सौंदर्य सिर्फ भोग-विलास की सामग्री बना
punjabkesari.in Friday, Apr 21, 2023 - 05:49 AM (IST)

प्राचीन काल से ही काम कृत्य धार्मिक, सामाजिक नजरिए में अति संवेदनशील एवं महत्वपूर्ण स्थान रखता रहा है। काम क्रीड़ा को केवल वंश वृद्धि का साधन मात्र ही समझा गया है।मानव जीवन की चारों अवस्थाओं अर्थात बाल्यकाल, यौवनकाल, वानप्रस्थ व वृद्धावस्था में इसे केवल यौवनकाल में ही स्थान दिया गया है। जहां जवानी के जोश व कामाग्नि शांत करने के उद्देश्य से ही इसे वर्णित किया गया है। वह भी सामाजिक रूप से निर्देशित सीमा रेखा के अंतर्गत ही इसे प्रयोग किया जा सकता है।
हमारे वतन में निर्धारित संस्कार, मर्यादा, नैतिकता एवं परम्पराएं विश्व में अग्रणी व सर्वोपरि रही हैं। इसीलिए वासना को मर्यादित रखने हेतु जवानी बेकाबू होने से पूर्व ही शादी व दाम्पत्य जीवन को अधिमान दिया गया है। गृहस्थ जीवन की सीमा रेखा के भीतर ही वंश वृद्धि के मुख्य उद्देश्य से काम क्रीड़ा व संभोग स्वीकृत रखा गया है। इस सीमा रेखा से बाहर जाकर किए दुष्कर्मों पर प्रतिबंध लगाने हेतु सख्त सजाओं का प्रावधान किया गया। अभी तक तो समाज की संरचना अनुसार ही नियम व कायदे-कानून निर्धारित किए गए, परन्तु इसके विपरीत गत कुछ अर्से से पाश्चात्य संस्कृति की भौंडी नकल पर उतारू समाज के तथाकथित आधुनिक वर्ग ने इस कामवासना के अत्यंत कुरूप व घिनौने समलैंगिकता रूप को अपनाना शुरू कर दिया है जिसका मतलब है पुरुष का पुरुष व स्त्री का स्त्री से शारीरिक संबंध जिसकी कल्पना मात्र ही से घिन आती है।
भगवान ने इंसान की उत्कृष्ट रचना कर पुरुष, स्त्री के रूप में विभाजित किया है जिनकी मानसिक व शारीरिक रचनाएं भी विभिन्न हैं। यहां तक कि उनके जननांग भी अलग-अलग रूप में बनाए ताकि परस्पर पूरक रूप में उनका प्रयोग हो सके। हां, कभी-कभी तकनीकी कारणों से किन्नर की भी उत्पत्ति हो जाती है जो न पुरुष और न ही स्त्री होते हैं। पुरुष व स्त्री दोनों का मिलन ही आगे सन्तान की उत्पत्ति करता है, इसी से वंश वृद्धि होती है।
जननांगों में परस्पर आकर्षण पैदा करने का उद्देश्य भी यौन आनन्द की पूर्ति करना ही था क्योंकि इन्हीं अंगों से मूत्र विसर्जन भी होता है। स्वत: ही इनमें गन्दगी, दुर्गंध व घिन स्वाभाविक होती है। इस विरक्ति व उदासीनता निहित अलगाव भावना को न पनपने देने के उद्देश्य से ही इनके प्रति आकर्षण की भावना एवं अहसास का सृजन किया होगा। इस मूल भावना को आज के इंसान ने अत्यन्त विकृत रूप दे कर इसे केवल यौन आनंद एवं हवस पूर्ति के रूप में ही देखना शुरू कर दिया। आज इसे वंश वृद्धि व शारीरिक सुख ही समझना मुख्य उद्देश्य बना लिया है। पुरुष स्त्री की गुलामी की हद तक जाकर भी इस चरम सुख को प्राप्त करना चाहते हैं।
पुरुषों की इस कमजोरी में इजाफा करने, अपनी मनमानी व स्वार्थ पूर्ति हेतु स्त्रियों ने भी नंगेज अपना कर जिस्म चिपकू या जिस्म उघाड़ू लिबास धारण कर पुरुषों को वासना का गुलाम बनाकर रख दिया है। कुदरत द्वारा दी गई उपहार स्वरूप कामिनी काया को सिर्फ दिखावे की वस्तु बना दिया है। सौंदर्य महज भोग-विलास की सामग्री बनकर रह गया है। दाम्पत्य जीवन इस कामवासना ने बर्बाद कर दिया है। शादी सरीखा पवित्र बंधन अब कामवासनावश लिव इन रिलेशनशिप में तबदील हो गया है। संभोग में भी विकृत, घिनौने, भौंडे रूप आ गए हैं?
अब तो बाकायदा सैक्स क्लब, स्ट्रिप्टीज क्लब ,मसाज पार्लर, नाइट क्लब के नाम पर अश्लीलता परोसी जाती है। कामुक प्रवृत्तियां पनप भी रही हैं। यौन क्राइम भी बढ़ रहे हैं, काम जनित बीमारियां भी बढ़ती जा रही हैं। समलैंगिकता इसी का घिनौना रूप है जो वर्तमान में बढ़ रहा है। धार्मिक गुरुओं, बुद्धिजीवियों, समाज शास्त्रियों, मनोविदों, स्वास्थ्य चिकित्सकों, समाज सेवी संस्थाओं सभी का सामयिक फर्ज बनता है कि सरकार के विरोध के समर्थन में सहयोग करते हुए इन प्रवृत्तियों के खिलाफ आवाज उठाएं जो न हमारे देश की संस्कृति, नैतिकता, मर्यादा, परम्पराओं पर कुठाराघात करती हैं, अपितु मानवता के उच्च मूल्यों के विपरीत भी हैं।-जे.पी.शर्मा