स्वस्थ बच्चे ही देश को ‘सुपर पावर’ बनाएंगे

punjabkesari.in Friday, Sep 27, 2019 - 03:18 AM (IST)

अगर भारत को विश्व की आॢथक सुपर पावर बनाना है तो उसे उन बीमारियों का खात्मा तो करना ही होगा, जो बच्चों को न केवल मृत्यु का ग्रास बना देती हैं और जो बच जाते हैं उन्हें स्वस्थ नहीं रहने देतीं। लेकिन भारत में बीमारियों के अलावा एक और समस्या है जो लाखों बच्चों के स्वस्थ विकास में बाधा बनती है। यह है कुपोषण, जो सिर्फ एक साल में ही 7 लाख से भी ज्यादा बच्चों की मौत के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है।

देश के हर राज्य में 5 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए यह बड़ा खतरा है। भारत के महत्वाकांक्षी पोषण कार्यक्रम के पूरा होने में अब महज 4 साल का वक्त रह गया है लेकिन कुपोषण की समस्या आज भी गंभीर बनी हुई है। इसका हल निकालना अंतर्राष्ट्रीय समस्या है और टिकाऊ विकास का एजैंडा 2030 के लिए बड़ा मील का पत्थर है। 

डब्ल्यू.एच.ओ. ने 2019 में यह अनुमान लगाया था कि भारत में अल्प विकास और कमजोरी का बोझ क्रमश: 20 और 39 प्रतिशत है जो दक्षिण एशिया की औसत से भी ज्यादा है, जिसमें बंगलादेश और अफगानिस्तान जैसे देश हैं। कई सर्वे और अध्ययनों से यह बात सामने आई है कि भारत में कुपोषण का बोझ बढ़ रहा है। राष्ट्रीय पोषण अभियान देश में कुपोषण के समाधान की कोशिशों में सहायक रहा है लेकिन पर्याप्त क्रियान्वयन और सामुदायिक पहुंच की दिशा में खासा काम किए जाने की जरूरत है। 

सामाजिक-सांस्कृतिक समस्या
एक सामाजिक-सांस्कृतिक समस्या के तौर पर देखा जाने वाला कुपोषण जनसंख्या के लिए महामारी बना हुआ है। अन्य अध्ययनों से पता चला है कि कमजोर सामाजिक-आर्थिक स्थिति, निरक्षरता और पर्याप्त खुराक की प्रक्रियाओं की जानकारी में कमी जैसी वजहों से भारतीय बच्चों में कुपोषण के जोखिम ज्यादा हैं। वैश्विक स्तर पर 5 साल से कम उम्र के लगभग 2 करोड़ बच्चे पोषण की अत्यधिक कमी से जूझ रहे हैं और अभी तक यह बच्चों के लिए बड़ी जानलेवा समस्या बनी हुई है। एन.एफ.एच.एस.-4 के मुताबिक, भारत में 5 साल से कम आयु के 7.5 फीसदी बच्चे बुरी जिंदगी से जूझ रहे हैं। 

भारत और दुनिया भर में बच्चों में एस.ए.एम., यानी ऐसे बच्चे जिनमें अत्यधिक कुपोषण है, की पहचान और समाधान के लिए संस्थागत (अस्पताल आधारित) व्यवस्था का व्यापक स्तर पर उपयोग किया जाता रहा है। इस क्रम में भारत सरकार ने वर्ष 2011 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय) की मदद से कुपोषण पुनर्वास केंद्रों के लिए गंभीर कुपोषण से पीड़ित बच्चों के सुविधा आधारित प्रबंधन पर पहली बार दिशा-निर्देश जारी किए थे, जिनका अब नीति आयोग द्वारा चिन्हित आकांक्षी जिलों में परिचालन हो रहा है। 

वर्ष 2018 में भारत सरकार ने भारत में कुपोषण की समस्या से पार पाने के लिए एक बहुआयामी योजना पोषण अभियान की पेशकश की थी। इसके अलावा 6 साल से कम उम्र के बच्चों और उनकी माताओं में कुपोषण व स्वास्थ्य समस्याओं के निदान के वास्ते पोषण अभियान के प्रयासों को सफल बनाने में एकीकृत बाल विकास सेवाएं (आई.सी.डी.एस.) खासी अहम साबित हुई हैं। इस साल पहले पोषण माह के आयोजन के मौके पर देश भर में राज्य से ग्राम स्तर तक कई गतिविधियों का आयोजन किया जा रहा है। 

एस.ए.एम. एक बोझ
भारत में एस.ए.एम. निश्चित रूप से बोझ है और सिर्फ अस्पतालों में एस.ए.एम. उपचार की सीमित उपलब्धता से प्राथमिक स्तर पर इसका उपचार असंभव है। इस प्रकार की सीमाओं के चलते समाज में एस.ए.एम. के साथ जीवन बिता रहे बच्चों की बड़ी संख्या का पता नहीं चल पाता है और उनका उपचार नहीं हो पाता है। एस.ए.एम. से पीड़ित बच्चों के उपचार हेतु एक आदर्श समाधान के रूप में गंभीर कुपोषण के लिए समुदाय आधारित रणनीति, समुदाय आधारित प्रबंधन (सी.एम.ए.एम.) से समय से पता लगाने में मदद मिल सकती है और सामुदायिक स्तर पर एस.ए.एम. का उपचार किया जाता है। 

जहां कुपोषण का इलाज अहम है, वहीं बचाव के लिए ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है। गर्भधारण और दूसरे साल के अंत से 1000 दिन मस्तिष्क के विकास के लिहाज से खासे अहम होते हैं। इस अवधि के दौरान पर्याप्त पोषण सुनिश्चित होने से बच्चों के स्वस्थ होने और भविष्य में बेहतर जीवन जीने की संभावनाएं बढ़ती हैं। मां के गर्भ में पल रहे शिशु, शैशव अवस्था और बचपन के साथ ही किशोर अवस्था तक के जीवन चक्र में देखभाल की सलाह दी जाती है। इस बात के पक्के प्रमाण हैं कि स्तनपान सहयोग और परामर्श, उपयुक्त पूरक आहार, संक्रमण से बचाव और विकास की निगरानी ऐसी कुछ रणनीतियां हैं जिनसे बच्चों के पोषण में सुधार किया जा सकता है। देश को मजबूत बनाना है तो बच्चों को कुपोषण से बचाना ही होगा।-मधुरेन्द्र सिन्हा
 


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