दंड से मुक्ति, इसी का नाम है ‘उत्तर प्रदेश’

punjabkesari.in Sunday, Oct 11, 2020 - 01:16 AM (IST)

29 सितम्बर 2020 को सफदरजंग अस्पताल में एक युवा लड़की की मृत्यु हो गई। एक मैजिस्ट्रेट को 22 सितम्बर को दिए गए अपने बयान में लड़की ने कहा था कि उस पर 14 सितम्बर को हमला करने के बाद उससे दुष्कर्म हुआ। इस मामले में उसने अपने हाथरस जिले के बूलागढ़ी गांव से संबंधित 4 लड़कों के नाम का रहस्योद्घाटन किया। जब उसकी मौत हुई पुलिस जल्दबाजी में उसका मृत शरीर गांव ले गई और देर रात्रि अढ़ाई बजे 30 सितम्बर को संस्कार कर दिया। 

यह लड़की दलित परिवार से संबंध रखती थी। गिरफ्तार हुए 4 व्यक्तियों के रिश्तेदारों ने कहा कि मृत लड़की का परिवार एक नीची जात से संबंधित है जिसे वह छूते नहीं। भारत में ऐसे हजारों बूलागढ़ी हैं। जहां पर कुछ दलित परिवार रहते हैं। दलितों के पास न के बराबर भूमि होती है। आमतौर पर ये लोग अलग-थलग आबादी में रहते हैं और कम वेतन वाले कार्य करते हैं। ये लोग अन्य प्रभावशाली जात से संबंध रखने वाले लोगों के अधीन काम करते हैं। पीड़िता के पिता के पास 2 भैंसें तथा 2 बीघा जमीन है और एक नजदीकी स्कूल में सफाई कर्मी के तौर पर पार्ट टाइम कार्य करते हैं। महान सामाजिक कार्यकत्र्ता जैसे महात्मा फूले, परियार  ई.वी. रामासामी, बाबा साहब अम्बेदकर तथा अन्यों ने इनके लिए बहुत कार्य किए। दलितों ने राजनीतिक तौर पर अपने आपको कुछ राज्यों में संगठित किया मगर इनकी दशा थोड़ी बेहतर हुई है। 

अनियंत्रित अपराध
भारत में दुष्कर्म पूरी तरह से पैर जमाए हुए है। एन.सी.आर.बी. द्वारा एकत्रित आंकड़े कहते हैं कि 2019 में (पी.ओ.सी.एस.ओ. मामलों को निकाल कर)महिलाओं के खिलाफ 32033 दुष्कर्म के मामले हुए जिनमें से 3065 केवल उत्तर प्रदेश में ही हुए। दुष्कर्म के कई मामलों को अपराध के तौर पर रजिस्टर किया गया है। इनकी जांच हुई है तथा इस पर फैसले दिए गए हैं। आपराधिक दर 28 प्रतिशत की है। कई दोषियों को सजा दिलाई गई है। किसी अपराध के बाद देश भर में शोरोगुल होता है मगर कुछ समय के बाद सब सुस्त पड़ जाता है। कुछ मामले तो ऐतिहासिक घटनाएं बन जाती हैं। बूलागढ़ी मामला इनमें से एक है। 

महामारी ने सबको लिया चपेट में
बूलागढ़ी मामला एक ऐसा मामला है जिसमें एस.एच.ओ. से लेकर एस.पी., जवाहर लाल नेहरू मैडीकल कालेज के पिं्रसीपल से लेकर डिस्ट्रिक मैजिस्ट्रेट तक तथा ए.डी.जी.पी. से लेकर राज्य के मुख्यमंत्री को एक  वायरस की तरह संक्रमित कर रखा है। इस वायरस को ‘दंड मुक्ति’ की संज्ञा दी गई है। उत्तर प्रदेश में इस महामारी ने सबको अपनी चपेट में ले रखा है। 

-चंदपा पुलिस स्टेशन के एस.एच.ओ. ने पीड़िता की हालत देखी, उसकी मां तथा भाई को सुना और हमले तथा हत्या के प्रयास का केस दर्ज किया। पीड़िता को अलीगढ़ में एक अस्पताल में रैफर कर दिया गया। मगर इन सबके बावजूद मैडीकल जांच के लिए नहीं कहा। यहां तक एस.एच.ओ. ने यौन उत्पीडऩ की शंका भी नहीं जताई। 

-एस.पी. ने 72 घंटे के भीतर मैडीकल जांच करवाने में असफलता के बारे में बताया। जैसा कि हिदायतों  के तहत अपेक्षित होता है। उन्होंने यह शब्द कहे कि, ‘‘यहां पर कुछ सिस्टम के तहत कुछ गैप हैं जिसके लिए हम सबको एक साथ कार्य करना होगा।’’
-जवाहर लाल नेहरू मैडीकल कालेज के पिं्रसीपल ने माना कि अस्पताल ने फोरैंसिक जांच को अंजाम नहीं दिया क्योंकि पीड़िता तथा उसकी मां ने यौन उत्पीडऩ के बारे में कुछ नहीं कहा। हमने उसकी जांच नहीं की।
-डिस्ट्रिक मैजिस्ट्रेट (कलैक्टर) ने एस.पी. के साथ पारिवारिक सदस्यों की अनुपस्थिति में मृतक देह का संस्कार करने का निर्णय ले लिया। एस.पी. ने कहा, ‘‘मुझे बताया गया था कि इस क्षेत्र में रात के दौरान अंतिम संस्कार करना अव्यावहारिक नहीं है।’’

-वीडियो में डी.एम. को परिवार के साथ बात करते देखा गया जिसमें डी.एम. कह रहा था कि मीडिया एक या दो दिन में चला जाएगा मगर हम आपके साथ रहेंगे। पीड़िता के भाई ने कहा कि डी.एम. ने परिवार से यह भी पूछा कि यदि लड़की कोरोना वायरस से मर जाती तो क्या परिवार को मुआवजा मिलता। 

-राज्य के ए.डी.जी.पी. (कानून व्यवस्था) ने दोहराया कि पीड़िता से दुष्कर्म नहीं हुआ क्योंकि फोरैंसिक रिपोर्ट के अनुसार कपड़ों पर वीर्य के कोई निशान नहीं थे। (उन्हें आई.पी.सी. की धारा 375 तथा इस विषय पर कानून को पढऩा चाहिए।) यू.पी. के अधिकारियों ने गांव को लॉकडाऊन कर दिया और हाथरस जाने वाली सड़कों पर धारा 144 के तहत प्रतिबंध लागू कर दिया। मीडिया तथा राजनीतिक प्रतिनिधियों का प्रवेश निषेध कर दिया। 
-यू.पी. सरकार ने एस.आई.टी. के बदले सी.बी.आई. जांच की मांग की। इसी समय यू.पी. पुलिस ने अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ षड्यंत्र, जातीय संघर्ष को उकसाने तथा देशद्रोह के लिए एफ.आई.आर. दर्ज की। हाल ही में एक पत्रकार को गिरफ्तार कर उसे चार्ज किया गया है।

आखिर क्यों अन्याय व्याप्त
एक ऐसा राज्य जहां पर पूरा प्रशासन पूरी तरह राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नियंत्रण में है क्या यह संभव है कि उक्त सभी कार्रवाइयां (एस.एच.ओ. के सिवाय) समय पर और घटना के बाद योगी के ध्यान में नहीं रही होंगी? यह घटना 14 सितम्बर की है और सी.एम. योगी का बयान 30 सितम्बर को एस.आई.टी. की जांच बिठाने के बाद आया। इस दौरान महत्वपूर्ण खिलाड़ी निरंतर ही मंच पर आते और जाते रहे। प्रत्येक अन्याय का उत्थान दंड मुक्ति के भाव से उत्पन्न होता है और यह पूरे सिस्टम में फैला हुआ है। मेरी शक्ति मेरी तलवार है। आई.ए.एस., आई.पी.एस. सब मेरे रक्षा कवच हैं। मेरी जाति मेरे लिए लड़ेगी। मेरी सरकार तथा सत्ताधारी पार्टी इसमें कोई भी कोताही नहीं बरतेगी। आखिर अन्याय क्यों फैला हुआ है और न्याय के ऊपर दंड मुक्ति विजेता साबित होती है।-पी. चिदम्बरम


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