‘कोरोना : सीखे गए सबक भविष्य में काम आएंगे’

punjabkesari.in Tuesday, Feb 02, 2021 - 04:13 AM (IST)

वर्षगांठें पीछे की ओर तथा भविष्य की तरफ देखने का एक जरिया है। 21 जनवरी को फूटने वाले कोविड-19 के एक वर्ष हो जाने को याद किया गया है, जब वुहान में नोवेल कोरोना वायरस का पहला मामला सामने आया था। जैसे-जैसे यह दूसरे देशों में फैलता गया, दुनिया जागती गई और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे एक महामारी घोषित कर दिया। नोवेल कोरोना वायरस वास्तव में एक उपन्यास ही था और डाक्टरों तथा वैज्ञानिकों ने इसके प्रसार का वास्तविक कारण आज तक नहीं पाया है। वैक्सीन के प्रभावों के बारे में मिथकों और सच्चाई के बीच अब लाखों लोगों को टीका लगाया जा रहा है। 

भारत में कोविड की कहानी पिछले वर्ष जनवरी में वुहान से लौटे एक छात्र के साथ शुरू हुई थी। चर्चा में कम रहने वाले केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन ने वायरस के फैलाव पर नियंत्रण के लिए कई उपाय किए। मोदी सरकार ने भी 25 मार्च को राष्ट्रव्यापी लॉकडाऊन लगाया। तालाबंदी देश की आर्थिक लागत के बिना नहीं थी। सरकार ने घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय यात्राओं पर प्रतिबंध लगा दिया। सरकार ने दुकानों, सिनेमा हालों, स्कूलों, कालेजों, सभी कार्यालयों, कारखानों और निर्माण गतिविधियों को बंद करने का भी आदेश दिया। लाखों लोगों ने अपनी नौकरियां गंवा दीं और जी.डी.पी. सिकुड़ कर रह गई, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर आर्थिक पतन हुआ। 

सरकार ने पिछली जून में लॉकडाऊन में कुछ राहतें देना शुरू किया तथा अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए कई उपाय किए। अमरीका के बाद कोरोना वायरस मामलों की गिनती में भारत का नंबर था। देश में 10.7 मिलियन लोग संक्रमित पाए गए तथा 154,147 मौतें हुईं। भारत ने अपना टीकाकरण प्रोग्राम 16 जनवरी को शुरू किया। हालांकि अन्य देशों की तुलना में टीकाकरण अभियान देश में काफी देर से शुरू हुआ मगर इसकी टीकाकरण दर सबसे ऊंची है। भारत दुनिया के सबसे प्रभावी वैक्सीन और दवा निर्माताओं में से एक है। इसी के चलते कई देशों ने वैक्सीन की आपूर्ति के लिए भारत का रुख किया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन के अनुसार भारत में निर्मित कोविशील्ड वैक्सीन की 2 मिलियन खुराकें ब्राजील तथा अन्य दो मिलियन खुराकें मोरक्को को पिछले सप्ताह भेजी गईं। नेपाल तथा म्यांमार सहित आधा दर्जन पड़ोसी मुल्कों को वैक्सीन सप्लाई की गई। 

जैसा कि इस तरह की किसी भी महामारी से होता है, कुछ चीजें सही नहीं रहीं। यह ज्यादातर प्रशासनिक फैसलों या प्रभावी संचार की कमी के कारण था। उदाहरण के तौर पर लॉकडाऊन को बेहतर तरीके से संभाला जा सकता था। प्रवासी श्रमिकों का एक बड़ा प्रवास चिंता का विषय था। सीखने वाला महत्वपूर्ण सबक यह था कि देश को भविष्य में किसी भी महामारी से निपटने के लिए तैयार किया जाए। दूसरा सरकार ने तुरन्त उपाय किए। सामाजिक दूरी तथा मास्क पहनने के नियमों की पालना करने के लिए सरकार ने 117 करोड़ लोगों तक पहुंचने के लिए टैलीफोन संदेश का इस्तेमाल किया है। ये संदेश बड़ी तेजी से फैले और यहां तक कि इन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में भी पहुंचाया गया। 

तीसरा यह कि हर कोने से समर्थन जुटाया जा रहा है। राजनीतिक तौर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राज्यों के सभी मुख्यमंत्रियों को अपने विश्वास में लिया और आधा दर्जन से अधिक बैठकें कीं तथा देश को आधा दर्जन से अधिक बार संबोधित किया गया। चौथी बात यह है कि चिकित्सा कर्मचारियों को और मजबूत किया जा रहा है। कोविड रोगियों के इलाज के लिए अधिकांश अस्पतालों को परिवर्तित किया जा रहा है और स्वास्थ्य क्षेत्र पर सरकार अधिक खर्च कर रही है। डाक्टर हर्षवर्धन कहते हैं, ‘‘हमने जो सबसे अधिक महत्वपूर्ण सबक सीखा है वह यह है कि आपको हर समय जागरूक रहना होता है। सरकार ने साथ ही साथ वैज्ञानिकों और चिकित्सा शोधकत्र्ताओं को भी सक्रिय किया है। बाद के महीनों में एक दिन में लगभग एक लाख परीक्षण किए जा रहे हैं।’’ 

पांचवां, ग्रामीण वायरस तथा शहरी वायरस में फर्क देखा गया। ग्रामीण क्षेत्रों ने बेहतर कारगुजारी की। यहां तक कि झुग्गी-झोंपड़ी निवासियों ने भी नियमों का पालन किया था।  सामाजिक दूरी, अलगाव तथा क्वारंटाइन को एक योजनाबद्ध तरीके से लागू किया गया। छठा, यह कि महामारी में विज्ञान और स्वास्थ्य देखभाल पर ध्यान केन्द्रित किया गया। सार्वजनिक स्वास्थ्य, वैज्ञानिक अनुसंधान, सार्वजनिक निजी भागीदारी, स्वच्छता आदि जैसे विषय और महत्वपूर्ण हो गए।  डाक्टरों तक पहुंच बनाने के लिए टैलीमैडीसिन एक नया तरीका बन गया। यह अच्छी बात है कि इस साल के बजट में स्वास्थ्य मंत्रालय के लिए अधिक धन आबंटित किया गया। 

पहली बार वित्त आयोग के पास स्वास्थ्य के लिए एक अलग से अध्याय जोड़ा गया ताकि अगले कुछ वर्षों में स्वास्थ्य क्षेत्र को मजबूत किया जा सके। विधानसभा तथा स्थानीय निकाय चुनाव भी महामारी के दौरान ही हुए तथा देश एक त्यौहारी मौसमों से गुजरा। कुल मिलाकर भारत ने खराब  प्रदर्शन नहीं किया है। महामारी का प्रकोप शुरू होने से पहले भय व्याप्त था। सीखे गए सबक भविष्य के लिए काम आएंगे। कई डाक्टरों का कहना है कि हमें इस महामारी के साथ जीना पड़ेगा जैसा कि हम इबोला तथा अन्य वायरसों के साथ जीते रहे हैं।-कल्याणी शंकर 
 


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