नागरिकता कानून पर भाजपा का दोहरा रुख

punjabkesari.in Friday, Apr 02, 2021 - 02:18 AM (IST)

आमतौर पर मीडिया, खासकर इलैक्ट्रॉनिक मीडिया, पश्चिम बंगाल में चल रहे विधानसभा चुनावों पर अपना ध्यान केन्द्रित किए हुए है। मगर असम के विधानसभा चुनाव राष्ट्रीय राजनीति के दृष्टिकोण से अधिक महत्व रखते हैं। पश्चिम बंगाल के विपरीत, जहां ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच एक सीधी लड़ाई है, असम में सत्तारूढ़ भाजपा और कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन ‘महाजोत’ के बीच करीबी मुकाबला देखा जा रहा है। पश्चिम बंगाल में भाजपा ममता के खिलाफ सत्ता विरोधी पहलू पर दांव लगा रही है, जो मुख्यमंत्री के रूप में अपना तीसरा सीधा कार्यकाल चाहती हैं, असम में भाजपा एक पुनरुत्थानशील कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन के खिलाफ अपना गढ़ बचाए रखने का प्रयास कर रही है। 

भाजपा ने 2016 में कांग्रेस से सत्ता छीनी थी। यह मुख्य रूप से कांग्रेस के खिलाफ सत्ता विरोधी कारक था। वहां पर कांग्रेस एक दशक से अधिक समय से सत्ता में थी। असम में भाजपा की जीत ने उत्तर-पूर्व में उसके लिए प्रवेश द्वार खोला था। विडम्बना देखिए कि भाजपा दो पड़ोसी राज्यों में विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम (सी.ए.ए.) के मुद्दे पर लगभग विरोधाभासी रुख रखती है। पश्चिम बंगाल में भाजपा ने इसे सबसे महत्वपूर्ण वायदों में से एक बना दिया है। उधर असम में पार्टी के घोषणा पत्र में सी.ए.ए. के मुद्दे पर भाजपा चुप्पी साधे हुए है। 

पश्चिम बंगाल और असम में राजनीतिक लाभ लेने के लिए कानून लाया गया था लेकिन असम की जटिल जनसांख्यिकी के कारण वहां इसे कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है। यह अधिनियम असम के उन वर्गों को खुश करने के लिए था जो सोच रहे थे कि पड़ोसी बंगलादेश के प्रवासी मुस्लिम असम में घुसपैठ कर रहे हैं और संख्या में मूल निवासियों को पछाड़ सकते हैं। हालांकि भाजपा को शायद यह अनुमान नहीं था कि स्थानीय लोग बंगलादेश से ङ्क्षहदुओं की घुसपैठ के भी प्रबल विरोधी थे और इसी कारण से कि वे राज्य के असमी बोलने वाले हिंदुओं को संख्या में पछाड़ सकते हैं। 

कानून पारित होने से विशेष रूप से ऊपरी असम के क्षेत्रों में जोरदार विरोध प्रदर्शन हुए जिन्होंने पिछले चुनावों में भाजपा का समर्थन किया था। भाग्य से आंदोलन कोविड महामारी के प्रकोप के कारण खत्म हो गया। अब कांग्रेस ने सी.ए.ए. को अपना सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बना लिया है और यह घोषणा की है कि वह राज्य में इसे लागू नहीं होने देगी। अब सवाल है कि क्या यह मुद्दा इन चुनावों के लिए महत्वपूर्ण है? यदि अधिनियम के खिलाफ उकसाने वाली नाराजगी मतदान के दौरान दिखाई पड़ी तो कांग्रेस को लाभ होगा। दूसरी ओर भाजपा इस मुद्दे को नजरअंदाज कर रही है और उसे लागू करने का वायदा नहीं कर रही। इन चुनावों में कांग्रेस पार्टी अल्पसंख्यकों, आदिवासियों और चाय बागानों के श्रमिकों पर अपने पिछले फोकस की बजाय खुद की सभी असमियों के लिए एक पार्टी के रूप में पेश करने की कोशिश कर रही है। 

असम गण परिषद अब भाजपा की सहयोगी पार्टी है लेकिन राज्य में इसका सीमित समर्थन है। चुनाव परिणामों के दौरान बड़ी संख्या में चाय बागानों के श्रमिकों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होने की संभावना है। सत्तारूढ़ भाजपा ने चाय बागान श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी में बढ़ौतरी के अपने 2016 के वायदे को पूरा नहीं किया और अब उसने घोषणा पत्र में एक नया वायदा किया है। भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन ने पिछला विधानसभा चुनाव कम अंतर से जीता था और जनमत सर्वेक्षण इस बार भी संभावित करीबी मामला होने का दावा कर रहे हैं। असम एकमात्र ऐसा राज्य है जहां कांग्रेस की जीत की कुछ संभावना नजर आती है। यदि ऐसा हुआ तो पार्टी के पास कहीं और भी अपने पुनरूद्धार के कुछ मौके हो सकते हैं। 

दूसरी ओर भाजपा भी कोई कसर नहीं छोड़ रही, हालांकि उसने पश्चिम बंगाल चुनाव जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है। असम में सत्ता में बने रहना यह दर्शाएगा कि बड़े पैमाने पर बेरोजगारी और डगमगाती अर्थव्यवस्था सहित महामारी ने इसकी लोकप्रियता को कम नहीं किया है। मतगणना और परिणाम 2 मई को उत्सुकता से देखे जाएंगे।-विपिन पब्बी


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