वायु प्रदूषण की वजह से मौत का ग्रास बन रहे देशवासी

punjabkesari.in Wednesday, Jun 05, 2019 - 03:29 AM (IST)

दुनिया में भारत ऐसा एक देश बन गया है जहां वायु प्रदूषण के कारण सबसे अधिक मौतें हो रही हैं। हैरानी की बात तो यह है कि देश की बड़ी पाॢटयां हों या छोटे रीजनल दल, वायु प्रदूषण के मुद्दे पर किसी ने  कोई बात नहीं की, किसी भी राजनीतिक पार्टी ने चुनावी रैलियों में वायु प्रदूषण मुद्दे को प्रमुखता से नहीं रखा और न ही उठाया। 

पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण हेतु पूरे विश्व में 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का लक्ष्य लोगों को पर्यावरण संरक्षण और उसकी सुरक्षा के प्रति जागरूक करना होता है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने के लिए वर्ष 1972 में इस दिन को मनाने की घोषणा की थी। पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पर सन् 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने स्टॉकहोम (स्वीडन) में विश्व भर के देशों का पहला पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया, जिसमें 119 देशों ने भाग लिया। पहली बार 5 जून 1974 को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। पर्यावरण शब्द संस्कृत भाषा के दो शब्दों परि़ तथा आवरण  से मिलकर बना है, इसमें परि का अर्थ होता है चारों तरफ  से एवं आवरण का अर्थ है ढका हुआ। 

जल्द समाधान आवश्यक
आज सम्पूर्ण विश्व पर्यावरण प्रदूषण की समस्या से चिन्तित है। पर्यावरण प्रदूषण आज मानव जाति के समक्ष एक गंभीर समस्या है, जिसका जल्द समाधान करना आवश्यक है। पर्यावरण और जीवन दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। पर्यावरण में फैलता प्रदूषण विश्व की सबसे बड़ी समस्या बनती जा रही है। पर्यावरण प्रदूषण ने विश्व में आज लोगों का जीना दुश्वार कर दिया है। पर्यावरण संरक्षण के प्रति हर आमजन को अपनी नैतिक जिम्मेदारी को निभाना होगा  ताकि प्रदूषण मुक्त वातावरण की परिकल्पना को साकार किया जा सके। वल्र्ड हैल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक, हर साल वायु प्रदूषण की वजह से दुनिया में लाखों लोगों की मौत होती है। 

अमरीका की यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के अध्ययनकत्र्ताओं ने दिल्ली में लगातार खराब हो रही हवा पर अपने अध्ययन में पाया कि दिल्ली में प्रदूषण से हालात लगातार गंभीर बने हुए हैं। दिल्ली का प्रदूषण लोगों के लिए बेहद जानलेवा साबित हो रहा है। यूनिवॢसटी ऑफ शिकागो में इकनॉमिक्स के प्रोफैसर मिशेल ग्रीनस्टोन ने एनर्जी पॉलिसी इंस्टीच्यूट के साथ मिलकर यह अध्ययन किया है।  इस अध्ययन में उनकी टीम ने दिल्ली में खराब हुई हवा के जीवन पर पडऩे वाले प्रभाव का अध्ययन किया। अध्ययन में प्रदूषित हवा में सांस लेने से होने वाले खतरों की जांच की गई है, जिसमें सामने आया है कि प्रदूषण के कारण लोगों के जीवन से 10 साल कम हो रहे हैं। 

नीतियों का अभाव
यह बेहद ङ्क्षचताजनक है कि हमारे देश में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए दीर्घकालिक एवं समग्र नीतियों का अभाव ही दिखाई दे रहा  है। मेरा  मानना है कि पर्यावरण को संरक्षित रखने में पेड़-पौधों का अहम योगदान होता है। पौधे लगाकर उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करें ताकि पर्यावरण का संरक्षण करते हुए आने वाले भविष्य में पर्यावरण के कारण होने वाली हानियों से बचा जा सके। हमें बच्चों के जन्मदिन, विवाह, त्यौहार या अन्य खुशी के अवसर पर पेड़ लगाने चाहिएं और अपने पर्यावरण को संरक्षित करना चाहिए। पेड़-पौधे आदिकाल से मनुष्य जीवन व भारतीय संस्कृति का अटूट हिस्सा रहे हैं। 

वायु प्रदूषण को लेकर चौंकाने वाली बात सामने आई है। अमरीका के हैल्थ इफैक्ट्स इंस्टीच्यूट की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वायु प्रदूषण स्वास्थ्य संबंधी सभी खतरों से होने वाली मौतों में तीसरा सबसे बड़ा कारण है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरी दुनिया में वायु प्रदूषण से जितने लोगों की मौत होती है, उसकी आधी संख्या भारत और चीन में है। भारत और चीन में 2017 में वायु प्रदूषण से क्रमश: 12-12 लाख लोगों की मौत हुई है। 

दिल्ली विश्व में छठे स्थान पर
डब्ल्यू.एच.ओ. की इस सूची में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली छठे स्थान पर है। वायु प्रदूषण से निपटने में नाकामी के लिए यहां के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के आलस्य को जिम्मेदार बताया गया है। पॉलिटिकल लीडर्स पोजिशन एंड एक्शन एंड एयर क्वालिटी इन इंडिया 2014-19 में यह जानकारी दी गई है। इस रिपोर्ट को ‘क्लाइमेट ट्रैंड्स’ ने जारी किया है। इसमें कहा गया है, विश्व स्वास्थ्य संगठन की 15 शहरों की सूची में 14 शहर भारत के हैं। इनमें से 4 उत्तर प्रदेश में हैं।

भारत में जहरीली होती हवा को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) की ‘वायु प्रदूषण और बाल स्वास्थ्य’ नामक रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2016 में भारत में 5 साल से कम उम्र के करीब एक लाख बच्चों की जहरीली हवा के प्रभाव में आने से मौत हुई है, मरने वाले बच्चों में लड़कियों की संख्या लड़कों से ज्यादा है। दुनिया के विभिन्न देशों में प्रदूषण को लेकर किए गए अध्ययन से पता चला है कि 2016 में भारत नेपाल के बाद ऐसा दूसरा देश है जहां पी.एम. 2.5 स्तर अधिक मापा गया है। इससे भारत के लोगों के जीवन स्तर में 4.4 साल की कमी आई है। यानी लोगों का जीवन 4.4 साल तक कम हुआ है। 

दिल्ली ही नहीं, बल्कि देश के 94 शहरों के लोग जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी आंकड़ों से पता चलता है कि यहां की हवा जहरीली हो चुकी है, यह लोगों की सेहत के लिए नुक्सानदेह है। पिछले साल मई के महीने में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कानपुर को दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बताया था। यह हवा में पी.एम. 2.5 की मात्रा पर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के आधार पर कहा गया था। एक अंतर्राष्ट्रीय शोध रिपोर्ट में यह आशंका जताई गई है कि अगर प्रदूषण स्तर को काबू में नहीं किया गया तो 2025 तक दिल्ली में हर साल करीब 32,000 लोग जहरीली हवा के शिकार होकर असामयिक मौत के मुंह में समा जाएंगे।-युद्धवीर सिंह लांबा
 


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