क्या इंडिया गठबंधन ने आत्मघाती बटन दबा दिया है?

punjabkesari.in Wednesday, Feb 12, 2025 - 05:38 AM (IST)

दिल्ली विधान सभा चुनावों में भाजपा की जीत के सुखाभास और ‘आप’ की हार की निराशा के मध्य इस बात का विश्लेषण करना आसान हो गया है कि क्या इंडिया गठबंधन ने लोक सभा चुनावों में अच्छे प्रदर्शन के बाद अपनी प्रासंगिकता और स्वरूप खो दिया है, विशेषकर दिल्ली में ‘आप’ और कांग्रेस की विफलता के बाद दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले से कमजोर हो रहे इंडिया गठबंधन के लिए और चुनौतियां पैदा हो गई हैं।  

कुछ लोगों का आरोप है कि कांग्रेस ने भाजपा की जीत में योगदान दिया है, हालांकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता इसे गलत बता रहे हैं क्योंकि चुनाव से पूर्व ‘आप’ ने गठबंधन की संभावना से इंकार कर दिया था। दिल्ली में भाजपा की जीत के बाद जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा,‘‘और लड़ो आपस में।’’ यही बात शिव सेना-उद्धव ठाकरे गुट ने भी दोहराई और कहा कि यदि ऐसा ही रहा तो फिर गठबंधन क्यों बनाए जाएं। समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस की यह कहते हुए आलोचना की कि उसका दृष्टिकोण गलत है तथा धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक शक्तियों में विभाजन का कारण है। 

पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के इस कदम को लेकर तृणमूल कांग्रेस में चिंता, संदेह पैदा हो रहा है क्योंकि वहां अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने हैं और वहां पर कांग्रेस इसी की पुनरावृत्ति कर सकती है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने इंडिया गठबंधन को खंडित बताया है। अब्दुल्ला ने इसे भंग करने का आह्वान किया है तो राजद के तेजस्वी ने पूछा है कि इसका नेतृत्व कौन करेगा और इसका एजैंडा क्या होगा। यह गठबंधन किस तरह आगे बढ़ेगा, इस बारे में कोई चर्चा नहीं हुई है। यह स्पष्ट नहीं है कि हम एकजुट रहेंगे या नहीं। हालांकि कांग्रेस दिल्ली में अपना खाता खोलने में विफल रही है, किंतु उसके मत प्रतिशत में 2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और 14 सीटों पर उसके उम्मीदवार दूसरे स्थान पर आए हैं और उन्होंने इन सीटों पर ‘आप’ के उम्मीदवारों को तीसरे स्थान पर धकेला है।  सभी लोग जानते हैं कि आप और कांग्रेस दोनों ही परस्पर विरोधी सहयोगी हैं। इंडिया गठबंधन में ‘आप’ के प्रवेश का कांग्रेस ने विरोध किया था और उसने ‘आप’ को इंडिया गठबंधन की समन्वय बैठकों में बुलाने से इंकार कर दिया था। 

दिल्ली चुनाव में हार के बाद ‘आप’ की पंजाब इकाई में भी हलचल दिखाई देने लगी है। पंजाब के कुछ विधायक पार्टी के दिल्ली नेतृत्व से नाराज हैं, जिनका राज्य के प्रशासन पर प्रभाव है और वे अपने विकल्पों पर विचार कर सकते हैं। वस्तुत: पंजाब के विधायकों के साथ केजरीवाल की बैठक का उद्देश्य उनमें असंतोष को दूर करना था। कुछ विपक्षी नेताओं ने भविष्यवाणी की है कि पंजाब में भी ‘आप’ का इसी तरह पतन होगा, जहां पर लोकसभा चुनावों में पार्टी के 13 में से केवल 3 उम्मीदवार जीते थे। कुछ लोगों का मानना है कि केजरीवाल अब पंजाब की राजनीति में सीधी भूमिका निभाने पर विचार कर सकते हैं।

आज की पेशेवर राजनीति में राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इंडिया गठबंधन सभी व्यावहारिक प्रयोजनों के लिए मृतप्राय: हो गया है क्योंकि उसने आत्मघाती बटन दबा दिया है और वह कभी भी विस्फोट का रूप ले ले सकता है और किसी भी क्षण क्षेत्रीय दल कांग्रेस के साथ अपने संबंधों की समीक्षा कर सकते हैं क्योंकि जो सहयोगी दल कांग्रेस के साथ गठबंधन कर अपनी शक्ति के साथ समझौता करते हैं, वे अंतत: कांग्रेस को मजबूत करते हैं और कांग्रेस भाजपा का मुकाबला करने में विफल रहती है। पाॢटयों का यह भी कहना है कि उनके योगदान के कारण लोकसभा में विपक्ष के नेता बने राहुल गांधी उनकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इंडिया गठबंधन को भाजपा के दृढ़ निश्चय का मुकाबला करना होगा साथ ही वाक् शैली और संसाधनों के मामलों में भी उसके समकक्ष आना होगा। किसी भी गठबंधन की स्थिरता इस बात पर निर्भर करती है कि उसे किस ढांचे में खड़ा किया गया है।

विरोधाभास के इस दिमागी खेल में जहां पर रणनीतियां वोट बैंक से लाभ उठाने के लिए बनाई जाती हैं, विपक्ष के लिए एकजुट होना आसान नहीं, क्योंकि इंडिया गठबंधन के घटक दलों के अपने क्षेत्रीय गढ़ हैं और इसीलिए उनके बीच आपस में टकराव भी है और इन सबसे मुकाबला करने के लिए दूरदर्शिता और लचीलेपन की आवश्यकता है। कुल मिलाकर यदि इंडिया गठबंधन अपने अस्तित्व को बचाना चाहता है तो उसे भाजपा विरोध से परे जाकर बहुत कुछ करना होगा। उसे लोकप्रिय दिखने और लोगों के हितों की देखभाल करने के बीच एक सही संतुलन बनाना होगा। हमें इस बात को ध्यान में रखना होगा कि एक कमजोर और विभाजित विपक्ष, चाहे उसे कोई भी नाम दे दो, कमजोर विपक्ष ही रहेगा।-पूनम आई. कौशिश
 


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