सम्राट के नए कपड़े और वंदे भारत ट्रेन

punjabkesari.in Saturday, Feb 10, 2024 - 05:34 AM (IST)

पिछले कुछ महीनों से मैं प्रधानमंत्री द्वारा वंदे भारत ट्रेनों के कई उद्घाटनों के बारे में उत्सुक था और कल मैंने फैसला किया कि मैं उनमें से एक में गोवा से मुंबई तक की यात्रा करूंगा। ट्रेन मुंबई से देर से आई, इसलिए सफाईकर्मियों ने हमें प्लेटफॉर्म पर इंतजार कराया। उनमें से 2 ने बाहर की धूल भरी खिड़कियों को साफ किया, लेकिन केवल एग्जीक्यूटिव क्लास की खिड़की के शीशे साफ किए। जब मैं अंतत: अपनी सीट पर बैठा, तो मैंने पाया कि भोजन की ट्रे स्थायी रूप से मेरी गोद में थी। 

मैंने टी.सी. से कहा कि मुझे खुशी होगी अगर यह अपनी जगह पर वापस जा सके और वह सहमत हो गया और मुझसे कहा कि रख-रखाव वाले लोग इसे कुछ ही मिनटों में ठीक कर देंगे। खैर, 8 घंटों तक मैं ट्रेन में बैठा रहा, खाने की ट्रे मेरी गोद में काफी आरामदायक लगी। ट्रेन इधर-उधर हिलती और कांपती रही, और जैसे ही मैंने एक ऐसी ट्रे के साथ सोने की कोशिश की जो मेरे पैरों के लिए आरामदायक थी और एक ऐसी सीट जिसने मुझे वापस जाने से मना कर दिया। मैं कहानीकार हूं, मैंने बहुत पहले के एक सम्राट के बारे में सोचा, जो नए कपड़े पसंद करता था और उसने खुद के लिए दूसरे कपड़े सिलाने का फैसला किया। ऐसा कहा जाता था, उसने अपने राज्य का अधिकांश धन कपड़ों पर खर्च किया था। 

एक दिन, उन्होंने ऐसे कपड़े सिलाने का फैसला किया जो पहले कभी नहीं सिले गए थे और 2 बुनकरों को काम पर लगाया जिन्होंने कहा कि वे प्राचीन किताबों में पढ़े गए फॉर्मूले से कपड़ा बना सकते हैं। उन्हें बताया गया था कि इस अद्भुत कपड़े से बने कपड़े उन सभी लोगों के लिए अदृश्य होंगे जो उनकी नौकरी के लिए अयोग्य थे, या जो सम्राट की मान्यताओं में विश्वास नहीं करते थे। जलूस के दिन, सम्राट अपनी राजधानी की सड़कों से गुजरा। पास खड़े सभी लोग और खिड़कियों पर मौजूद सभी लोग चिल्ला उठे, ‘‘ओह! हमारे सम्राट के नए कपड़े कितने सुंदर हैं!’’ अचानक एक छोटा लड़का चिल्लाया, ‘‘लेकिन सम्राट के पास तो कुछ भी नहीं है!’’ सम्राट परेशान होकर बोला, ‘‘मैं उस व्यक्ति का सिर काट दूंगा जो कहता है कि मेरे पास कोई कपड़े नहीं हैं!’’ वह चिल्लाया और चलता रहा और लोग उसे यह बताने से डर रहे थे कि छोटा लड़का सही था। 

मैं वंदे भारत ट्रेन में ट्रे को अपनी गोद में रखकर बैठा था, ट्रेन के रुकते ही खाने वाले ने मुझ पर कुछ दाल गिरा दी थी और ऐसी सीट थी कि मैं पीछे नहीं जा सकता था। धूल भरी खिड़कियों ने मुझे यह देखने की अनुमति नहीं दी कि मैं कहां पहुंच गया हूं। टी.सी. मेरी ओर देखकर मुस्कुराया और बोला ‘‘यह एक उत्कृष्ट ट्रेन है, हमने क्या प्रगति की है!’’ मैं मुस्कुराया और डरते हुए और कत्र्तव्यनिष्ठा से कहा, ‘‘सम्राट ने क्या सुंदर कपड़े पहने हैं..!’’-दूर की कौड़ी राबर्ट क्लीमैंट्स
 


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