कैप्टन ने वायदे तो कर लिए मगर कैसे होंगे पूरे

punjabkesari.in Sunday, Aug 27, 2017 - 10:36 PM (IST)

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के नेतृत्व में चल रही कांग्रेस सरकार वर्तमान समय में मझधार में फंसी हुई है। कारण यह है कि चुनाव से पूर्व पार्टी ने लोगों से सवा सौ से कुछ ज्यादा ही वायदे कर लिए। इनका चुनावी घोषणा पत्र बाकायदा दस्तावेज भी है। वायदों को निभाने के लिए पैसों की आवश्यकता होती है तथा इनके पास पैसे हैं नहीं। 

वहीं ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने पूरा एक दशक सत्ता से बाहर बैठी कांग्रेस को फिर से सत्ता सौंपी ताकि एक तो कैप्टन अमरेन्द्र सिंह अपने वायदों के बड़े पक्के हैं। वह जो भी कहेंगे उसे हर हाल में पूरा करेंगे। इसकी मिसाल इन लोगों के पास कैप्टन की 2002 से 2007 वाली सरकार थी। इस सरकार को कैप्टन ने बखूबी ढंग से तथा अपनी मर्जी से चलाया। वह लोगों पर अपनी कार्यशैली के चलते उनके दिलो-दिमाग पर छा गए। हालांकि इस कार्यशैली के कारण उनके अपने विधायक तथा मंत्री भी अक्सर इस बात से नाखुश रहते थे कि वह उनसे कभी मुलाकात ही नहीं करते। तब भी यह बात यकीनी है कि 5 वर्ष तक कैप्टन ने लोगों पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। 

भले ही 2007 से 2017 तक पंजाब में कांग्रेस अंदरुनी धड़ेबंदी के कारण बिल्कुल महत्वहीन हुई पड़ी थी मगर यह भी तो कैप्टन का करिश्मा ही था कि 2014 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने न चाहते हुए भी हाईकमान के कहने पर अमृतसर से लोकसभा का चुनाव लड़ा तथा भाजपा की उस विशाल तोप को हराया जो वर्तमान में मोदी सरकार का वित्त मंत्री है। कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने हाईकमान को मना लिया कि यदि 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव को जीतना है तो प्रताप सिंह बाजवा से अध्यक्ष पद लेकर उनको सौंपा जाए। हाईकमान विशेष तौर पर राहुल गांधी ने उनकी यह बात मान ली जिसका नतीजा हम सबके सामने है। कैप्टन पिछले 5 माह से पंजाब सरकार की बागडोर सम्भाले हुए हैं।

इसलिए यह स्पष्ट-सी बात है कि कांग्रेस हाईकमान ने पंजाब विधानसभा चुनावों को अमरेन्द्र सिंह की बदौलत लड़ा था। बेशक कैप्टन ने चुनावों से एक वर्ष पूर्व समस्त पंजाब का दौरा किया तथा लोगों को एक बार फिर से अपने साथ जोड़ लिया। इसमें कोई दो राय नहीं कि लोगों ने उन पर पहले से ही विश्वास बना रखा था तथा इस बार भी उन्होंने कांग्रेस को सत्ता में काबिज कर अपने विश्वास पर नए सिरे से उस पर मोहर लगा दी। कड़वी सच्चाई यह भी है कि इस बार कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने चुनावों को बेहतरीन ढंग से लड़ा। पिछले चुनावों में भी उनसे पहले उनके बारे में यह मशहूर था कि वह लोगों के साथ तभी वायदा करते हैं जब वह पूरा होने वाला हो। वह ऐसा नहीं करते कि दूसरी राजनीतिक पार्टियों की तरह चुनावी घोषणापत्र में बड़े-बड़े वायदे कर दिए मगर फिर दस्तावेज को भूल ही जाएं। 

अब जबकि कैप्टन सरकार को बने कुछ माह हो गए हैं तथा उनके द्वारा किए गए वायदों में से एक भी पूरा नहीं हुआ जिनके बारे में उन्होंने अपनी छाती ठोंक कर कहा था कि यह तो वह पहले महीने में ही पूरे कर देंगे। राज्य का खजाना पिछली सरकार ही खाली कर गई। उस सरकार ने पूरे 10 वर्षों तक राज किया तथा दूसरी ओर समाज के विभिन्न वर्गों को सबसिडी देकर लोक लुभावन घोषणाओं के साथ खजाने से पैसा ही गायब कर दिया। इसके अलावा अन्य खर्चों के लिए जहां कहीं से भी ऋण की आस थी वहां से ऋण ले लिया। आज हालात यह हैं कि कैप्टन सरकार को 2 लाख करोड़ रुपए का ऋण विरासत में मिला है। अब वित्तीय स्रोत भी अभी तक इनके अपने नहीं हैं। जून में जो बजट पेश किया गया वह भी 15000 करोड़ घाटे का है। वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल एक कुशल मंत्री माने जाते हैं मगर उन्होंने यह नहीं बताया कि वह 15000 करोड़ रुपए का घाटा कैसे पूरा करेंगे? बजट में उन्होंने कुछेक अनिवार्य चुनावी घोषणाओं के लिए रकम भी रखी थी मगर यह नाकाफी थी। 

इनमें से यह बात खास है कि किसानों का ऋण माफ करना है जिन पर इस समय 90,000 करोड़ रुपए का ऋण चढ़ा हुआ है। सरकार ने 10 लाख छोटे किसानों का 2 लाख प्रति किसान के हिसाब से ऋण माफ किया है। यह राशि कागजों में ही पड़ी दिखाई देती है। किसानों के खातों में एक पैसा भी नहीं गया। जाए भी तो कैसे? न तो बैंक ही कोई हामी भरते हैं और न ही मोदी सरकार कुछ करने को तैयार है। कैप्टन मोदी तथा वित्त मंत्री अरुण जेतली से पंजाब के ऋण माफी के मामले को लेकर मिल चुके हैं मगर कोई भी इस बारे में आश्वासन देने को तैयार नहीं। पंजाब के बजट में अंदरुनी वित्तीय स्रोत पैदा करने की कोई भी राह नजर नहीं आती। इसके विपरीत लोगों को जो सुविधाएं पिछली सरकार ने दी थीं उनके कम या बंद होने का डर कैप्टन सरकार पर मंडरा रहा है। 

अब प्रश्र यह उठता है कि कैप्टन अमरेन्द्र सिंह लोगों संग किए गए वायदों विशेष तौर पर एक माह में यह वायदे पूरे करने के वचन का क्या करें। रास्ता तो एक ही बचा है वह भी पिछली सरकार की तरह ऋण लेकर अपनी राह आसान कर लें। भविष्य में जो होगा देखा जाएगा। सरकार के सिर पर पहले से ही इतना ऋण चढ़ा हुआ है कि और ऋण मिलने की कोई आस नहीं। ऋण तो तब मिलता है जब दूसरे को पता हो कि यह आसानी से लौटाया भी जा सकेगा। हाल तो यह है कि पूर्व में लिए गए ऋण की किस्तें भी नहीं दी जा रहीं। मुश्किल से ही कर्मचारियों का वेतन दिया जा रहा है।  कभी-कभी  तो  यह भय भी सताता है कि कर्मचारियों को शायद वेतन ही न मिल सके। वास्तव में कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने चुनावों से  पूर्व  लोगों संग वायदे तो बड़े-बड़े कर लिए मगर अब जब यह पूरे नहीं हो रहे तो लोगों का विश्वास टूट रहा है। 

इसमें कोई दो राय नहीं कि लोगों ने अपना मत कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के विश्वास पर ही दिया था। इसलिए कैप्टन को पूरा भरोसा था कि सरकार उनकी ही बनेगी जबकि चुनावी सर्वेक्षण कुछ और ही बता रहे थे या यह कहा जाए कि कैप्टन अमरेन्द्र सिंह पर अब सरकार को आगे चलाने की बड़ी जिम्मेदारी आ गई है। अब तो लोगों के मन में यह भय सता रहा है कि राज्य में सरकार नाम की कोई चीज ही नहीं। विपक्षी दल इसका फायदा उठाना चाहते हैं। विपक्षी दलों को यह चाहिए कि कैप्टन सरकार से तत्काल किसी परिणाम की मांग न की जाए बल्कि जिस तरह के पंजाब के बदतर आर्थिक हालात हैं इसके चलते इस सरकार को कुछ समय के लिए चलने दिया जाए। यह बात तो यकीनी है कि सरकार को 5 साल तक कोई हिला नहीं सकता।


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