अहंकार और अनदेखी से भरा कांग्रेस नेतृत्व

punjabkesari.in Saturday, May 21, 2022 - 04:58 AM (IST)

कांग्रेस पार्टी आज कहां खड़ी है? अभी तक ऐसा प्रतीत होता है कि यह पार्टी अभी भी अपनी पूर्व के शानो-शौकत भरे वर्षों की परछाइयों की गिरफ्त में फंसी हुई है। कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने तीन दिवसीय नव-संकल्प चिंतन शिविर (उदयपुर) में पार्टी के नेताओं से ठीक ही कहा कि यह समय भीतर देखने और आत्म चिंतन करने का है क्योंकि पार्टी अभूतपूर्व स्थितियों का सामना कर रही है जिसके तहत कांग्रेस को असाधारण उपायों की सख्त जरूरत है। 

सोनिया ने ढांचागत सुधारों की जरूरत पर बात की और उन्होंने इसके साथ-साथ दिन-प्रतिदिन कार्यों में बदलाव लाने के लिए भी नेताओं को कहा। इस संदर्भ में उन्होंने सही ढंग से एक संयुक्त प्रयास पर बल दिया ताकि पार्टी में अपेक्षित बदलाव लाए जा सकें। कांग्रेस नेतृत्व से इस तरह बार-बार दिए गए वक्तव्य के बारे में हम भली-भांति जानते हैं। बड़े-बड़े बेचारों ने शायद ही पार्टी के लोगों को कोई दिशा या किसी मंतव्य की अनुभूति करवाई हो। 

पिछले कई वर्षों के दौरान कांग्रेस पार्टी जमीनी स्तर पर लोगों से जुड़ी रही और यही बात पार्टी को मजबूत बनाती रही। गांवों तथा कस्बों में जमीनी स्तर पर कांग्रेस का सशक्त होना पार्टी के लिए सेवा दल के जमीनी स्तर के कैडरों के लिए अच्छा साबित हुआ था। आज हम चाहते हैं कि कांग्रेस पार्टी एक विश्वसनीय विपक्षी पार्टी के तौर पर राष्ट्रीय स्तर पर नजर आए। सेवा दल स्वयं सेवक के मध्य तथा शीर्ष स्तर के नेताओं के बीच लोगों को जोड़ने की एक कड़ी रहे। सेवा दल के प्रतिबद्ध कैडरों की अनुपस्थिति के चलते पार्टी बोझिल हो गई क्योंकि इसके ज्यादातर नेता जमीनी स्तर से लगभग कट कर रह गए। इसी बात ने पार्टी के संचार तथा प्रतिक्रिया को जमीनी स्तर पर प्रभावित किया। 

इस प्रक्रिया में पार्टी के राष्ट्रीय, राज्य तथा स्थानीय स्तर पर एक भावपूर्ण बातचीत की प्रक्रिया वस्तुत: गायब हो गई। इसमें कोई दोराय नहीं कि पार्टी के नेता अल्पावधि के फायदों को चाहते हैं। निजी वफादारी तथा हां में हां मिलाना मार्गदर्शन करने की फिलॉस्फी बन चुकी है। एक ही विचारधारा के वफादार लोग सोनिया गांधी तथा राहुल गांधी के साथ जुड़े हुए हैं। इसके अलावा हम एक चेहरा रहित हाईकमान का उदय भी देख रहे हैं। 

यह प्रवृत्ति इंदिरा गांधी की सरकार के दौरान प्रचलन में थी। उसके बाद राजीव गांधी ने भी अपनी मां के नक्शे कदम पर चलते हुए मुख्यमंत्रियों को थोपा तथा उन्हें हटाया। यह सब पार्टी में अनुशासनहीनता, गुटबाजी, अयोग्यता तथा राजनीतिक भ्रष्टाचार की लम्बी सूची को खत्म करने के लिए किया गया। अब यही प्रक्रिया सोनिया गांधी तथा उनके बेटे राहुल गांधी के नेतृत्व में व्याप्त है। इसमें कोई शंका नहीं है कि कांग्रेसी हाईकमान राज्यों तथा स्थानीय नेताओं से निपटने के लिए अहंकार और अनदेखी का प्रदर्शन कर रही है। 

दिलचस्प बात यह है कि एक राजनीतिक वापसी के लिए कांग्रेस अब महत्वपूर्ण सामाजिक ग्रुपों को एक नई डील का प्रस्ताव रखने की योजना बनाने में लगी हुई है। अब कांग्रेस विधायिका तथा संसद में अनुसूचित जाति (एस.सी.), अनुसूचित जनजाति, (एस.टी.), ओ.बी.सी. तथा अल्पसंख्यकों की महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रस्ताव रख रही है। ऐसे समय में यह कहना मुश्किल है कि क्या सोनिया गांधी के सुझाव राजनेताओं की एक नई पीढ़ी के नेताओं जोकि निजी स्वार्थ के लिए नहीं बल्कि सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता जताएंगे,  कांग्रेस की ओर आकॢषत करेंगे? क्या ऐसे नेता आवश्यक दृढ़ संकल्प पार्टी को ऊपर उठाने के लिए दिखाएंगे? 

सबसे बड़ी बात यह है कि कांग्रेस पार्टी चाहती है कि आम जनता के लिए लोकतंत्र और ज्यादा प्रासंगिक हो जाए। यह सब करना अच्छी बात है। मगर कांग्रेसी नेतृत्व को याद रखना चाहिए कि नौटंकी लोगों को चकाचौंध तो कर सकती है लेकिन यह लम्बे समय में उल्टी भी साबित हो जाती है। हालांकि आज गुजरात से हाॢदक पटेल जैसे युवा कांग्रेसी नेता पलायन कर रहे हैं। पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए यह बात मददगार साबित नहीं हो सकती। 

आगे की तरफ देखते हुए आज कांग्रेस को नई रेखाओं पर नई रूप-रेखा तैयार करनी होगी। न्याय तथा निष्पक्षता के मामले में लोकतांत्रिक जड़ें मजबूत करनी होंगी। शीर्ष कांग्रेसी नेतृत्व को आज एक विश्वसनीय योजना रूप-रेखा तैयार करनी होगी ताकि एक नया शानदार और धर्म निरपेक्ष भारत बनाया जा सके। हालांकि आर.एस.एस.-भाजपा और मोदी की उपस्थिति में कांग्रेस के लिए यह कोई आसान काम नहीं होगा।-हरि जयसिंह  
    
 


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