ई.वी.एम.-वी.वी.पैट : मतदाताओं को है जानने का हक

punjabkesari.in Friday, Apr 05, 2024 - 05:11 AM (IST)

पिछले  दिनों देश की शीर्ष अदालत ने एक जनहित याचिका का संज्ञान लेते हुए चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया। नोटिस में अदालत ने चुनाव आयोग से पूछा कि भारत की चुनाव प्रणाली में इस्तेमाल की जाने वाली ‘इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन’ (ई.वी.एम.) और उसके साथ जुड़ी ‘वोटर वैरीफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल’ (वी.वी.पैट.) मशीन का शत-प्रतिशत मिलान क्यों न किया जाए? चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने की दृष्टि से याचिकाकत्र्ता की इस मांग को उचित मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह नोटिस जारी किया। विपक्षी दलों द्वारा इस मिलान की मांग काफी समय से की जा रही है। परंतु न तो चुनाव आयोग और न ही शीर्ष अदालत ने इन मांगों पर ध्यान दिया। सभी को यही लगता था कि जब भी विपक्ष चुनाव हारता है तभी ई.वी.एम. पर शोर मचाता है। 

ऐसा नहीं है कि किसी एक दल के नेता ही ई.वी.एम. की गड़बड़ी या उससे छेड़छाड़ का आरोप लगाते आए हैं। इस बात के अनेकों उदाहरण हैं जहां हर प्रमुख दलों के नेताओं ने कई चुनावों के बाद ई.वी.एम. में गड़बड़ी का आरोप लगाया है। चुनाव आयोग की बात करें तो वह इन आरोपों का शुरू से ही खंडन कर रहा है। आयोग के अनुसार ई.वी.एम. में गड़बड़ी की कोई गुंजाइश ही नहीं है। 1998 में दिल्ली, राजस्थान और मध्य प्रदेश के विधान सभा की कुछ सीटों पर ई.वी.एम. का इस्तेमाल हुआ था। परंतु 2004 के आम चुनावों में पहली बार हर संसदीय क्षेत्र में ई.वी.एम. का पूरी तरह से इस्तेमाल हुआ। 2009 के चुनावी नतीजों के बाद इसमें गड़बड़ी का आरोप भाजपा द्वारा लगा। गौरतलब है कि दुनिया के 31 देशों में ई.वी.एम. का इस्तेमाल हुआ परंतु खास बात यह है कि अधिकतर देशों में इसमें गड़बड़ी की शिकायत के बाद वापस बैलट पेपर के जरिए ही चुनाव किए जाने लगे। 

वी.वी.पैट व्यवस्था के तहत वोट डालने के तुरंत बाद कागज की एक पर्ची छपती है। इस पर्ची पर वोटर द्वारा जिस उम्मीदवार को वोट दिया गया है, उनका नाम और चुनाव चिह्न छपा होता है। इससे वोटर को इस बात की संतुष्टि हो जाती है कि उसने जिसे वोट दिया उसी को वोट मिला। इसके साथ ही किसी भी तरह के विवाद की स्थिति में ई.वी.एम. में पड़े वोटों का इन पॢचयों से मिलान भी किया जा सके। 2013 में वी.वी.पैट को भारत इलैक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और इलैक्ट्रॉनिक कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा बनाया गया था। 2014 में चुनाव आयोग ने यह निर्णय लिया कि 2019 के आम चुनावों में सभी ई.वी.एम. के साथ वी.वी.पैट का इस्तेमाल हो। ई.वी.एम. में गड़बड़ी की आशंका को दूर रखने की मंशा से फिलहाल हर निर्वाचन क्षेत्र की किसी भी 5 रैंडम ई.वी.एम. का ही वी.वी. पैट से मिलान होता है। याचिका में मांग की गई कि भारत के चुनाव आयोग ने लगभग 24 लाख वी.वी.पैट खरीदने के लिए 5 हजार करोड़ रुपए खर्च किए हैं, परंतु केवल 20,000 वी.वी.पैट की पॢचयों का ही मिलान होता है।

जनता के कर से दिए गए पैसों से बनी इन मशीनों का जब सभी मतदान केंद्रों पर इस्तेमाल होता है तो इसका मिलान करने में दिक्कत क्या है? आखिर मतदाता को इस बात की जानकारी लेने का पूरा हक है कि उसके द्वारा दिए गए वोट, उसी के द्वारा चुने गए उम्मीदवार को मिले किसी अन्य को नहीं। याचिका में कहा गया है कि  ‘चुनाव न केवल निष्पक्ष होना चाहिए बल्कि निष्पक्ष दिखना भी चाहिए क्योंकि सूचना के अधिकार को भारत के संविधान के आर्टिकल 19(1)(ए) और 21 के संदर्भ में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हिस्सा माना गया है। कोर्ट ने इसी अधिकार के तहत इस याचिका को स्वीकार किया और नोटिस जारी किया।

जब भी कभी कोई प्रतियोगिता होती है तो उसका संचालन करने वाले शक के घेरे में न आएं इसलिए उस प्रतियोगिता के हर कृत्य को सार्वजनिक रूप से किया जाता है। आयोजक इस बात पर खास ध्यान देते हैं कि उन पर पक्षपात का आरोप न लगे।इसीलिए जब भी कभी आयोजकों को कोई सुझाव दिए जाते हैं तो यदि वे उन्हें सही लगें तो उसे स्वीकार लेते हैं। ऐसे में उन पर पक्षपात का आरोप नहीं लगता। ठीक उसी तरह एक स्वस्थ लोकतंत्र में होने वाली सबसे बड़ी प्रतियोगिता चुनाव हैं। उसके आयोजक यानी चुनाव आयोग को उन सभी सुझावों को खुले दिमाग से और निष्पक्षता से लेना चाहिए। 

चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है, इसे किसी भी दल या सरकार के प्रति पक्षपात होता दिखाई नहीं देना चाहिए। यदि चुनाव आयोग ऐसे सुझावों को जनहित में लेती है तो मतदाताओं के बीच भी एक सही संदेश जाएगा, कि चाहे ई.वी.एम. पर गड़बडिय़ों के आरोप लगें पर चुनाव आयोग किसी भी दल के साथ पक्षपात नहीं करता। यदि ई.वी.एम. की गुणवत्ता पर और उसकी कार्य पद्धति पर चुनाव आयोग को पूरा विश्वास है तो इस याचिका पर अपनी प्रतिक्रिया सर्वोच्च अदालत में अविलंब दे देनी चाहिए। इसके साथ ही संपूर्ण वी.वी.पैट के मिलान की मांग पर एक समयबद्ध ऑनलाइन सर्वेक्षण भी करा लेना चाहिए। इससे यदि मतदाता को भी कुछ सुझाव देने होंगे तो वह भी चुनाव आयोग के पास आ जाएंगे। ऐसे में निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए जानी जाने वाली संस्था भी जनता के बीच अपना पक्ष रख पाएगी। यदि चुनाव आयोग को याचिका की मांगों पर आपत्ति नहीं है तो आगामी लोकसभा चुनावों में ऐसा प्रयोग कर ही लेना चाहिए। ऐसा करने से दूध का दूध और पानी का पानी सामने आ जाएगा। इतना ही नहीं भारत जैसे मजबूत लोकतंत्र को और मजबूती भी मिलेगी।-रजनीश कपूर
 


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