‘चीन को बारी-बारी छोड़ रहीं विदेशी कंपनियां’

punjabkesari.in Saturday, Jan 09, 2021 - 04:48 AM (IST)

अब यह बात पूरी तरह चीन में काम करने वाली विदेशी कंपनियों की समझ में आ गई है कि किसी भी तरह से चीन को छोडऩा ही उनके लिए बेहतर है। जो विदेशी कंपनियां चीन को छोड़ रही हैं उनमें एप्पल, सैमसंग, टेस्ला, नाइक, इंटैल, सोनी, एल.जी., मोबाइल फोन, डैल कम्प्यूटर्स, एच.पी. कम्प्यूटर्स, एडिडास जूते, प्यूमा जूते, जूम, शार्प, हस्ब्रो, किया मोटर्स, ह्यूंडई मोटर्स, ह्यूंूडई मोबी, माइक्रोसॉफ़्ट, स्टेन्ले ब्लैक एंड डेकर, गूगल मोबाइल फोन, एल्फाबैट फोन, गो-प्रो कैमरा, जैसी कई कम्पनियां शामिल हैं। 

इनमें जापानी, ताईवानी, अमरीकी, यूरोपीय सभी देशों की सैंकड़ों कम्पनियों का एक ही निर्णय है। अब ये कम्पनियां वहां जाना चाहती हैं जहां पर निर्माण लागत कम है। जब से बीजिंग का व्यापारिक तनाव अमरीका के साथ बढ़ा है तब से सारी विदेशी कंपनियों को इस बात का डर सताने लगा है कि व्यापार संघर्ष की पृष्ठभूमि में दक्षिणी चीन सागर अपने प्रभुत्व को बनाए रखने के लिए नायकत्व के किसी भी हद तक जा सकता है। इससे इन विदेशी कंपनियों के व्यापार पर प्रतिकूल असर पड़ेगा जो ये नहीं चाहतीं। 

वहीं एक सर्वे के अनुसार चालीस फीसदी जापानी कंपनियां या तो चीन छोडऩे का मन बना चुकी हैं या दूसरी जगहों पर जाना शुरू कर चुकी हैं, ये कंपनियां अपना सारा व्यापार चीन में ही समेट कर नहीं रखना चाहती हैं, ये उस पर अपनी निर्भरता कम करना चाहती हैं, इसलिए इनका रुख दक्षिण-पूर्वी एशिया या भारत हो सकता है। हालांकि जापानी कंपनियों के लिए अमरीका-चीन व्यापार संघर्ष भरे माहौल में सुरक्षा एक अहम मुद्दा है जिसके चलते वे ऐसा कदम उठा रही हैं।

करीब डेढ़ सौ कंपनियों पर हुए एक सर्वे में, जिसमें कैनन इंक, टोयोटा मोटर्स, कोबे स्टील, मित्सुबिशी भारी उद्योग समेत 42 फीसदी कंपनियों ने कहा कि वे अपनी सप्लाई चेन को भारत या दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में ले जाना चाहती हैं, वहीं कुछ अन्य जापानी कंपनियों ने कहा कि वे चीन में अपनी गतिविधियों को कम करेंगी। 

ठीक यही हाल ताईवानी कंपनियों का भी है, ताईपे आर्थिक मंत्रालय के अनुसार, करीब 200 ताईवानी कंपनियों को सरकार ने अपना व्यापार चीन से नई जगह ले जाने को कहा है। वहीं अमरीका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा है कि उनकी चीन के साथ व्यापार नीति सख्त और नियमों पर आधारित होगी। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जो काम ट्रम्प ने बोलकर किया, वही काम बाइडेन बिना आवाज और बिना धमक के करेंगे। वहीं चीन में स्थापित अमरीकी कंपनियां भी अमरीका-चीन व्यापार संघर्ष में बलि का बकरा नहीं बनना चाहतीं इसलिए वे अपनी सप्लाई चेन को भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान में से कहीं पर भी ले जाना चाहती हैं। 

जो बाइडेन योजनाबद्ध तरीके से ट्रांस-पैसिफिक क्षेत्र में अमरीकी कंपनियों को चीन से हटाने का मन बना चुके हैं और कोविड-19 के बाद के काल में अपने व्यापार प्रशासन को एक नया रूप देना चाहते हैं, बाइडेन के इस कदम से चीन बहुत असहज हो गया है क्योंकि चीन का अमरीका से व्यापार बड़े लाभ का सौदा है और अब यह सब बदलने वाला है। 

हालांकि बाइडेन दुनिया को यह दिखाना चाहते हैं कि उनके देश की कंपनियों का चीन से बाहर जाना बाजारवाद की एक प्रक्रिया भर है लेकिन चीन यह बात अच्छे से जानता है कि इससे उसकी अर्थव्यवस्था को गहरी चोट लगने वाली है, साथ ही उसकी वैश्विक स्तर पर साख पर बट्टा लगना भी तय है। चीन के लिए इस समय बड़ी मुश्किल है, खासकर ऐसे वैश्विक माहौल में जहां पर चीन को पूरी दुनिया एक धूर्त देश के रूप में देख रही है, ऐसे में बड़ी आॢथक चोट चीन को कहीं का नहीं छोड़ेगी।


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