पुलिस के जांच कौशल में सुधार बेहतर परिणाम के रूप में दिखना चाहिए

punjabkesari.in Friday, May 27, 2022 - 03:50 AM (IST)

एक एनकाऊंटर, जिसने इस ग्रह पर दो किशोरों सहित 4 युवा व्यक्तियों का जीवन समाप्त कर दिया, लगभग अढ़ाई वर्ष पहले 19 नवम्बर, 2019 को किया गया। हैदराबाद के बाहरी क्षेत्रों में 26 वर्षीय एक महिला पशु चिकित्सक के साथ पहले गैंग रेप किया गया, फिर हत्या करके उसके शरीर को जला दिया गया। यह हर तरह से एक जघन्य अपराध था।

इसने स्थानीय निवासियों तथा अन्य मध्यमवर्गीय भारतीयों की आत्मा को झिंझोड़ दिया जिन्होंने अगली सुबह समाचार पत्रों में दुष्कर्म तथा हत्या के बारे में पढ़ा। हमें हकीकत का सामना करना चाहिए। ऐसे अपराधों से मध्यम वर्ग को खतरा महसूस होता है। वह असुरक्षित महसूस करते हैं। मेरी अपनी 70 वर्षीय मां असुरक्षित महसूस करती थी जब फुटपाथों पर रहने वाले लोगों को एक पागल व्यक्ति द्वारा मारा जा रहा था जो उनकी खोपड़ियों पर भारी पत्थर फैंक रहा था जब वे सो रहे थे। मैंने मां को समझाया कि वह फुटपाथ पर रहने वाली नहीं हैं लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। मैं उन दिनों मुम्बई में पुलिस प्रमुख था। वह सोचती थीं कि मैं यह बात उन्हें बस दिलासा देने के लिए कह रहा था।

हमारे देश में न्यायिक प्रक्रिया प्रणाली के पहिए बहुत धीरे पिसते हैं, अपने आराम से बहुत धीरे-धीरे। यदि राजनीतिक कार्यपालिका, न्यायपालिका तथा अभियोजन एजैंसियां और बार एक साथ बैठें और निर्णय लें कि दुष्कर्म तथा हत्याओं के मामलों के मुकद्दमों में तेजी लाई जाए तो कम से कम मैं सुनिश्चित हूं कि ऐसा करना संभव होगा मगर सभी संबंधित दिमागों में इसका अभाव होगा। वे शार्टकट्स पसंद करते हैं जो अच्छे लगते हैं लेकिन असभ्य तथा निश्चित रूप से कानून की भावना के खिलाफ हैं। पुलिस को हिरासत में लिए गए व्यक्तियों के अपराध का फैसला करने देना और फिर खुद सजा को अंजाम देना दुनिया भर के सब न्याय शास्त्र के लिए अज्ञात है।

उत्तर प्रदेश में एनकाऊंटर में माफिया डॉन विवेक दूबे की जान छीन ली और सबको पता था कि सही इंसान को उसका दंड मिला है मगर हैदराबाद मामले में जस्टिस सिपुकर आयोग द्वारा जांच में यह पाया गया कि सामान्य जनता तक यह दिखाने के लिए पहले कोई सबूत प्रसारित नहीं किया गया कि पुलिस द्वारा मार डाले गए 4 युवा वास्तविक अपराधी थे। 

क्या हो यदि उनमें से एक भी उस क्षेत्र में टहल रहा कोई एक निर्दोष व्यक्ति होता। बहुत से युवा बेरोजगारों के लिए अपने घर से दूर रहने से अच्छा कुछ नहीं होता। राजनीतिक तथा पुलिस नेतृत्व दोनों ही लोगों के साथ अपना ‘हस्तक्षेप का अधिकार’ स्थापित करने की जल्दी में थे। सच है कि उन्हें अत्यंत प्रसन्नता मिली और पुलिस पर तुरंत न्याय दिलाने के उसके कारनामे के लिए गुलाब की पंखुडिय़ों की बौछार की गई। इंवैस्टी इंटरनैशनल के इंडिया चैप्टर ने सही निष्कर्ष निकाला था कि इस तरह की फर्जी मुठभेड़ों के लिए जनता का समर्थन था। कारण समझना मुश्किल नहीं। एक ऐसे देश में जहां न्याय प्रक्रिया प्रणाली उस तरह काम नहीं करती जैसे उन्नत, सभ्य और लोकतांत्रिक देशों में, जांचकत्र्ता एजैंसियों द्वारा तुरंत न्याय को स्वीकार किया जाता है और यहां तक कि मध्यम वर्गों द्वारा उसकी प्रशंसा भी की जाती है। 

सभी शक्तियां प्रदान करने में निहित खतरे- एक ही एजैंसी, पुलिस में जांच, मुकद्दमा चलाने तथा दोष निर्णय की शक्तियां और फिर जेलर की तरह वास्तव में सजा को निष्पादित करने की इजाजत देने के खतरे को सार्वजनिक समर्थन के हित में अनदेखा किया गया है। यह समर्थन चुनावी क्षेत्र तक फैला हुआ है और इसलिए राजनीतिक नेताओं द्वारा इसकी बहुत मांग की जाती है। मैंने संघ के विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों और गृह मंत्रियों के बयानों को खुलेआम यह कहते हुए पढ़ा है कि उन्होंने ‘अपनी’ पुलिस को निर्देश दिया है कि ऐसे अपराधियों को सड़कों पर लिटाएं और उन्हें वह दूसरी दुनिया में भेज दिए जाएं। 

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ ने जो बड़ी लोकप्रियता हासिल की है और जिसके परिणामस्वरूप उनकी पार्टी फिर से चुन कर आई हैउसका एक बड़ा कारण पुलिस को उनके बार-बार दिए गए आदेश थे कि उत्तर प्रदेश के शहरों की सड़कों को सभी प्रकार के आपराधिक तत्वों से मुक्त कर दिया जाए।  ‘उनकी’ पुलिस ने यह कार्य बड़े उत्साह के साथ किया। उन्हें किसी को जवाब देने की जरूरत नहीं थी। चूंकि कोई प्रश्न नहीं पूछे गए इसलिए उन्होंने बिना किसी बाधा के अपराधियों के साथ निपटा। 

पुलिस परीक्षण विद्यालयों में पढ़ाए गए जांच के सभी वैज्ञानिक तरीकों की अब जरूरत नहीं है। यदि किसी व्यक्ति पर अपराध के आरोप लगे हैं और वह ऐसे मामलों के लिए जाना-माना अथवा एक उभर रहा अपराधी है तो उसे मौत के अंजाम तक पहुंचाने के लिए केवल इतना ही पर्याप्त है। मुसलमानों तथा दलितों की तरह गरीबों को भी अपराधियों की सूची में आनुपातिक रूप से प्रतिनिधित्व दिया जाता है जिसका उच्च जातियों के लिए उच्च जातियों द्वारा चलाए जा रहे प्रशासन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। आपराधिक मामलों के निपटान में देरी के लिए बार सबसे बड़ा दोषी है। जब न्यायाधीशों के पूर्व सहयोगियों की बात आती है तो वह कानून बनाने से हिचकते हैं। हाईकोर्ट और यहां तक कि सुप्रीमकोर्ट के जज भी खीझ कर मामले की अगली बार सुनवाई की धमकी देते हैं। 

मेरे छात्र दिनों में हत्या तथा अन्य सत्र मामलों की सुनवाई रोजमर्रा के आधार पर की जाती थी जब तक कि मुकद्दमा पूरा न हो जाए और सजा न सुना दी जाए। केवल मैजिस्ट्रेट अदालतों स्थगन की अनुमति देती थी और ऐसा भी बहुत कम मामलों में किया जाता। यह एक महत्वपूर्ण कदम है जिसे न्यायिक प्रक्रिया को वापस पटरी पर लाने के लिए आसानी से अपनाया जा सकता है। बार द्वारा इसका विरोध किया जा सकता है क्योंकि वकील स्थगन फीस वसूल करते हैं। पुलिस ने अपनी जांच कौशल में सुधार किया है। प्रशिक्षण में निश्चित तौर पर सुधार हुआ है जो बेहतर परिणाम के रूप में निकलना चाहिए।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)  
 


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