवासियों ने विश्व समुदाय की सहानुभूति खोई, उसी तरह नई दिल्ली भी जाग गया है और उसने भी अपना स्वर बदल दिया है। भारत सरकार उनको वापस भेजने की बातें कर रही है और यह मांग बढऩे लगी है कि बंगलादेश और अन्य देशों से आए अवैध अप्रवासियों को भारत से निकाला जाए। पिछले सप्ताह लगभग 2000 बंगलादेेशीयों को वापस भेजा गया। उसके बाद त्रिपुरा, मेघालय और असम में बंगलादेश सीमा सहित पूरे देश में उनके सत्यापान की प्रक्रिया गुजरात से शुरू हुई, जहां से वापस भेजे गए अवैध अप्रवासियों में से आधे से अधिक गुजरात से हैं। इसके बाद दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान और असम में भी यही कार्रवाई की गई। 

दिल्ली की पूर्ववर्ती ‘आप’ सरकार ने भी बंगलादेशी नागरिकों को वापस भेजने का प्रयास किया। इसके अलावा असम से भी अवैध बंगलादेशीयों को वापस भेजने की आवाज बार-बार उठ रही है।  बिहार के 7 जिलों, पूर्वोत्तर, राजस्थान, बंगाल तथा दिल्ली में 15 लाख से अधिक अवैध अप्रवासी हैं। महाराष्ट्र में 1 लाख से अधिक अवैध बंगलादेशी अप्रवासी हैं। मिजोरम में बाहरी व्यक्तियों के विरुद्ध अक्सर हिंसक आंदोलन होते हैं। पिछले दो दशकों में नागालैंड में अवैध अप्रवासियों की संख्या 20,000 से बढ़कर 75,000 पहुंच गई है। त्रिपुरा में स्थानीय पहचान समाप्त होने को है। वर्ष 1951 में यहां स्थानीय लोग 59.1 प्रतिशत थे, जो घटकर 21.7 प्रतिशत हो गए हैं। 

उल्लेखनीय है कि असम में बाहरी लोगों के विरुद्ध भावना असम आंदोलन का प्रमुख कारण रहा है जिसके कारण वहां हिंसा भी हुई है। हाल के वर्षों में राज्य सरकार ने विदेशी अधिकरण का इस्तेमाल किया, जिसने 25 मार्च, 1971 की तारीख को राज्य में नागरिकता देने की तारीख निर्धारित की और इससे हजारों लोगों का भविष्य अधर में लटक गया। रिसर्च एंड एनालिसिस विंग के सूत्रों के अनुसार आई.एस.आई. ने पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र को इस्लामिक शासन के अंतर्गत लाने के लिए आपरेशन पिन कोड शुरू किया है। सरकार कई बार एक मूल समुदाय का दूसरे मूूल समुदाय पर वर्चस्व स्थापित करने के साधन के रूप में भी अप्रवास के लिए उन्हें बाध्य करती है। फिर इस समस्या का समाधान क्या है? क्या हमें इस संबंध में अतिवादी विचारों को हवा देनी चाहिए? इस संबंध में वोट बैंक की राजनीति पर भी विचार करना चाहिए।

विकल्प सीमित हैं और इसका समाधान भारत की सुरक्षा हेतु उसकी एकता, अखंडता और स्थिरता को ध्यान में रखकर लिया जाना चाहिए। विपक्षी दल यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं कि सरकार इन अवैध अप्रवासियों के विरुद्ध मानवीय दृष्टिकोण अपनाए किंतु यह आसान नहीं है। इसके अलावा बंगलादेश और म्यांमार में चीन का प्रभाव बढ़ रहा है, जिससे भारत के लिए खतरा बढ़ गया है, इसलिए इस समस्या के समाधान के लिए भारत और म्यांमार दोनों सरकारें आपस में सहयोग करने पर विचार कर रही हैं। भारत म्यांमार सरकार के सैन्य अधिकारियों से अच्छे संबंध बना रहा है ताकि पूर्वोत्तर क्षेत्र में उपद्रवियों के विरुद्ध कार्रवाई करने में उसकी सहायता मिल सके क्योंकि इनमें से अधिकतर उपद्रवी म्यांमार के जंगलों में हैं। 

व्यावहारिक रूप से सीमा प्रबंधन के लिए कठोर नीति आवश्यक है। सीमा पर पुलिस व्यवस्था में स्थानीय लोगों को भर्ती किया जाना चाहिए क्योंकि यदि आप सीमा पर किसी को घुसपैठ करने से नहीं रोक सकते, तो फिर आप उन्हें वापस नहीं भेज सकते। यह जनांकिकीय, आॢथक और राष्ट्रीय सुरक्षा का गंभीर मुद्दा है और यदि इसको सुलझाया नहीं गया तो भविष्य में घुसपैठ और बढ़ सकती है। दक्षिण एशिया की आधी से अधिक जनसंख्या उन क्षेत्रों में रहती है जहां पर वर्ष 2050 तक जलवायु परिवर्तन का प्रभाव गंभीर हो जाएगा और यदि इन स्थानों से भारी संख्या में लोगों ने पलायन किया तो इससे अवैध अप्रवासान और बढ़ेगा। अकेले बंगलादेश में पर्यावरणीय नुकसान से डेढ़ करोड़ से अधिक लोगों के पलायन की संभावना है। समय की मांग है कि इन अवैध अप्रवासियों के बारे में कठोर नीति अपनाई जाए और समयबद्ध उपाय किए जाएं। हमें इस बात को ध्यान में रखना होगा कि इतिहास में विनाश सरकार की गलतियों और राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध नीतियां अपनाने से हुए हैं।-पूनम आई. कौशिश 


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