रूस तथा यूक्रेन दोनों युद्ध से बच सकते थे

punjabkesari.in Sunday, Mar 06, 2022 - 05:19 AM (IST)

युद्ध नए-नए देश बनाता और बिगाड़ता है, देशों के बीच नई सीमाएं निर्धारित करता है। माना कि युद्ध समस्या का समाधान नहीं, परन्तु युद्ध नई कौमों को जन्म भी देता है। यह सच है कि युद्ध अंतिम हथियार है परन्तु युद्ध अंतिम सत्य भी माना जाता है। सीमाएं युद्ध को जन्म देती हैं। सीमाएं टूटती-फूटती रहती हैं, नए देश बनते-मिटते रहते हैं। इसी सिद्धांत ने 1991 में सोवियत यूनियन (रूस) को कई टुकड़ों में विभक्त कर दिया। सोवियत संघ 1991 में राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाच्योव के जीते-जी 17 देशों में बंट गया। यूक्रेन के एक नेता क्रॉबचक ने 1991 में ही सोवियत संघ से अलग होने की घोषणा कर दी थी। बस यहीं से रूस और यूक्रेन के बीच साल-दर-साल विवाद बढ़ता गया। यूक्रेन 1991 में एक स्वतंत्र संप्रभु देश बन गया। 

यूक्रेन का पश्चिमी हिस्सा यूरोपियन देशों से लगता है और पूर्वी हिस्सा रूस की सीमाओं से सटा हुआ है। पूर्वी हिस्से का झुकाव आज भी रूस की ओर है और पश्चिमी भाग यूरोप के प्रभाव तले हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात यूरोपियन देशों ने अपने बचाव के लिए 1949 में एक संधि कर ली जिसे ‘नाटो’ (नार्थ एटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन) कहते हैं। यूक्रेन-रूस का इतिहास इसी ‘नाटो’ के इर्द-गिर्द घूमता चला गया। यूक्रेन यूरोपियन देशों से अपना मेल-मिलाप बढ़ाता गया। यूरोपियन देशों ने भी यूक्रेन के लिए ‘मुक्त-व्यापार’ खोल दिया। यूक्रेन के लोगों के लिए ‘फ्री वीजा सिस्टम’ शुरू कर दिया। रूस को यूक्रेन का यह खेल नागवार लगा। उसे लगता था कि अमरीका के नेतृत्व में ‘नाटो’ संधि वाले देशों की सेनाएं उसकी सीमाओं पर आ डटेंगी और उसकी सुरक्षा हमेशा खतरे में रहेगी। 

1991 से जब से यूक्रेन एक स्वतंत्र देश बना है और अमरीका जैसा शक्तिशाली देश ‘नाटो’ का नेतृत्व कर रहा है, रूस खुद को असुरक्षित समझने लगा। यही भय यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध का कारण बना हुआ है। इसी भय के आलम में चीन में ‘विंटर ओलिम्पिक खेलों’ का आयोजन हुआ। खेलों की आड़ में रूस के राष्ट्रपति ‘व्लादिमीर पुतिन’ चीनी राष्ट्रपति ‘शी जिनपिंग’ से मिले। अपनी व्यथा सुनाई और कहा कि चीन अपने ‘व्यापारिक हितों’ के लिए यूरोपियन देशों की मदद न करे। सहमति हो गई। वैचारिक रूप से भी चीन और रूस साम्यवादी देश हैं। अत: यह दोनों शक्तिशाली देश यूक्रेन में ‘लोकतंत्र’ को क्यों पनपने देंगे? 

वैसे भी 1917 में जब रूस में साम्यवाद आया तो यूक्रेन की प्रभुसत्ता सोवियत संघ ने खत्म कर दी। सोवियत संघ ने यूक्रेन के लोगों में भावनात्मक तौर पर विभाजन के बीज बोए। ‘कम्युनिस्ट क्रांति’ ने यूक्रेन को गृह युद्ध में धकेल दिया। जब यूक्रेन सोवियत संघ में शामिल हुआ तो उस में कई सामाजिक बदलाव आए। 1930 के दशक में सोवियत नेता जोसेफ स्टालिन ने यूक्रेन के किसानों को ‘सामूहिक खेती’ के लिए मजबूर किया। जब यूक्रेन के लोगों ने खेती पर अपनी ‘मिल्कियत समाप्ति’ का विरोध किया तो लाखों किसान भूख से मर गए। यूक्रेन की भाषा समाप्त कर दी गई, उन्हें रूसी भाषा पढऩे-लिखने को विवश किया गया। सोवियत संघ में रहने वाले लोगों को यूक्रेन में बसाया जाने लगा। इससे आबादी का अनुपात बिगडऩे लगा। यूक्रेन का पूर्वी भाग सबसे पहले रूसी प्रभाव में आया। रूस से लगाव रखने वाले नेता भी पूर्वी हिस्से के थे। 

पश्चिमी हिस्से में यूरोपीय ताकतों का हाथ रहा जैसे पोलैंड और आस्ट्रो-हंगरी साम्राज्य। यूक्रेन के पूर्वी हिस्से के लोग रूसी बोलने वाले और आर्थोडॉक्स क्रिश्चियन हैं और पश्चिमी हिस्से के लोग यूक्रेन की भाषा बोलने वाले और कैथोलिक ईसाई हैं। यही कारण है कि रूस ने पूर्वी हिस्से में यूक्रेन के वर्तमान 2 प्रांतों लोहोन्सक और डोनेत्स्क को स्वतंत्र देश घोषित कर दिया। ये दोनों प्रांत पहले से ही रूसप्रस्त और आतंकी गतिविधियों के केंद्र थे। रूस ने विश्व के देशों को धोखे में रखा और योजनाबद्ध ढंग से अपनी सेनाओं से यूक्रेन को घेर लिया। घोषणाएं की गईं कि रूसी फौजें केवल सैन्य अभियान कर रही हैं परन्तु उसकी मंशा यूक्रेन को सबक सिखाना थी। यूक्रेनी लोगों पर भयानक स्तर का साइबर अटैक हुआ, जिसमें कहा गया कि ‘डर कर रहो और बुरे दिनों का इंतजार करो’। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने अपने देश के लोगों से कहा कि ‘रूस कभी भी हम पर हमला कर सकता है।’ अंतत: रूस के इरादे सबके सामने आ गए। 

24 फरवरी, 2022 को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के ऊपर स्पैशल ‘मिल्ट्रिी आप्रेशन’ का आदेश दिया। पूर्वी यूक्रेन पर हमला कर दिया। यूक्रेन के लोगों से कहा कि वह हथियार डाल दें। रूस की सेना ने मिसाइल और तोपों के गोलों से यूक्रेन की सेना, एयरबेस और मुख्य शहरों को निशाना बनाया है। ‘खारकीव’ और यूक्रेन की राजधानी ‘कीव’ को खंडहर बना दिया है। युद्ध जारी है, परिणाम कुछ भी हो सकते हैं, परन्तु रूस को यह अंदाजा नहीं था कि युद्ध इतना लम्बा ङ्क्षखचेगा। मैं यूक्रेन से इतना अवश्य कहना चाहूंगा कि लड़ती हमेशा अपनी बांहें हैं। राष्ट्रपति जेलेंस्की से भी कहूंगा ‘नाटो’ की तरफ मत देखो, अमरीका पर भरोसा न करें, सिर्फ अपने देश के लोगों और अपनी सेना पर भरोसा रखें। परिणाम भयंकर भी हो सकते हैं। वार्तालाप जारी रखो। देखना कहीं रूस-यूक्रेन युद्ध तीसरा विश्व युद्ध न बनने पाए। आजादी किसी भी देश की हो, वह खून मांगती है। अगर यूक्रेन रूस जैसे शक्तिशाली देश का सामना कर सकता है तो डटा रहे अन्यथा समझौते की ओर हाथ बढ़ाए। 

यह भी ध्यान रहे कि रूस के बाद यूक्रेन यूरोप का दूसरा और दुनिया का 46वां सबसे बड़ा देश है। यूक्रेन का कुल क्षेत्रफल 6 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक है, जनसंख्या 2020 की जनगणना के अनुसार 4.41 करोड़ है जबकि इसके मुकाबले रूस की कुल आबादी 14.41 करोड़ है और क्षेत्र 17.13 लाख वर्ग किलोमीटर है। क्या मुकाबला होगा? परन्तु युद्ध में संख्या और क्षेत्रफल काम नहीं आता। युद्ध में काम आती है किसी देश के लोगों की लडऩे की दृढ़ इच्छाशक्ति, जज्बा, एकता और विजयी होने का भाव।  एक छोटे से देश इसराईल का उदाहरण यूक्रेन जरूर अपने ध्यान में रखे। वह अकेला 50 इस्लामिक देशों से जूझ रहा है। यह सच है कि यह युद्ध दोनों देशों की सांझी विरासत का युद्ध है। दोनों देशों का जन्म एक ही स्थान ‘स्लाविक राज्य कीवन रस’ के बीचों-बीच हुआ था। दोनों देश युद्ध से बच भी सकते थे। दोनों देशों का इतिहास भी जोडऩे और बांटने वाला है। दोनों देशों की सभ्यता 90,000 साल पुरानी है। लड़ क्यों रहे हो? दोनों देश मिल-बैठ कर अपने मसले हल करें।-मा. मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)


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