विकसित देश होने की राह पर भारत

punjabkesari.in Monday, Dec 05, 2022 - 06:59 AM (IST)

15 अगस्त, 2022 को जब भारत ने आजादी के 75 वर्ष पूरे कर लिए उस समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हम सबका आह्वान किया था कि हम उस यात्रा में शामिल हो जाएं जिसमें भारत 2047 तक एक विकसित देश के रूप में परिवर्तित हो जाएगा। यही वह वक्त है, जब एक आजाद देश के रूप में भारत अपनी शतकीय पारी पूरी करेगा। 

प्रधानमंत्री के वक्तव्य की मुख्य विशेषताओं में इस यात्रा के तीन पड़ावों का जिक्र था-यह तथ्य कि हम आकांक्षी समाज बन गए हैं, यह कि अब भारतीयों में सांस्कृतिक व सभ्यतामूलक पुनर्जागरण हो रहा है और यह कि विश्व में हम अपना अधिकारपूर्ण स्थान प्राप्त करने का जो दावा कर रहे हैं, उसे अब पूरी दुनिया गंभीरता से ले रही है। हर चीज की योजना के लिए 25 वर्षों का समय कोई लंबा समय नहीं होता और यह बिल्कुल साफ है कि विज्ञान व प्रौद्योगिकी में ठोस प्रगति किए बिना,‘विकसित’ होने के इस तमगे को प्राप्त करना कठिन होगा। 

अगर विकसित देश का दर्जा हासिल करना है, तो भारतीय विज्ञान के लिए उसी के अनुरूप ठोस रोडमैप तैयार करना होगा। पिछले सप्ताह बाली, इंडोनेशिया में जी-20 की अध्यक्षता प्राप्त करते समय इन मुद्दों को रेखांकित किया गया था। विशेष रूप से देखा जाए, तो विज्ञान-20 या एस-20 साइंस इंगेजमैंट ग्रुप को सरकार ने स्थापित किया है। 

विश्व मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने में हमें कई दशक लगे हैं। अगले वर्ष, जब भारत जी-20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा, तब हमारे पास यह शानदार अवसर होगा कि हम आगे की राह दिखाएं तथा तकनीकी आत्मनिर्भरता और विदेशी सोर्सिंग के बीच संतुलन बिठा सकें। एक प्रधानमंत्री का कत्र्तव्य होता है कि वह एक राष्ट्रीय परिकल्पना प्रस्तुत करे। इस क्रम में प्रतिष्ठित प्रधानमंत्रियों ने अतीत में जय जवान, जय किसान और जय विज्ञान के रूप में इसे प्रस्तुत किया था। प्रधानमंत्री मोदी ने इसमें अब जय अनुसंधान को जोड़ दिया है। विज्ञान और शोधात्मक नवोन्मेष बहुत महत्वपूर्ण हो गए हैं। 

आंकड़ों के आधार पर देखें, तो इस वर्ष 97.8 प्रतिशत की विकास दर के बल पर वर्ष 2026-27 तक (यदि तेल की कीमतों में कोई भारी उलट-फेर न हो) हम 5 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य प्राप्त कर लेंगे। जीवाश्म ईंधन से नवीकरणीय ऊर्जा तक संभावित पहुंच के कारण सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि हम 2031-32 तक 9 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर तथा 2047 तक 40 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बन सकते हैं। इस स्थिति में हम सिर्फ पी.पी.पी. नंबरों के आधार पर नहीं, बल्कि पूर्ण मौद्रिक संदर्भों में दुनिया के तीन सर्वोच्च देशों में शामिल हो जाएंगे। 

2047 का लक्ष्य हासिल करने के लिए हमें क्या करना होगा? आर. जगन्नाथ और आशीष चंदोरकर ने स्वराज्य में जो लिखा है, हमें उस पर ध्यान देना होगा। इसके अतिरिक्त, मैं इसमें शिक्षा, फार्मा व महिला स्वास्थ्य सहित स्वास्थ्य, निर्यात, मांग-आपूर्ति के असंतुलन पर ध्यान देना, उर्वरक सहित पोषण, समुद्री और ध्रुवीय अनुसंधान सहित जल, जलवायु परिवर्तन, जिनोमिक्स, नैनोमैटीरियल सहित उन्नत पदार्थ, रोबोटिक्स, विद्युत और सौर ऊर्जा चालित वाहन, ड्रोन, बाह्य अंतरिक्ष, सूचना प्रौद्योगिकी को आमतौर पर जोडऩा चाहूंगा। इसमें कुछ जरूरी सैक्टरों को भी जोडऩा उचित होगा, जहां विशेषज्ञों द्वारा संचालित वैज्ञानिक कार्य-पद्धति को वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धात्मक प्रौद्योगिकी में बदलना शामिल है। विकसित देश बनने की सीढ़ी चढ़ते वक्त उद्योग को केंद्रीय भूमिका अदा करनी होगी, जिसमें सरकार मुख्य तथा सुविधा प्रदान करने वाली भूमिका में होगी। इन सबको वैश्विक आपूर्ति शृंखला के संदर्भ में लेना होगा।

वैश्विक आपूर्ति शृंखला देशों के बीच एक नए युद्ध का औजार बन चुकी है-जिसे हम ठंडे स्थान पर गर्म युद्ध कह सकते हैं। 25 वर्ष की इस छोटी-सी अवधि को मद्देनजर रखते हुए, हम कुछ अड़चन वाले क्षेत्रों में आयातित समाधानों की उपेक्षा नहीं कर सकते। इसके लिए भारत के हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए सोची-समझी विदेश नीति की जरूरत है। परमाणु ऊर्जा विभाग इस बात की शानदार मिसाल है कि कैसे एक सरकारी वैज्ञानिक विभाग को संगठित करना चाहिए, जो शैक्षिक जिम्मेदारियों से मुक्त हो। 

उल्लेखनीय है कि परमाणु हथियार बनाने के लिए आणविक सामग्री फिसाइल यू-235 जरूरी होती है। इसके लिए यूरेनियम अयस्क का आयात करना पड़ता है, जिसके लिए 1950 के दशक में हमारे ऊपर कठोर प्रतिबंध लगे थे। तब भारत ने अपने समुद्री किनारों की रेत में मौजूद मोनाजाइट से थोरियम निकालने का रास्ता तैयार कर लिया था।(गौतम आर. देसिराजू इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ साइंस, विज्ञान में सेवारत हैं और भारत सरकार के एस-20 इंगेजमैंट ग्रुप के सदस्य हैं तथा शरण शैट्टी स्वराज्य के एसोशिएट संपादक हैं।)-गौतम आर. देसिराजू और शरण शैट्टी


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