कुछ भूली-बिसरी यादें... (5) ‘भारतीय खाद्य निगम के ‘गैंग लीडरों’ की आय राष्ट्रपति से भी अधिक’

punjabkesari.in Thursday, Apr 29, 2021 - 04:18 AM (IST)

मेरी अध्यक्षता में सरकार द्वारा गठित एक उच्चाधिकार समिति को भारतीय खाद्य निगम (एफ.सी.आई.) के ‘सुधार’ का काम सौंपा गया। समिति के सबसे प्रमुख सदस्य कृषि वैज्ञानिक डा. अशोक गुलाटी थे। इस कमेटी में काम करते हुए मुझे ऐसे बहुत से तथ्यों की जानकारी हुई जिनका खाद्य मंत्री रहते मुझे पता नहीं लगा था। भारत में फिजूलखर्ची और भ्रष्टाचार तो लगभग सभी जगह है परंतु भारतीय खाद्य निगम में भी भयंकर फिजूलखर्ची व भ्रष्टाचार है और निगम की कर्मचारी व मजदूर यूनियनें बहुत अधिक शक्तिशाली हैं। 

इसमें कुछ मजदूर हैं और कुछ स्वयंभू नेता हैं। उन्हें ‘पल्लेदार’ भी कहते हैं। यूनियन के नेता के नाम से कुछ काम होते हैं परंतु काम करने वाले मजदूर कोई और होते हैं। उन सबकी मजदूरी उस नेता को मिलती है। उस नेता को वहां ‘गैंग लीडर’ भी कहते हैं। कुछ गैंग लीडरों की एक महीने की आय हजारों में नहीं लाखों रुपयों में बनती है। मंत्री रहते हुए मुझे इस बारे कुछ पता नहीं लगा। कमेटी की बैठक में पूरा विषय सामने आया तो पता लगा कि कुछ ‘गैंग लीडर मजदूरों’ की मासिक आय तो भारत के राष्ट्रपति से भी अधिक है। पूछने पर निगम के अध्यक्ष ने कहा कि ‘‘यह वर्षों से हो रहा है। इसे बंद करने की कोशिश की परंतु मजदूर यूनियन इतनी शक्तिशाली है कि अधिकारियों को सब सहना पड़ता है। असल में निगम को कुछ मामलों में यूनियन ही चला रही है।’’ 

कई महीनों की जांच, प्रदेशों के प्रवास और विचार-विमर्श के बाद कमेटी की रिपोर्ट सरकार को देने के साथ मैंने प्रधानमंत्री जी से कहा कि कमेटी के प्रमुख सदस्य आपको व्यक्तिगत रूप से रिपोर्ट के सम्बन्ध में कुछ बताना चाहते हैं। हमें 25 मिनट का समय मिला। प्रधानमंत्री हमारी बातें सुन कर बहुत हैरान हुए। कमेटी इस निर्णय पर पहुंची थी कि खाद्य निगम का खाद्यान्न खरीदना, रखना और बांटना यह सारा काम इतना त्रुटिपूर्ण है कि इसमें फिजूलखर्ची और भ्रष्टाचार अपने आप ही पैदा हो गया है। इस हालत में भ्रष्टाचार व फिजूलखर्ची रोकी नहीं जा सकती, अत: कमेटी ने कुछ बुनियादी परिवर्तनों का सुझाव दिया था। योजना आयोग की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि मंडी में खरीदा गया एक रुपए का अनाज उपभोक्ता तक पहुंचाने में सरकार के तीन रुपए खर्च होते हैं आज तो यह खर्च चार रुपए तक पहुंच गया होगा। 

कमेटी ने सिफारिश की कि उपभोक्ता को अनाज देने की बजाय धन सीधा उसके खाते में जमा करवाया जाए। यदि एक रुपए के अनाज के बदले उसे सीधे नकद दो रुपए दे दिए जाएं तो सरकार का एक रुपया बच जाएगा। सरकार केवल बफर स्टाक के लिए ही अनाज खरीदे तथा बाकी अनाज के व्यापार को मुक्त कर दिया जाए। इस व्यवस्था में जहां उपभोक्ता को पहले से डेढ़ गुना अधिक लाभ होगा वहीं सरकार के 40 हजार करोड़ रुपए भी बच जाएंगे। यह सुनकर प्रधानमंत्री बहुत हैरान हुए कि अनाज खरीदने, रखने, ले जाने और फिर उपभोक्ता तक पहुंचाने में फिजूलखर्ची तथा हर कदम पर भ्रष्टाचार होता है। 

यह देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि देश को अन्न खिलाने वाले किसान लाखों की संख्या में आत्महत्या कर चुके हैं। यह सिलसिला अभी भी चल रहा है। कमेटी ने महत्वपूर्ण सिफारिश की और कहा कि पूरे विश्व में खेती का व्यवसाय लाभप्रद नहीं है परंतु खेती के बिना मनुष्य जी नहीं सकता। अत: दुनिया भर में लगभग सभी देश किसान को खेत पर लगाए रखने के लिए ‘अतिरिक्त आय’ की सहायता देते हैं। 

कमेटी ने आंकड़े दिए थे कि अमरीका जैसे देश में भी लाखों रुपए किसानों को दिए जाते हैं। कमेटी ने यह महत्वपूर्ण सिफारिश भी की कि देश के किसानों को सीधे नकद आर्थिक सहायता दी जाए तथा वितरण की व्यवस्था बदलने मात्र से ही 40000 करोड़ रुपए बच जाएंगे। कमेटी ने कहा कि खाद्य अनुदान का पूरा धन 40 हजार करोड़ रुपए से मिलाकर सीधे किसानों को आॢथक आय सहायता के रूप में दिया जाए। सरकार पर कोई नया बोझ नहीं पड़ेगा। इस आॢथक सहयोग से किसानों की आत्महत्याएं भी रुकेंगी। 

केंद्र सरकार ने कमेटी की इस महत्वपूर्ण सिफारिश को स्वीकार कर लिया और किसान सम्मान निधि के रूप में वार्षिक सहायता सीधे किसान के खाते में भेजनी शुरू कर दी है। मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि सरकार ने कमेटी की कुछ और सिफारिशों को स्वीकार किया है परंतु कुछ सिफारिशों को छोड़कर लम्बे समय के बाद भी पूरी रिपोर्ट लागू न होने से मुझे बहुत दुख होता है। 


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