आशा है मोदी राजनीतिक स्वार्थ की बजाय ‘राष्ट्रहित’ को सर्वोपरि रखेंगे

punjabkesari.in Monday, Feb 25, 2019 - 04:02 AM (IST)

चुनाव सिर पर हैं। भाजपा समर्थक मीडिया पाकिस्तान के विरुद्ध उन्माद पैदा करने में जुटा है। अंदेशा है कि प्रधानमंत्री मोदी भी कुछ ऐसा कर सकते हैं जो हवा उनकी तरफ बहने लगे। संविधान की धारा 35-ए व 370 को राष्ट्रपति के अध्यादेश से खत्म करवाना, ऐसा ही एक कदम है। धारा 35-ए हटने से कश्मीर के बाहर के भारतीय नागरिक वहां स्थाई संपत्ति खरीद पाएंगे और 370 हटने से कश्मीर को मिला विशेष दर्जा समाप्त हो जाएगा। ये दोनों ही बातें ऐसी हैं जिनकी मांग संघ व भाजपा के कार्यकत्र्ता शुरू से करते आ रहे हैं। 

जाहिर है कि अगर मोदी जी ऐसा करते हैं तो इसे चुनावों में भुनाने की पुरजोर कोशिश की जाएगी जिसका जाहिरन काफी लाभ भाजपा को मिल सकता है। किन्तु इसमें कुछ पेंच हैं। संविधान का कोई भी संशोधन संसद की स्वीकृति के बिना स्थाई नहीं रह सकता। क्योंकि राष्ट्रपति अध्यादेश की अवधि 6 महीने की होती है। आवश्यक नहीं कि अगली लोक सभा इसे पारित करे। उस स्थिति में यह अध्यादेश निरस्त हो जाएगा। पर इस बीच जो राजनीतिक लाभ भाजपा चाहती है वह तो ले ही लेगी। 

चौराहे पर लोकतंत्र 
इस समय लोकतंत्र एक ऐसे चौराहे पर खड़ा है, जहां एक तरफ मोदी-अमित शाह की जोड़ी है जो जेहाद के मूड में है। उन्हें किसी भी तरह ये चुनाव जीतना है और इसके लिए उनके पास धन बल, सत्ता बल व अन्य सभी तरह के बल प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। इसलिए मोदी जी कोई जोखिम उठाने से हिचकेंगे नहीं क्योंकि उन्होंने अपने मन में ठान ली है, ‘करो या मरो’। कानूनी या राजनीतिक विवाद जो भी उठेंगे, उन्हें चुनावों के बाद साध लिया जाएगा। यह सोचकर मोदी-अमित शाह की जोड़ी कोई भी जोखिम उठाने से रुकेगी नहीं। चाहे वह पाकिस्तान पर हमला ही क्यों न हो। 

दूसरी तरफ विपक्ष बिखरा हुआ है, अपने-अपने अहं और अहंकार में क्षेत्रीय दलों के क्षत्रप एकजुट नहीं हो पा रहे हैं। उन्हें भ्रम है कि वे अपने-अपने क्षेत्र में अपने मतों पर पकड़ बनाए रखेंगे। वे यह नहीं सोच पा रहे कि जब मोदी का कश्मीर या पाकिस्तान ऑप्रेशन सफल हो जाएगा, तो फिर से मीडिया देश में देशभक्ति का गुबार पैदा करने में जुट जाएगा जिससे चुनाव की पूरी हवा भाजपा के पक्ष में रहेगी और विपक्षी दलों के नेता चुनावों के बाद औंधे पड़े होंगे। विपक्ष का भविष्य तभी सुरक्षित होगा, जब सभी विपक्षी दल अपने अहं को पीछे छोड़कर, एक सांझा मंच बनाएं और भाजपा से सीधा मुकाबला करें। 

पाकिस्तान पर हमला करने के जोखिम
उधर पाकिस्तान पर हमला करने के कुछ जोखिम भी हैं। एक तो यह कि पाकिस्तान को सऊदी अरब, चीन और अमरीका की खुली मदद मिल रही है। चीन ने पाक अधिकृत कश्मीर से कराची के बंदरगाह तक जो अपनी सड़क पहुंचाई है उस पर वह किसी किस्म का खतरा बर्दाश्त नहीं करेगा क्योंकि यह सड़क उसके लिए सामरिक और व्यापारिक हित साधने का सबसे बड़ा साधन है। ठंडे पानी के चीन सागर से कराची के गर्म पानी के अरब सागर तक पहुंचने का उसका रास्ता अब साफ हो गया है। इसके अलावा भी अन्य कई कारण हैं जिससे चीन पाकिस्तान के साथ खड़ा है, चाहे चीन के राष्ट्रपति मोदी के साथ कितनी ही झप्पी डालें। 

अगर भारत पाकिस्तान पर हमला करता है, तो चीन भी भारत पर तगड़ा हमला कर सकता है। उधर पाकिस्तान के सेना नायकों को अगर फितूर चढ़ गया और उन्होंने एक एटम बम भारत की तरफ फैंक दिया, तो उत्तर भारत में तबाही मच जाएगी। जनता हाहाकार करेगी। उधर फिर भारत भी चुप नहीं बैठेगा और इस तरह एक आणविक युद्ध छिड़ जाने का खतरा है। हो सकता है कि कुछ भावुक लोग मेरी इस बात को कायराना समझें। पर सोचने वाली बात यह है कि क्या एक बार पाकिस्तान पर हमला करने से आतंकवाद खत्म हो जाएगा? जबकि भारत में आतंकवादियों को पैसा पश्चिमी एशिया, बंगलादेश, अरुणाचल और नेपाल के रास्ते भी आता है। आयरलैंड जैसा देश दशकों तक आतंकवाद पर काबू नहीं पा सका था। 

दरअसल आतंकवाद के अन्य बहुत से कारण भी हैं, जिन पर रातों-रात काबू नहीं पाया जा सकता। इसलिए सरकार जो भी कदम उठाए, उसमें किसी दल का हित न देखकर, राष्ट्र का हित देखना चाहिए। ऐसा न हो कि चुनाव की हड़बड़ी में ऐसे कदम उठा लिए जाएं जिनका समाज और देश की अर्थव्यवस्था पर बरसों तक उलटा असर पड़े और आतंकवाद खत्म होने की बजाय देश में साम्प्रदायिक उन्माद बढ़ जाए। देश की शांति व्यवस्था भंग हो जाए और कारोबार ठप्प होने की स्थिति में आ जाए। आशा की जानी चाहिए कि मोदी जी जो भी करेंगे सही लोगों की सलाह लेकर करेंगे और अपने राजनीतिक स्वार्थ की बजाय राष्ट्र के हित को सर्वोपरि रखेंगे।-विनीत नारायण


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