कट्टरवाद हमारे सामने एक चुनौती के रूप में खड़ा है

punjabkesari.in Tuesday, May 10, 2022 - 06:45 AM (IST)

हमारे देश में पिछले दिनों में कई ऐसी घटनाएं हुईं, जिनसे देश में साम्प्रदायिक तनाव उत्पन्न हुआ। कई प्रकार के विवाद, जैसे हिजाब और मस्जिदों पर लगे लाऊडस्पीकर का विवाद, लेकिन थोड़े समय के तनाव के बाद फिर से हम एक हैं। मैं उत्तर प्रदेश में योगी सरकार द्वारा हल किए गए लाऊडस्पीकर विवाद की सराहना करता हूं। योगी जी ने मस्जिद ही नहीं मंदिरों के लाऊडस्पीकरों की आवाज भी धीमी करा दी और इसकी शुरूआत भी उन्होंने गोरखपुर के गोरक्ष मठ से की। ध्वनि प्रदूषण की कमी के लिए यह उनका सराहनीय कदम है। 

रमजान माह खत्म हो चुका है। इस बार बेहद सख्त गर्मी झेल कर जिन लोगों ने खुदा की इबादत में रोजे रखे, उनके जज्बे को सलाम है। रमजान की सख्त कवायदों के बाद ईद खुशियों का और शुक्रिया करने का त्यौहार था। पिछले 2 सालों से त्यौहारों की खुशियां कोरोना महामारी ने लील लीं। इस बार कुछ राहत है। मैं छोटे-से कस्बे से हूं। देखता आया हूं कि दीवाली हो या ईद-होली, हर त्यौहार पर हम हिन्दू-मुस्लिम सभी आपस में पकवान-मिठाई आदि एक-दूसरे के घरों में भेजते हैं। एक-दूसरे के हर सुख-दुख में शामिल होते हैं। फिर क्यों ऐसा होता है कि हम एक-दूसरे पर शक करने लगते हैं। दरअसल मेरा मानना है कि इसके पीछे कुछ कुत्सित मानसिकता के लोग तो हैं ही, जिन्होंने अनेक प्रकार की गलतफहमियां एक-दूसरे के प्रति मनों में भर दी हैं। 

आज से 20-25 साल पहले ऐसा नहीं था। कम से कम भारत में मुसलमानों का रहन-सहन, पहनावा सब मिला-जुला था। बाद में इनमें से अनेक लोगों ने अपनी मुस्लिम पहचान बनानी शुरू कर दी। दाढ़ी रखना, गोल टोपी लगाना शुरू कर दिया। एकाएक मदरसे खुलने शुरू हो गए और उसी समय लादेन ने अमरीका पर आतंकी हमला कर दिया और आई.एस.आई.एस. जैसा खूंखार संगठन ईराक-सीरिया में खड़ा हो गया। अफगानिस्तान में तालिबान, यानी मदरसों में पढऩे वाले छात्रों के संगठन ने देश की सत्ता हथिया ली और शरियत के नाम पर ऊलजुलूल कारनामे किए। इस प्रकार की घटनाओं ने मुसलमानों की छवि दुनिया भर में खराब की और भारत भी इससे अछूता नहीं रहा। 

इसके अलावा देश में भी राजनीतिक फायदों के लिए अनेक टकराव वाले काम हुए। अयोध्या विवाद, शाहबानो प्रकरण आदि। यहां एक बात और मैं कहना चाहूंगा कि भारत में कुछ राजनीतिक दलों ने मुसलमानों को दिया तो कुछ नहीं, बस उनका इस्तेमाल वोट के लिए किया। इन सबके बीच एक साधारण मुसलमान पिस कर रह गया। इसी के कारण तुष्टीकरण शब्द आया, लेकिन संतुष्टि किसकी हुई? 

इन सब के बीच कुछ भी हुआ हो, लेकिन मुझे नहीं लगता भारत का मुसलमान अपवादों को छोड़ कर देश के विरुद्ध गया हो। कश्मीर में पाकिस्तान की ओर से आए उग्रवाद का भारत के मुसलमानों ने कभी समर्थन नहीं किया। देश के विरुद्ध उठने वाली हर आवाज का विरोध ही किया। आम भारतीय मुसलमान हमेशा भाईचारे और सुकून से रहना चाहता है। यह एक कटु सत्य है कि कुछ समय से कट्टरवाद  दोनों तरफ बढ़ा है। आज हम सबके सामने यह एक चुनौती के रूप में खड़ा है। हम यही कामना करते हैं कि हमारे देश से कट्टरवाद खत्म हो। एक-दूसरे के प्रति गलतफहमियां खत्म हों, तभी हम और हमारा देश तरक्की कर सकेगा।-वकील अहमद 
 


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