नागरिकों की स्वतंत्रता के साथ ‘खिलवाड़’ कर रही सरकार

punjabkesari.in Saturday, Jan 18, 2020 - 12:53 AM (IST)

सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले द्वारा बोलने तथा अभिव्यक्ति की आजादी की हमारी धारणा के बारे में सबसे ज्यादा जरूरी समझे जाने वाले विस्तृत तथा विशेष दिशा-निर्देश देकर राष्ट्र के लिए एक मिसाल कायम की है। कश्मीर टाइम्स की आडिटर अनुराधा भसीन तथा कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद ने जम्मू-कश्मीर में स्वतंत्रता पर लगे प्रतिबंधों को चुनौती देने के लिए याचिकाएं दायर की थीं। केन्द्र सरकार को फटकार लगाते हुए अदालत ने यह भी कहा था कि इंटरनैट को अनिश्चितकाल तक बंद रखना शक्ति का दुरुपयोग है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 144 का बार-बार इस्तेमाल मतभेदों को दबाने के लिए नहीं किया जा सकता। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए यह अहम फैसला है। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी व्यवस्था में स्पष्ट तौर पर कहा है कि विचारों की अभिव्यक्ति तथा इंटरनैट के माध्यम से व्यापार करना संविधान द्वारा यकीनी बनाए गए अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हिस्सा है। इसलिए इंटरनैट सेवाओं पर अनिश्चितकालीन प्रतिबंध अनुचित है। 

पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा है कि दिन से लेकर रात तक इंटरनैट की महत्ता को कम नहीं आंका जा सकता। इंटरनैट के इस्तेमाल से हम अपनी गतिविधियों को आगे बढ़ाते हैं। मैं सर्वोच्च न्यायालय की दूरदर्शी स्वतंत्रता की धारणा का सम्मान करता हूं। सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि धारा 144 का नागरिकों के अधिकार को दबाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इस कड़ी टिप्पणी द्वारा सत्ताधारी लोगों को आईना दिखाया गया है। पीठ ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इस प्रावधान का इस्तेमाल आपातकाल, बाधा को रोकने के दौरान ही हो सकता है।

जम्मू-कश्मीर में नैट का शटडाऊन किसी भी लोकतंत्र में सबसे लम्बा चला 
घाटी में मोबाइल फोन, लैंडलाइन्स तथा इंटरनैट सेवाओं पर 4 अगस्त 2019 को प्रतिबंध लगा था। एक अंतर्राष्ट्रीय वकालत समूह का कहना है कि जम्मू-कश्मीर में नैट का शटडाऊन किसी भी लोकतंत्र में सबसे लम्बा चला है। यू.के. की एक तकनीकी खोज फर्म ने हाल ही में कहा था कि घाटी में नैट पर प्रतिबंध से भारतीय अर्थव्यवस्था को पिछले वर्ष 1.3 बिलियन अमरीकी डालर का नुक्सान झेलना पड़ा है। यह शर्मनाक बात है। मुझे पूरा यकीन है कि इस बात ने देश की आर्थिक मंदी को और बढ़ाया है।

यह खेदजनक बात है कि विश्वभर में इंटरनैट शटडाऊन की सूची में भारत अव्वल नम्बर पर है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस मामले को बड़ी ही गम्भीरतापूर्वक लेना चाहिए। विश्व के पटल पर भारत की साख दाव पर लगी है। यह जगजाहिर है कि इंटरनैट सेवाएं ज्यादातर यू.पी., दिल्ली तथा कर्नाटक में नागरिकता संशोधन कानून (सी.ए.ए.) के विरुद्ध प्रदर्शनों के चलते बंद थीं। यह मुद्दा बेहद चिंताजनक है। जिस तरह नागरिकों की स्वतंत्रता के साथ केन्द्र सरकार खिलवाड़ कर रही है उसको देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर इसको झटका दिया है। 

कोई भी राष्ट्र अपने शानदार भूतकाल के बल पर महान बनता है
वर्तमान की जटिलताओं के बीच हमारी सरकार से यह अपेक्षित है कि वह यह जाने कि आखिर लोग क्या चाहते हैं। चिकनी मिट्टी सांचे में ढल जाती है मगर कुम्हार उसे अपने दिमाग से नई शक्ल देता है। सरकार लोगों के दिमाग पढऩे में नाकाम रही है। राजनीति के सकारात्मक तथा नकारात्मक पहलू हैं। मगर बड़ी बात यह है कि आप राष्ट्र की छवि को किस तरह देखते हैं। यह सत्ताधारी लोगों पर निर्भर करता है कि वे हालातों पर अपना क्या रवैया अपनाते हैं? अब वर्तमान के हालात को ही लेकर चलें तो यह खतरे की घंटी है। जब तक वैध लोकतांत्रिक सेफ्टी वाल्व लोगों की मुश्किलों को भांपने के लिए सहायक है तब तक सुलह तथा पुननिर्माण की उम्मीद जागती रहेगी। कोई भी राष्ट्र अपने शानदार भूतकाल के बल पर महान बनता है।

समझौतों की श्रृंखला से इसको स्थिर नहीं किया जा सकता। आधुनिक भारत की एक संतुलित दृष्टि यह मांग करती है कि सभी समुदायों को हम साथ लेकर आगे बढ़ें। हमें निरंतर ही याद रखना होगा कि हिम्मत तथा कड़े निर्णय लेने वाले व्यक्ति इतिहास के पन्नों पर अपनी छाप छोड़ते हैं। सत्ताधारी लोगों की बदलती जरूरतों के प्रति और ज्यादा जिम्मेदार होना होगा। मुझे भरोसा है कि सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला देश के शासकों के मनों को बदलेगा। सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के बाद प्रशासनिक ढांचे को नई दिशा देनी चाहिए। यह सब कुछ प्रधानमंत्री तथा उनके मंत्रियों पर निर्भर करता है। 
हरि जयसिंह  -hari.jaisingh@gmail.com


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