मौतें, गरीबी तथा कर : सच को स्वीकार करने में कैसी शर्म

punjabkesari.in Sunday, Apr 24, 2022 - 04:40 AM (IST)

सामान्य जीवन में हम समय का हिसाब-किताब रखते हैं, हम धन की गिनती करते हैं, दौड़ों तथा लक्ष्यों, हम  सफलताओं तथा असफलताओं की गिनती करते हैं, हम वोटें तथा सीटें गिनते हैं आदि। सही गणना करने में कोई शर्म की बात नहीं है, सिवाय मरे हुए लोगों की गिनती करने के।

कोरोना वायरस महामारी के कारण हर कहीं मौतें हुईं। कितने लोग इस कारण मरे कि वे संक्रमित थे, इसकी सटीक जानकारी तभी लगाई जा सकती थी यदि प्रत्येक बीमार व्यक्ति का पता लगाकर उसकी जांच करवाई जाती तथा जीवित होने पर उसका उपचार किया जाता अथवा उसके मृत शरीर का पोस्टमार्टम किया जाता। ऐसा उन देशों में संभवत: जहां अपेक्षाकृत जनसंख्या कम है या स्वास्थ्य सेवा सुविधाएं उन्नत हैं। 2020 में भारत में ऐसा कुछ भी नहीं था। 

कितनी मौतें
वायरस के कारण देशभर में लोगों की मौतें हुईं। निश्चित तौर पर उनमें से सभी की बीमारी का पता नहीं लगाया जा सका और न ही उनका उपचार हो पाया तथा न ही सभी की मौत अस्पतालों में हुई। हमने पाया कि शवों को नदियों में फैंक दिया गया या नदी के किनारों पर दबा दिया गया। असल बात यह है कि मौतों की कोई सटीक गिनती नहीं थी। सभी ने इस तथ्य को स्वीकार किया, सिवाय सरकार के जिसका यह कहना था कि वायरस के कारण मरे लोगों की संख्या (22 अप्रैल 2022 की सुबह तक) 5,22,065 थी। 

एक के बाद एक अध्ययनों ने इस संख्या को खारिज किया। पहला पर्दाफाश गुजरात में किया गया। सरकारी अधिकारियों द्वारा जारी मौत के सर्टीफिकेट की संख्या एकत्र करके एक समाचार पत्र ने साबित किया कि  महामारी से पहले के वर्षों के मुकाबले महामारी के वर्ष या वर्षों के दौरान अधिक संख्या में लोगों की मौत हुई तथा यह अंतर केवल वायरस के कारण हो सकता है। यह ‘अंतर’ महामारी संबंधित मौतों के सरकारी संख्या से कहीं अधिक था। जब अन्य राज्यों में  नगर पालिकाओं में यह कार्रवाई की गई, मृत्यु प्रमाण पत्रों की संख्या अथवा अंतिम संस्कारों की संख्या की तुलना करके, एक बार फिर यह साबित हुआ कि महामारी के कारण अधिक लोगों की मौत हुई थी जिसे सरकार स्वीकार करने को तैयार नहीं। 

विज्ञान तथा सामान्य ज्ञान 
इस बिंदू पर विज्ञान ने दखल दी। जनवरी 2022 में ‘साइंस’ में प्रकाशित एक अध्ययन में यह अनुमान लगाया गया था कि भारत में महामारी से संबंधित मौतों की संख्या 30,00,000 से अधिक थी। अप्रैल में लैंसेट में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में अनुमान लगाया गया कि संख्या 40,00,000 थी (वैश्विक स्तर पर इस संख्या का अनुमान 90,00,000 था)। 

यदि महामारी से संबंधित मौतों की संख्या 30,00,000 लाख से 40,00,000 के बीच थी तो संख्या के आधार पर असफलता के लिए भारत सरकार को दोष दिया जा सकता है। केंद्र में 6 वर्षों  तथा राज्यों में कई अन्य वर्षों तक सत्तासीन रहने के बावजूद भाजपा सरकारें स्वास्थ्य सेवा में पर्याप्त रूप से निवेश करने में असफल रहीं। पहले दी गई चेतावनियों के बावजूद सरकार स्वास्थ्य विनाश का सामना करने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी। यात्रा प्रतिबंध, लॉकडाऊन, अस्थायी स्वास्थ्य सुविधाएं तैयार करने, वैक्सीन्स के लिए आर्डर देने आदि पर लिए गए निर्णयों में अनावश्यक रूप से देरी की गई। 

मगर चिंताजनक बात सरकार द्वारा आधिकारिक आंकड़ों से 6-8 गुणा ज्यादा महामारी से संबंधित मौतों की वास्तविक संख्या को स्वीकार करने की अनिच्छुक होना है। इसकी बजाय सरकार अध्ययनों में खामियां ढूंढ रही है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्ययन में अपनाए गए तरीके पर आपत्ति जताई है जिसमें विश्वभर के विशेषज्ञ शामिल थे। 
तरीके को एक तरफ रखें और सामान्य बुद्धि की बात करें। 2019 में भारत में 6,64,369 गांव थे। यह मान लें कि इनमें से 20 प्रतिशत गांव अत्यंत दुर्गम थे और इसलिए महामारी से प्रभावित नहीं थे (गलत अनुमान) जिससे बाकी 5 लाख से अधिक गांव बचते हैं। यदि औसत रूप से प्रत्येक गांव में 2 व्यक्ति भी वायरस से मरे तो  संख्या 10 लाख हो जाती है। इनमें नगरों तथा शहरों (शहरी जनसंख्या 35 प्रतिशत है) में हुई मौतों की संख्या भी जोड़ें तो हम कुल 15 लाख की संख्या पर पहुंच जाएंगे। 

गरीबी तथा कर
एक अन्य गणना ने भी विवाद खड़ा कर दिया है। यद्यपि सरकार इसके परिणामों से खुश है। विश्व बैंक के एक कार्यकारी पेपर ने कहा है कि भारत में अत्यंत गरीबी 12.3 प्रतिशत कम होकर 22.5 प्रतिशत (2011) से 10.2 प्रतिशत (2019) पर आ गई है जिसमें ग्रामीण क्षेत्र बेहतर परिणाम (14.7 प्रतिशत की गिरावट) दिखाते हैं। मैं सहमत हूं कि गरीबी में कमी आई है लेकिन इसमें कई विरोधाभास हैं। पहला, अध्ययन 2019 में बंद हो गया था तथा इसमें महामारी के कारण हुए विनाश को शामिल नहीं किया गया। 

दूसरे मार्च 2020 से सभी संकेतक गिरावट की ओर इशारा कर रहे हैं तथा अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय ने अनुमान लगाया है कि 2020 से 23 करोड़ लोगों को गरीबी में धकेल दिया गया। इसलिए 2019 तक अनुमानित लाभों को खारिज कर दिया गया। तीसरे, नकारात्मकता से अभी उभरा नहीं गया, गंवा दी गईं बहुत सी नौकरियां अभी बहाल नहीं हुईं, घरेलू ऋणों में हुई वृद्धि वापस नहीं हुई तथा नौकरियों के नए अवसर अभी भी एक सपना है। 

एक अन्य गणना विवादास्पद है। वाशिंगटन में वित्त मंत्री ने दावा किया कि अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए हमारा राजस्व लोगों पर कर लगाने से नहीं आने वाला। किसी पर भी कोई ‘कोविड टैक्स’ नहीं लगाया गया है। यह देखते हुए कि केंद्र सरकार ने 2020-21 तथा 2021-22 के दौरान केवल ईंधन करों के माध्यम से 8,16,126 करोड़ रुपए एकत्र किए तथा तेल कम्पनियों से खजाने के लिए अलग योगदान के तौर पर 72,531 करोड़ रुपए एकत्र करने से यह एक बहुत बड़ा दावा लगता है। यह स्वीकार करने में कोई शर्म नहीं कि कोविड से होने वाली मौतों को कम करके बताया गया, गरीबी में कमी को बढ़ा-चढ़ा कर तथा पंगु बना देने वाले कराधान बारे कुछ नहीं कहा गया।-पी. चिदम्बरम


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