अंतिम सांस तक सत्ता में काबिज रहना चाहते हैं वर्तमान नेता

punjabkesari.in Sunday, Jan 29, 2023 - 04:22 AM (IST)

इस विश्व में तानाशाह, एकाधिकारवादी, परिवारवादी और निरंकुश सोच वाले राजनीतिक नेता वर्तमान लोकतांत्रिक युग में भी अपनी मौत की अंतिम सांसों तक सत्ता पर काबिज रहना चाहते हैं। बेशक विश्व के बहुत से देशों में संवैधानिक तौर पर 2 कार्यकालों से अधिक सत्ता में बने रहने पर प्रतिबंध क्यों न लगा हो, ताकतवर सत्ता के भूखे राजनीतिक नेता सत्ता शक्ति के बलबूते पर ऐसे कानूनों में संशोधन करवा कर अपना कार्यकाल बढ़ा लेते हैं। 

विश्व के सबसे शक्तिशाली लोकतंत्र अमरीका में राष्ट्रपति पद पर 2 बार तक ही बने रहने की परम्परा पहले राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंगटन के काल से चली आ रही है। मगर दूसरे विश्व युद्ध तथा राष्ट्र को बाहरी चुनौतियों के कारण फ्रैंकलेन डी रूजवैल्ट इस पद पर 4 बार सुशोभित रहे। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने तमाम उम्र सत्ता में बने रहने का संवैधानिक प्रबंध कम्युनिस्ट पार्टी की अनुमति के माध्यम से ले लिया है। 

तुर्की के राष्ट्रपति रेसिप अर्दोगन, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन आदि सहित इस विश्व के कई ताकतवर सत्ताधारी नेता जीते जी सत्ता न छोडऩे पर अडिग हैं। भारत में सत्ताधारी भाजपा ने 75 साल से अधिक आयु वाले नेताओं को रिटायर करने और राजनीतिक परिवारवाद के खात्मे का संकल्प लिया था। मगर सत्ता की भूख के चलते यह विचार बुरी तरह से टूट रहा है। लेकिन ऐसे युग में देश की सेवा तब तक करनी चाहिए जब तक शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक ऊर्जा शक्ति कायम रहे। न्यूजीलैंड की 42 वर्षीय प्रधानमंत्री जासिंडा अरडर्न ने 19 जनवरी 2023 को अपने पद से त्यागपत्र देकर अपनी लेबर पार्टी, देश तथा पूरे विश्व को हैरान कर दिया। 

जेसिंडा ने स्पष्ट किया कि ‘‘मैं अच्छी तरह से जानती हूं कि पद का रुतबा क्या होताहै? मुझ में अब इतनी शक्ति नहीं है कि मैं इससे इंसाफ कर सकूं। वास्तव में मेरी शक्ति का टैंक खाली हो चुका है। मैं यहइस्तीफा इसलिए नहीं दे रही कि यह कार्य बहुत चुनौती भरा और कठिन है। यदि ऐसा होता तो मैं सत्ता संभालने से 2 महीने बाद ही अपना इस्तीफा दे देती।’’ जेसिंडा ने वर्तमान युग में विश्व के अंदर सबसे कम उम्र (37 साल) में 26 अक्तूबर 2017 को न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री के तौर पर पद संभाला। पर्यावरण को संभालने की वह प्रतीक बनी रही। शायद पूरा विश्व उनकी भरपूर राजनीतिक इच्छाशक्ति, संकट मोचन प्रतिभा और चुनौतियों को समक्ष रख कर चट्टान की तरह डटे रहने का कायल रहा। उनके कार्यकाल के दौरान जितनी तेजी से संकट आया उतनी ही तेज गति से उन्होंने उन पर नियंत्रण कर लिया। उन्होंने विश्व के शक्तिशाली नेताओं को हैरान करके रख दिया। 

उन्होंने ऐसी मिसाल कायम की कि केवल तब तक देश-राष्ट्र की अगुवाई करें जब तक आपका शरीर, बौद्धिक, मानसिक तथा क्रियात्मक शक्ति आपको इजाजत देती रहे। जेसिंडा का मानना है कि जोड़-तोड़ की राजनीति, विलासिता तथा वक्त बर्बाद कर राष्ट्र के विकास में बाधा नहीं बनना चाहिए। बेहतर यही है कि सत्ता छोड़ कर आप एक ओर हो जाएं। सत्ता के अलावा परिवार, समाज, देश और मानवता की सेवा भी अहम है।

जेसिंडा को देश के अंदर जीव सुरक्षा, घरेलू हिंसा, हिजाब समस्या, प्राकृतिक आपदाएं, ग्लोबल वार्मिंग, कोविड महामारी तथा आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा। कोविड महामारी के दौरान उठाए गए सख्त कदमों के कारण ही न्यूजीलैंड कोरोनामुक्त पहला देश बना। वहां बहुत कम लोगों की मौत हुई। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की तरह जेसिंडा महिलाओं के लिए न्याय, सामाजिक न्याय, सत्ता की हिस्सेदारी की समर्थक रही। 

राजनेताओं को संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि बेशक वे किसी भी ङ्क्षलग, जात, समाज, धर्म, वर्ग, राजनीतिक पार्टी से संबंधित क्यों न हो उन्हें बिना किसी भेदभाव के लोगों की सेवा के प्रति समॢपत होना चाहिए। जेसिंडा ने दर्शाया कि बतौर न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री उनका मुख्य कत्र्तव्य यह था कि उन लाखों लोगों के मामलों की ओर ध्यान केंद्रित करना जिन्होंने उनमें विश्वास प्रकट किया था। उन्होंने अपने दिल पर हाथ रख कर कहा कि मैंने अपना सब कुछ सत्ता में होते हुए भी न्यूजीलैंड के नागरिकों की बेहतरी के लिए अपना सब कुछ समर्पित कर दिया। वर्ष 2018 में प्रधानमंत्री होते हुए जेसिंडा ने अपनी बच्ची को जन्म दिया और एक मां होते हुए यू.एन. जनरल असैंबली में भाग लेते हुए विश्व के अंदर काम करने वाली माताओं के अधिकारों को उजागर किया। 

अक्तूबर 2020 में दूसरी बार बहुमत से संसदीय चुनाव जीतने के बाद (न्यूजीलैंड में हर तीन वर्ष बाद संसदीय चुनाव होते हैं)इतिहास में पहली बार ऐसी कैबिनेट दी जिसमें 40 प्रतिशत महिलाएं, 25 प्रतिशत माऊरी, 15 प्रतिशत एल.जी.बी.टी. भाईचारे को प्रतिनिधित्व दिया। जेसिंडा अब वेङ्क्षलगटन के निकट एक कस्बे में बसेंगी जहां पर वे अपनी बच्ची, परिवार तथा स्थानीय समुदाय को अपना जीवन समर्पित करेंगी।-दरबारा सिंह काहलों 
 


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