भारत व अन्य दक्षिण एशियाई देशों का भविष्य आर्थिक एकीकरण में निहित

punjabkesari.in Sunday, Jun 04, 2023 - 04:28 AM (IST)

द्वितीय विश्व युद्ध की राख से उभरने वाले दक्षिण एशिया ने शायद दुनिया के किसी भी अन्य क्षेत्र की तुलना में अपनी खुद की मुक्ति का सबसे गंभीर खामियाजा भुगता है। 1947 में भारत का विभाजन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के युग की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक है। सबसे भीषण परिस्थितियों में 20 लाख से अधिक लोग मारे गए और अन्य 2 करोड़ या उससे अधिक को उनके घर और चूल्हे से उखाड़ दिया गया, जिसे वे सदियों से नहीं तो दशकों तक घर के रूप में जानते थे। 

बर्मा ने जनवरी 1948 में स्वतंत्रता प्राप्त की, श्रीलंका ने 1948 में। हालांकि नेपाल 1923 में एंग्लो-नेपाल संधि के संदर्भ में स्वतंत्र हो गया, लेकिन इसके बाहरी संबंध वास्तव मेें अंग्रेजों द्वारा निर्देशित होते रहे। इसी तरह भूटान भी 8 जनवरी, 1910 को हस्ताक्षरित पुनाखा संधि के संदर्भ में अंग्रेजों के साथ एक सहायक गठबंधन में था, जिसने इसके विदेशी मामलों पर नियंत्रण किया। मालदीव ने 26 जुलाई, 1965 को अंग्रेजों से स्वतंत्रता प्राप्त की। अफगानों ने अंग्रेजों के साथ 1839-42, 1878-1880 और 1919 में 3 युद्ध लड़े। अंत में 8 अगस्त, 1919 को एंग्लो अफगान संधि, जिसे रावलपिंडी की संधि के तौर पर भी जाना जाता है, तीसरे युद्ध को समाप्त कर दिया। अंग्रेजों ने अफगानिस्तान की स्वतंत्रता को मान्यता दी। 

औपनिवेशिक शोषण, लूटमार, और अंग्रेजों द्वारा की गई अत्यधिक ज्यादतियों की सांझा विरासत को देखते हुए यह उपमहाद्वीप, जो पश्चिम में ईरान की सीमाओं से लेकर पूर्व में थाईलैंड की सीमाओं तक फैला हुआ है, लेकिन इस विस्तार ने इस क्षेत्र में आंतरिक रूप से अंतर्निहित सहक्रियाओं का लाभ उठाते हुए एक एकीकृत इकाई बनाने के लिए एक-दूसरे के साथ मिलकर काम किया।

जवाहरलाल नेहरू ने 23 मार्च-2 अप्रैल 1947 को नई दिल्ली में एशियाई संबंध सम्मेलन की मेजबानी करके भारत के औपचारिक रूप से स्वतंत्र होने की शुरुआत कर दी थी। सम्मेलन विश्व मामलों की भारतीय परिषद (आई.सी.डब्ल्यू.ए.) द्वारा आयोजित किया गया था। इसके परिणामस्वरूप एशियाई संबंध संगठन का गठन हुआ। इसके बाद 1950 में फिलीपींस के बगुइओ में दूसरा सम्मेलन हुआ। हालांकि तब तक आयरन कर्टन पूरे यूरोप से उतर चुका था।

विंस्टन चर्चिल ने 5 मार्च, 1946 को मिसौरी में फुल्टन फॉल्स में अपने भाषण में शीत युद्ध की शुरुआत को रेखांकित करने के लिए उपयुक्त रूप से इस रूपक का इस्तेमाल किया था। इसने बहुत जल्द 25 जून, 1950 को शुरू हुए कोरियाई युद्ध के साथ एशिया को प्रभावित करना शुरू कर दिया। हालांकि दुनिया अभी दूसरे विश्व युद्ध की अकथनीय भयावहता से उभरी थी, जिसमें 60 लाख लोग मारे गए थे (लोगों की एक पूरी नस्ल यहूदियों का नरसंहार देखा था)। 1945 के अगस्त तक कोलोन और कोवेंट्री से नानजिंग और नागासाकी तक के शहर मलबे में बदल गए थे। युद्ध ने हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर परमाणु बम के उपयोग की विनाशकारी क्षमता को देखा। इसलिए यह तर्क दिया गया कि दक्षिण एशिया के नेतृत्व को एक ऐसी व्यवस्था की दिशा में काम करना चाहिए था जो निकट सहयोग की सुविधा प्रदान करे। 

दुनिया के अन्य देशों ने सामान्य बाजार और ऐसे अन्य आॢथक तंत्र बनाने की दिशा में छोटे कदम उठाने शुरू कर दिए थे। यूरोप में पहले विश्व युद्ध में 17 लाख लोगों को खोने के बावजूद और द्वितीय विश्व युद्ध में मारे गए 60 लाख में से 40 लाख से अधिक के बावजूद, यूरोपीय कोयला और इस्पात समुदाय (ई.सी.एस.सी.) की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के 6 वर्षों के भीतर 1951 की शुरुआत में की गई थी। 1957 तक इसने रोम की संधि के तत्वावधान में यूरोपीय आॢथक समुदाय की स्थापना का मार्ग प्रशस्त कर दिया था। ब्रिटेन के विंस्टन चॢचल, फ्रांस के चाल्र्स डी गॉल, जर्मनी के कोनराड एडेनॉयर और ऐसे अन्य दूरदर्शी राजनेताओं के प्रयासों ने फल दिया और यूरोप की लंबी शांति, जो अपने साथ अविश्वसनीय समृद्धि लेकर आई, 1990 के दशक की शुरुआत में बाल्कन संघर्ष और फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूसी आक्रमण द्वारा दो बार बिखर गई। 

अन्यत्र भी एकीकरण की बयार बह रही थी। नव-मुक्त अफ्रीकी राष्ट्रों ने एक साथ बंधना शुरू कर दिया। 25 मई, 1963 को अदीस अबाबा, इथियोपिया में 32 अफ्रीकी राज्य, जिन्होंने उस समय स्वतंत्रता प्राप्त की थी, अफ्रीकी एकता संगठन (ओ.ए.यू.) की स्थापना के लिए सहमत हुए। यह अब एक 54 राष्ट्रों के संगठन में विस्तारित हो गया है और इसने खुद को अफ्रीकी संघ के रूप में पुन: ब्रांडेड कर लिया है। अमरीकी राज्यों के संगठन (ओ.ए.एस.) की स्थापना अप्रैल 1948 में ही की गई थी। अमरीका, कनाडा और मैक्सिको के बीच उत्तर अमरीकी मुक्त व्यापार समझौता (नाफ्टा) 1994 में स्थापित किया गया था। 

यहां तक कि दक्षिण प्रशांत के छोटे द्वीप राष्ट्रों में पापुआ न्यू गिनी सहित 22 देशों का मजबूत प्रशांत समुदाय है, जिसका प्रधानमंत्री ने हाल ही में दौरा किया था। हालांकि दक्षिण एशिया में एक संस्था, जिसे 1985 में दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) बनाया गया था, को भारत-पाकिस्तान की तीक्षणता ने निरर्थक बना दिया है। दक्षिण एशिया 2 अरब से अधिक लोगों का घर है। इसकी एक बहुत ही युवा जनसांख्यिकीय है। इसमें कुछ सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाएं शामिल हैं। 

भारत और दक्षिण एशिया के अन्य राष्ट्रों को भी समझने की जरूरत है कि भविष्य आॢथक एकीकरण, सीमा शुल्क संघ, माल की मुक्त आवाजाही, सेवाओं, सांस्कृतिक प्रभावों और शेष क्षेत्र में रचनात्मक और आॢथक क्षमता के साथ न्याय करने में निहित है। पहले से ही सोशल मीडिया और इंटरनैट ने नक्शे पर लाइनों को बेमानी बना दिया है। हमें जिस चीज से छुटकारा पाने की जरूरत है, वह है मन में रेखाएं। इसलिए दक्षिण एशिया को ऐसे राजनेताओं की आवश्यकता है जो क्षितिज से परे भविष्य की ओर देख सकें।-मनीष तिवारी
 


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