श्रीसंत यदि किसी अन्य देश के लिए खेलते हैं तो इसमें गलत क्या है

punjabkesari.in Monday, Oct 23, 2017 - 12:57 AM (IST)

लगभग 30 वर्ष पूर्व क्लाइव लॉयड के दौर में वैस्टइंडीज क्रिकेट टीम पतन की ओर बढ़ रही थी तो उसी दौरान एलन बोर्डर की कप्तानी में आस्ट्रेलियाई खिलाड़ी विश्व की सबसे सशक्त टीम बनकर उभरे थे। आस्ट्रेलियाई टीम में अनेक ‘खब्बू’ (लैफ्ट हैंडर) थे। खुद बोर्डर भी खब्बू थे और सलामी बल्लेबाज कैप्लर वैसल्ज भी।

वैसल्ज वास्तव में दक्षिण अफ्रीकी थे। उन्होंने अपनी राष्ट्रीयता इसलिए बदली थी कि वे अपने मूल देश के लिए खेल नहीं सकते थे क्योंकि नस्लवाद की नीति का सरकारी स्तर पर अनुसरण करने के कारण उनके देश को विश्व क्रिकेट में हिस्सा लेने से प्रतिबंधित कर दिया गया था। उन दिनों दक्षिण अफ्रीका में काले तथा एशियाई मूल के लोगों के साथ-साथ मिली-जुली नस्ल के लोगों को भी वोट का अधिकार नहीं था।

इसके कुछ वर्ष बाद जिम्बाब्वे से संबंधित ग्राईम हिक भी इंगलैंड की क्रिकेट टीम के लिए खेले थे। दक्षिण अफ्रीकी खिलाड़ी केविन पीटरसन ने भी इंगलैंड की टीम के लिए खेलने का फैसला लिया था। हाल ही के समय में लूके रोंची आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के लिए खेलते रहे हैं जबकि इयोइन मोर्गन इंगलैंड तथा आयरलैंड दोनों के लिए खेलते रहे हैं।

स्पष्ट है कि इन देशों को अपनी क्रिकेट टीम में अन्य देशों से आए खिलाडिय़ों के खेलने पर कोई आपत्ति नहीं थी और न ही वे इस बात पर आगबबूला होते थे कि उनके अपने खिलाड़ी क्रिकेट में बेहतर करियर की तलाश में किसी अन्य देश की ओर क्यों जा रहे हैं, क्योंकि वे जानते थे कि उनके देश को उस खिलाड़ी की ’यादा जरूरत नहीं या फिर वे उसे खेलने का मौका ही नहीं देना चाहते।

इसी सप्ताह केरल से संबंधित भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व तेज गेंदबाज एस. श्रीसंत ने कहा था कि वह किसी अन्य देश की खातिर खेलने पर विचार करेंगे क्योंकि बी.सी.सी.आई. उन्हें भारतीय टीम में शामिल नहीं करना चाहता। श्रीसंत का यह बयान तब आया जब अदालत ने उन्हें खेलने की अनुमति  देने वाले एक पूर्व अदालती आदेश को पलट दिया।

2013 के आई.पी.एल. संस्करण दौरान ‘स्पॉट फिक्सिंग’ का दोषी पाए जाने के बाद श्रीसंत को प्रतिबंधित कर दिया गया था। तब उनकी आयु 29 वर्ष थी। स्पॉट फिक्सिंग क्रिकेट जुएबाजी का वह रूप है जिसमें एक-एक गेंद पर सट्टा लगाया जाता है। ‘बुक्की’ यानी सट्टेबाज एक-एक गेंद पर यह शर्त प्रस्तुत करते हैं कि कोई गेंदबाज विकेट गिरा देगा या ‘नो बॉल’ ही फैंकेगा अथवा क्या बल्लेबाज किसी खास गेंद पर छक्का या चौका लगाएगा।

यदि बुक्की गेंदबाज के साथ सम्पर्क साधने में सफल हो जाता है तो किसी भी विशेष ओवर का सही-सही विवरण अग्रिम रूप में तय किया जा सकता है और फिर बुक्की दाव लगाने वाले व्यक्तियों के लिए दाव प्रस्तुत कर सकता है। दाव लगाने वाले अधिकतर लोग गुजराती होते हैं जोकि केवल जीत और हार पर दाव लगाते-लगाते ऊब चुके हैं और अधिक उत्तेजनापूर्ण खेल की उम्मीद करते हैं।
 

जैसा कि आप खुद भी कल्पना कर सकते हैं, बुक्की और खिलाड़ी के बीच सांठ-गांठ होने के बावजूद किसी गेंद और उसके परिणामों पर दाव लगाना कोई आसान काम नहीं होता। कुछ पाकिस्तानी खिलाड़ी तो कुछ वर्ष पूर्व मीडिया द्वारा सट्टेबाजों के साथ सांठ-गांठ करते पकड़ लिए गए थे और उसी समय दौरान ही श्रीसंत पर आरोप लगे थे। उन पर लगा प्रतिबंध उस समय निष्प्रभावी हो गया था जब अदालत ने उन्हें फिक्सिंग के आरोप से बरी कर दिया।

गत 4 वर्षों दौरान वह खेल नहीं पाए थे और अदालत के ताजा फैसले से तो वह हताश होकर यह कहने को मजबूर हो गए : ‘‘प्रतिबंध बी.सी.सी.आई. ने लगाया है, आई.सी.सी. ने नहीं। यदि भारत के लिए नहीं तो मैं किसी अन्य देश के लिए खेल सकता हूं क्योंकि मैं इस समय 34 वर्ष का हूं और अधिक से अधिक केवल 6 वर्षों के लिए ही क्रिकेट खेल पाऊंगा। क्रिकेट को प्यार करने वाले व्यक्ति के रूप में मैं क्रिकेट खेलना चाहूंगा। इससे भी बड़ी बात यह है कि बी.सी.सी.आई. केवल एक प्राइवेट फर्म है, सिर्फ हम लोगों ने ही इसकी टीम को ‘भारतीय टीम’ कहना शुरू कर दिया लेकिन आप तो जानते हैं कि सब कुछ के बावजूद आखिर यह प्राइवेट निकाय है।’’

श्रीसंत के दृष्टिकोण को समझना आसान है। उन्होंने अपना सारा जीवन उस खेल में लगा दिया है जिसे खेलने की उन्हें भारत में अनुमति ही नहीं। वह किसी अन्य देश के लिए क्यों न खेलें? यदि वह ऐसा करते हैं तो मुझे इसमें किसी तरह की कोई बुराई नजर नहीं आती।

इससे वास्तविक जीवन में राष्ट्रीयता बदलने जैसी जो समस्याएं पैदा होंगी उन्हें कुछ क्षण के लिए दरकिनार कर दें और इस हकीकत पर चिंतत करें कि किसी दक्षिण अफ्रीकी के लिए आस्ट्रेलियाई बनना कितना आसान है जबकि किसी भारतीय के लिए कोई भी अन्य पहचान हासिल करना इसकी तुलना में कितना कठिन होता है। वैसे कुछ भी हो, श्रीसंत ने यह संकेत दे दिया है कि वह किसी अन्य देश के लिए केवल टी-20 मैचों में ही खेलेंगे।

लेकिन उनका फैसला कुछ भी हो, मैं यह कहना चाहूंगा कि अपना देश यदि उन्हें खेल के मैदान में देखना ही नहीं चाहता तो भी किसी अन्य देश के लिए खेलने से इन्कार करके राष्ट्र के प्रति अपनी वफादारी का प्रमाण देने के लिए उन्हें कहना सरासर नाइंसाफी है। केवल भारतीय लोग ही इस खेल को इतनी गंभीरता से लेते हैं क्योंकि हमने अपनी राष्ट्रवादी भावनाओं का इस खेल में बहुत अधिक निवेश कर रखा है।

जब बी.सी.सी.आई. की टीम पाकिस्तान क्रिकेट एसोसिएशन द्वारा नियंत्रित टीम के विरुद्ध जीत हासिल करती है तो यह कहा जाता है कि ‘भारत’ ने ‘पाकिस्तान’ को हरा दिया है।अपनी क्रिकेट टीम की जीत या हार में हम जिस तरह की सशक्त भावनाएं व्यक्त करते हैं वैसी लोकप्रिय संस्कृति के किसी भी अन्य रूप में दिखाई नहीं देतीं।

यदि प्रियंका चोपड़ा जैसी कोई भारतीय हीरोइन बॉलीवुड को ठेंगा दिखाकर हॉलीवुड की डगर पर चल निकलती हैं तो हम इस कृत्य को देश के साथ गद्दारी के रूप में नहीं देखते। उलटा हम तो यह सोचते हैं कि हॉलीवुड में किसी भारतीय का सफल होना बहुत बड़ी और गर्व की बात है। ऐसे में अपने क्रिकेट खिलाडिय़ों के लिए हम अलग-अलग रवैया क्यों अपनाते हैं? इसे समझ पाना कोई आसान काम नहीं और इस स्थिति में श्रीसंत के साथ हम हमदर्दी ही व्यक्त कर सकते हैं।

एक प्राइवेट निकाय के रूप में बी.सी.सी.आई. को यह फैसला लेने का पूरा अधिकार है कि उसने किस को टीम में शामिल करना है और किसको नहीं। वैसे दुनिया भर के सबसे भ्रष्ट खेल निकायों में से बी.सी.सी.आई. एक है लेकिन इस विषय की चर्चा करना यहां अप्रासंगिक होगा। हम में से किसी को भी यह अधिकार नहीं कि श्रीसंत को यह पाठ पढ़ाए कि उन्होंने करियर और प्रतिभा के बारे में क्या और कैसा फैसला लेना है? वैसे उनसे यह उम्मीद करना बिल्कुल बचकाना और बुझदिली भरा है कि वे हमारे बोगस क्रिकेट राष्ट्रवाद का झंडा ऊंचा उठाए रखें। 


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