चुनावी जीतें राजनीतिक दल की कार्रवाइयों को मान्यता नहीं देतीं

punjabkesari.in Monday, Mar 14, 2022 - 04:10 AM (IST)

चुनावी जीतें राजनीतिक दल की कार्रवाइयों का शुद्धिकरण करती हैं, वे उन्हें मान्यता नहीं देतीं। शुद्धिकरण आशीर्वाद देना है और इसका वास्तविक जगत के साथ कोई लेना-देना नहीं जबकि मान्यता तथ्यों पर आधारित होती है। 

समय के इस बिंदु पर अब जब परिणाम आ चुके हैं, दावा किया जा सकता है कि मतदाता पार्टी की ओर इसकी कल्याणकारी योजनाओं अथवा प्रशासन की इसकी योग्यता या सेवाएं देने के कारण आकॢषत हुए। उत्तर प्रदेश तथा अन्य जगहों पर भाजपा की शानदार सफलता की लहर में ऐसा ही हो रहा है। जब कभी भी भाजपा की विजय होती है हर बार ऐसा ही होता है और यह जारी रहेगा। इसका एक कारण यह है कि भाजपा को धर्मनिरपेक्षता की  मान्यता की जरूरत है क्योंकि यह विश्व भर में प्रचलित है और संविधान के अंतर्गत साम्प्रदायिकता को बर्दाश्त नहीं किया जाता। यही कारण है कि इसके समर्थक भाजपा की सफलता को न्यायोचित ठहराने के लिए गैर-साम्प्रदायिक कारकों को आगे लाने की जरूरत महसूस करते हैं। 

जो लोग बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की विजय चाहते थे और भाजपा पर इसकी जीत देखने में भाग्यशाली रहे, ने यह दिखावा नहीं किया कि यह कल्याणकारी योजनाएं अथवा सक्षम प्रशासन या मसीहाई नेतृत्व था जिसका जादू चला। उन्हें मात्र इतनी राहत थी कि इस देश को दोफाड़ कर रही विभाजनकारी ‘विचारधारा’ एक मोर्चे पर रोक दी गई। ये अधिकांश भाजपा तथा इसके समर्थक थे जो इसकी चुनावी सफलता के लिए बारीक कारण तलाश रहे थे तो 10 मार्च को भाजपा की विजय किस कारण थी? सच हमारे सामने है। भाजपा ने खुद जो किया तथा मतदाताओं से कहा, इसके नेताओं ने कैसा व्यवहार किया और उन्होंने क्या कहा यह महत्वपूर्ण है। उन्होंने वोटों के लिए क्या कहा यह प्रासंगिक है, बाकी सब अनुमान है। 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कहते हैं कि ‘80 बनाम 20 एक वास्तविकता है। यह निश्चित तौर पर एक 80 बनाम 20 चुनाव हैं।’ वोटों के लिए धर्म के आधार पर भारतीयों को बांटना भाजपा के लिए एक वास्तविकता है और वह इस वास्तविकता को आगे बढ़ा रही है। यदि इसे यह विश्वास होता कि वोटें अधिकतर कारगुजारी तथा परिणाम देने के आधार पर मिलती हैं तो क्यों यह ऐसी चीजों में संलग्न होती? एक बार फिर यह एक रटा-रटाया प्रश्र है तथा हैरानी होगी यदि किसी को इसका उत्तर नहीं पता होगा। 

2018 से इस माह हरियाणा ऐसा 7वां भाजपा शासित राज्य बन गया है  जिसने ‘लव-जेहाद’ के खिलाफ कानून बनाया है। केंद्रीय गृहमंत्री ने 4 फरवरी, 2020 को लोकसभा में बताया कि भारत में लव-जेहाद का कोई मामला नहीं था और यह दृष्टांत मौजूद नहीं है। तो क्यों उत्तर प्रदेश (जिसने 2020 में लव-जेहाद कानून पारित किया) सहित भाजपा शासित राज्य इस विचारधारा का पीछा कर रहे हैं? यह प्रश्र केवल उन लोगों द्वारा पूछा जाएगा जो इस बात से अनजान हैं कि भाजपा क्या चाहती है और यह क्या करती है, जो हमारे अल्पसंख्यकों की निरंतर प्रताडऩा है, विशेषकर मुसलमानों की। 

यह मजाक की बात है कि यह देखने की बजाय कि खुद भाजपा अपने मतदाताओं से क्या कह रही है, समीक्षक तथा समर्थक यह निर्धारित करने के लिए ‘टैरट कार्डस’ देख रहे हैं कि ऐसे मतदान के क्या कारण थे। भाजपा ने लगातार 4 चुनावों (2014, 2017, 2019, 2022) में 40 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल किए। अब हमें यह मानने के लिए कहा जा रहा है कि यह उत्तर प्रदेश सरकार की कारगुजारी के आधार पर था न कि मंदिर, बीफ, लव-जेहाद तथा उनके द्वारा की जाने वाली हिंसा पर निरंतर ध्यान केंद्रित करने के कारण। 

यह भी ध्यान में रखें कि यह हमेशा सफल रही है। पार्टी के जन्म (जनसंघ के तौर पर) से लेकर 1990 तक, जब राजस्थान, मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश को भाजपा मुख्यमंत्री मिले, भाजपा का भारत के किसी भी राज्य में अपना खुद का बहुमत नहीं था। 4 दशकों तक इसकी राष्ट्रीय मत हिस्सेदारी एक अंक में थी और फिर अचानक डबल होकर 18 प्रतिशत तक पहुंच गई और एक बार फिर डबल हो गई। छोटे से समय में पार्टी के साथ क्या हुआ कि यह राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बन गई? निश्चित तौर पर यह आंदोलन था जिसने हिंदुओं को अयोध्या में मस्जिद के खिलाफ गतिशील कर दिया जिसे धराशायी कर दिया गया जिस कारण देशभर में हिंसा भड़क उठी। तब मतदाताओं को दिखाने के लिए किसी भी सरकार की ओर से कोई भी सेवाएं उपलब्ध नहीं करवाई जा रही थीं और न ही दिखाने के लिए योग्यता थी और अब भी नहीं है। 

क्या भविष्य में मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए यह जारी रहेगा? यह जानना दिलचस्प है, यह देखते हुए कि अपने खुद के आंकड़ों के अनुसार केंद्र सरकार ने अर्थव्यवस्था में पूरी तरह से गड़बड़ी कर दी है। संभवत: यह जारी रहेगा और नहीं भी, हमें देखना होगा। मगर यह राहत की बात होगी। यदि हमें यह न बताया जाए कि भाजपा की सफलता उस कारण से नहीं है जो पार्टी के नेता खुद वोटों की मांग करने के लिए कहते हैं। लेकिन कुछ रहस्यमयी कारक जो केवल इन परिणामों के मद्देनजर अब रोशनी में आए हैं।-आकार पटेल


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