कोरोना वायरस और हमारी स्वास्थ्य सेवाएं

punjabkesari.in Wednesday, Mar 04, 2020 - 03:33 AM (IST)

चीन के वुहान शहर से फैले कोरोना वायरस के कारण पूरी दुनिया सहमी हुई है। चीन में 80,000 से ज्यादा लोग इस वायरस से संक्रमित हो चुके हैं। वहां इस वायरस के कारण लगभग तीन हजार लोगों की मौत हो चुकी है। इस वायरस के संक्रमण का दायरा दूसरे देशों में भी फैल रहा है। चीन के अलावा जापान, इटली, दक्षिण कोरिया और ईरान में भी इस वायरस के कारण मरने वाले लोगों की संख्या ज्यादा है। पूरे विश्व में इस वायरस पर काबू पाने के प्रयासों का बहुत ज्यादा असर दिखाई नहीं दे रहा है। अभी तक इसके उपचार के लिए किसी टीके का निर्माण भी नहीं हो सका है। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस के संक्रमण की तीव्रता को देखते हुए पहले ही अंतर्राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी थी। माना जाता है कि यह वायरस समुद्री भोजन के माध्यम से फैलता है। लेकिन अब कोरोना वायरस मानव से मानव में फैल रहा है। यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आता है तो वह भी इसकी चपेट में आ सकता है। खांसी, छींकने या हाथ मिलाने से इस वायरस का संक्रमण फैल सकता है। कोरोना वायरस के लक्षणों में खांसी, बुखार, सिरदर्द, गले में खराश और जुकाम शामिल हैं। कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले मनुष्य में इसका संक्रमण जल्दी होता है। 

नए चीनी कोरोना वायरस को सार्स वायरस की तरह माना जा रहा है। कोरोना वायरस के संक्रमण को देखते हुए भारत समेत विश्वभर के हवाई अड्डों पर चीन से आने वाले यात्रियों की जांच हेतु इंतजाम किए जा रहे हैं। हमारे देश का स्वास्थ्य मंत्रालय भी इस दिशा में सक्रिय हो गया है। यह चिंता का विषय है कि हाल ही में देश की राजधानी दिल्ली तथा तेलंगाना में इस वायरस के संक्रमण के दो नए मामले प्रकाश में आए हैं। 

देश में 6 लाख डाक्टरों की कमी
इस समय एक तरफ पूरा विश्व कोरोना वायरस को लेकर ङ्क्षचतित है तो दूसरी तरफ हमारी चिंता यह है कि भारत जैसे देश में इसका संक्रमण कैसे रोका जाए। यह सही है कि हमारे देश की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हो रहा है लेकिन यह सुधार अभी तक वह उद्देश्य प्राप्त नहीं कर पाया है जिसमें गांव के अंतिम आदमी को भी राहत मिल सके। गौरतलब है कि पिछले दिनों अमरीका के ‘सैंटर फॉर डिजीज डाइनामिक्स, इकॉनॉमिक्स एंड पॉलिसी’ (सी.डी.डी.ई.पी.) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत में लगभग छह लाख डाक्टरों और 20 लाख नर्सों की कमी है। भारत  में 10,189 लोगों पर एक सरकारी डाक्टर है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक हजार लोगों पर एक डाक्टर की सिफारिश की है। इसी तरह हमारे देश में 483 लोगों पर एक नर्स है। 

रिपोर्ट के अनुसार भारत में एंटीबायोटिक दवाइयां देने के लिए उचित तरीके से प्रशिक्षित स्टॉफ की कमी है, जिससे जीवन बचाने वाली दवाइयां मरीजों को नहीं मिल पाती हैं। जब इस दौर में भी गंभीर रोगों से पीड़ित मरीजों के लिए अस्पतालों में स्ट्रैचर जैसी मूलभूत सुविधाएं न मिल पाएं, तो देश की स्वास्थ्य सेवाओं पर सवाल उठना लाजिमी है। इस प्रगतिशील दौर में भी ऐसी अनेक खबरें प्रकाश में आई हैं कि जब अस्पताल गरीब मरीज के शव को घर पहुंचाने के लिए एम्बुलैंस तक उपलब्ध नहीं करा पाए। ऐसी स्थिति में यदि हमारे देश में कोरोना वायरस का संक्रमण फैलता है तो इसके भयावह परिणाम हो सकते हैं। 

यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि भारत जैसे देश में एक तरफ संक्रामक रोगों को रोकने की कोई कारगर नीति नहीं बन पाई है तो दूसरी तरफ असंक्रामक रोग तेजी से जनता को अपनी चपेट में ले रहे हैं। दरअसल पिछले दिनों विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि आने वाले समय में हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर जैसी बीमारियां भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेंगी। इस रिपोर्ट के अनुसार सन् 2012 से 2030 के बीच इन बीमारियों के इलाज पर करीब 6.2 खरब डॉलर (41लाख करोड़ रुपए से अधिक) खर्च होने का अनुमान है। रिपोर्ट में इन बीमारियों के भारत और चीन के शहरी इलाकों में तेजी से फैलने का खतरा बताया गया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि असंक्रामक रोग शहरों में रहने वाली मानव आबादी के स्वास्थ्य के लिए ही खतरा नहीं हैं बल्कि इसके चलते अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होने का अनुमान है। बढ़ता शहरीकरण और वहां पर काम व जीवनशैली की स्थितियां असंक्रामक रोगों के बढऩे का मुख्य कारण है। सन् 2014 से 2050 के बीच में भारत में 404 मिलियन ( 40 करोड़ चालीस लाख) आबादी शहरों का हिस्सा बनेगी। इसके चलते शहरों में अनियोजित विकास होने से स्थिति बदतर होगी। 

हमारे देश में व्यवस्था की नाकामी और विभिन्न वातावरणीय कारकों के कारण बीमारियों का प्रकोप ज्यादा होता है। भारत में डाक्टरों की उपलब्धता की स्थिति वियतनाम और अल्जीरिया जैसे देशों से भी बदतर है। हमारे देश में इस समय लगभग 7.5 लाख सक्रिय डाक्टर हैं। डाक्टरों की कमी के कारण गरीब लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं मिलने में देरी होती है। यह स्थिति अंतत: पूरे देश के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। हमारे देश में आम लोगों को समय पर स्वास्थ्य सुविधाएं न मिलने के अनेक कारण हैं इसलिए स्वास्थ्य सुविधाओं को और तीव्र बनाने की जरूरत है। दरअसल स्वास्थ्य सेवाओं के मुद्दे पर भारत अनेक चुनौतियों से जूझ रहा है। हालात यह हैं कि जनसंख्या वृद्धि के कारण बीमार लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। गरीबी और गंदगी के कारण विभिन्न संक्रामक रोगों से पीड़ित लोग इलाज के लिए तरस रहे हैं। 

स्वास्थ्य सेवाओं पर कम खर्च
गौरतलब है चीन ,ब्राजील और श्रीलंका जैसे देश भी स्वास्थ्य के क्षेत्र में हमसे ज्यादा खर्च करते हैं। जबकि पिछले दो दशकों में भारत की आर्थिक वृद्धि दर चीन के बाद शायद सबसे अधिक रही है। इसलिए पिछले दिनों योजना आयोग की एक विशेषज्ञ समिति ने भी यह सिफारिश की थी कि सार्वजनिक चिकित्सा सेवाओं के लिए आबंटन बढ़ाया जाए। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि हमारे देश में स्वास्थ्य पर होने वाला खर्च अन्य देशों की तुलना में काफी कम है। इस माहौल में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति दयनीय है। 

विडम्बना यह है कि भारत में दूसरी सरकारी योजनाओं की तरह स्वास्थ्य योजनाएं भी लूट-खसोट की शिकार हैं। दूसरी ओर निजी अस्पताल व डाक्टर भी चांदी काट रहे हैं। पिछले दिनों भारतीय चिकित्सा परिषद ने डाक्टरों द्वारा दवा कम्पनियों से लेने वाली विभिन्न सुविधाओं को देखते हुए एक आचार संहिता के तहत डाक्टरों को दी जाने वाली सजा की रूपरेखा तय की थी। लेकिन अभी भी डाक्टर दवा कम्पनियों से विभिन्न सुविधाएं प्राप्त कर रहे हैं और इसका बोझ रोगियों पर पड़ रहा है। इस दौर में डाक्टरों द्वारा अधिक दवाइयां लिखना एक परिपाटी बन गई है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि इनमें से कुछ दवाइयां आपके रोग से संबंधित होती ही नहीं हैं। व्यावसायिकता के इस दौर में डाक्टर रूपी भगवान भी व्यावसायिक हो गए हैं। 

इस साक्षात ईश्वर पर भी जमकर चढ़ावा चढ़ता है। दवाइयों की विभिन्न कम्पनियां कीमती से कीमती चढ़ावा चढ़ाकर इस साक्षात ईश्वर का आशीर्वाद लेने की होड़ में रहती हैं। ऐसे में ईश्वर अपने भक्तों को मायूस कैसे कर सकता है? यहां से शुरू होता है होड़ का एक नया शास्त्र। ईश्वर चढ़ावे के बदले अपने हर भक्त को खुश करना चाहता है। इसलिए ईश्वर का हर पर्चा दवाई रूपी अमृत से भरा रहता है। इस व्यवस्था में ईश्वर और भक्त दोनों तृप्त रहते हैं लेकिन आम जनता को शोषण का शिकार होना पड़ता है। स्पष्ट है कि बाजार की शक्तियां अपने हित के लिए मानवीय हितों की आड़ में मानवीय मूल्यों को ही तरजीह नहीं देती हैं। आज यह किसी से छिपा नहीं है कि दवा कम्पनियां अपनी दवाइयां लिखवाने के लिए डाक्टरों को महंगे-महंगे उपहार देती हैं। इसलिए डाक्टर इन कम्पनियों की दवाइयां बिकवाने की जी-तोड़ कोशिश करते हैं। हद तो तब हो जाती है जब कुछ डाक्टर अनावश्यक दवाइयां लिखकर दवा कम्पनियों को दिया वचन निभाते हैं। इस व्यवस्था में डाक्टर के लिए दवा कम्पनियों का हित रोगी के हित से ऊपर हो जाता है। 

1940 के बाद से संक्रामक रोगों से प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है। ‘नेचर’ पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार संक्रामक रोगों के बढऩे की बड़ी वजह मानवशास्त्रीय और जनसांख्यिकीय बदलाव हैं। इंसानों को हो रही संक्रामक बीमारियों में से कम से कम दो-तिहाई जानवरों से आई हैं। दरअसल इस दौर मेें स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली का खामियाजा ज्यादातर बच्चों, महिलाओं और बूढ़े लोगों को उठाना पड़ रहा है। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि अभी तक ऐसा नहीं हो पाया है। देश के आॢथक एवं सामाजिक विकास हेतु बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं को पटरी पर लाने के लिए एक गंभीर पहल की जरूरत है। बहरहाल इस समय कोरोना वायरस से डरने की जरूरत नहीं है। जरूरत है जागरूकता की ताकि समय रहते इस वायरस का सामना किया जा सके। अनेक पर्यावरणीय कारणों से भविष्य में संक्रामक रोगों का खतरा बढ़ेगा। इसलिए अब समय आ गया है कि सरकार संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए एक दीर्घकालिक नीति बनाए।-रोहित कौशिक
 


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