बंगलादेश स्वयं पाकिस्तान ने बनाया

punjabkesari.in Saturday, Dec 10, 2022 - 05:06 AM (IST)

16 दिसम्बर, 1971 को दुनिया के नक्शे पर एक नया देश जन्मा। इसका उत्तरदायित्व किसी और देश को पाकिस्तान नहीं दे सकता। यदि घटनाक्रम पर नजर डाली जाए तो पाकिस्तान स्वयं अपने देश के टुकड़े करने से नहीं बच सकता। इसमें निश्चित तौर पर कोई शक नहीं कि मोहम्मद अली जिन्ना ने ‘टू नेशन थ्योरी’ की जिस घृणित नीति को जन्म देकर पाकिस्तान बनवाया उस पाकिस्तान के मुसलमानों को पाकिस्तान इकट्ठा न रख सका और 16 दिसम्बर, 1971 को बंगलादेश बनवा डाला। 1947 को पाकिस्तान बना। इसके दो भाग थे पश्चिमी-पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान। 

एक की राजधानी लाहौर, दूसरे यानी पूर्वी पाकिस्तान की राजधानी थी ढाका। एक अलग मुल्क तो हिंदोस्तान का बंटवारा करके पाकिस्तान बना दिया परन्तु पश्चिमी पाकिस्तान का मुसलमान पूर्वी पाकिस्तान को हेय समझता था। पश्चिमी पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों का राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक तौर पर शोषण किया। पूर्वी पाकिस्तान को आर्थिक तौर से पिछड़ा रखा गया। पश्चिमी पाकिस्तान की इस शोषण की नीति ने पूर्वी पाकिस्तान, जिसकी बहुसंख्यक आबादी बंगाली थी, को रोष से भर दिया। 

ध्यान दें, पूर्वी पाकिस्तान में चुनाव से पहले वहां 120 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चक्रवात और समुद्री तूफान आया या यूं कहें कि पूर्वी पाकिस्तान में एक सुनामी आई। यह 20वीं सदी का सबसे भयानक तूफान था। इसमें दो लाख लोग मारे गए। लाखों बेघर हुए। इस तबाही के प्रति राष्ट्रपति याहिया खान और उनकी सरकार का रवैया लापरवाही वाला रहा। लोग मरते रहे, सरकार देखती रही।

राष्ट्रपति याहिया खान ने सुनामी प्रभावित क्षेत्रों का दौरा तक न किया। इससे पूर्वी पाकिस्तान में लोग नाराज हो गए। सुनामी के बाद 7 दिसम्बर, 1970 को पाकिस्तान में राष्ट्रीय असैंबली के चुनाव हुए। यह चुनाव निर्णायक चुनाव थे। पूर्वी पाकिस्तान अब भी पाकिस्तान का हिस्सा था। पाकिस्तान की आधी आबादी पूर्वी पाकिस्तान में रहती थी। चुनाव में असली विजेता शेख मुजीबुर्रहमान और उनकी अवामी लीग थी। उनको पूर्वी पाकिस्तान की सारी सीटें मिलीं। 

राष्ट्रीय असैंबली की 207 सीटों में से शेख साहिब की पार्टी को 160 सीटें मिलीं। पूर्वी पाकिस्तान में नैशनल असैंबली में कुल 162 सीटें थीं। देश के पश्चिमी हिस्सों के दो बड़े प्रांतों पंजाब और सिंध में जुल्फिकार अली भुट्टो और उनकी पी.पी.पी. को वोट किया। चुनाव के बाद भुट्टो ने एक तरह से अपने आपको देश का प्रधानमंत्री घोषित कर दिया। उनके प्रस्ताव अजीबो-गरीब थे। उनका सुझाव था देश में दो संविधान होंगे-एक पूर्वी पाकिस्तान के लिए, दूसरा पश्चिमी पाकिस्तान के लिए। दोनों के अलग-अलग प्रधानमंत्री होंगे। 

वे भूल गए कि भौगोलिक, दृष्टि में पश्चिमी-पाकिस्तान जैसा कोई देश नहीं। वे जिसे पश्चिमी पाकिस्तान कह रहे थे उनमें चार प्रांत थे। उन्होंने पश्चिमी पाकिस्तान के लोगों के डर को भुनाया कि अगर अवामी लीग सत्ता में आई तो वह चुनाव में किए वायदे के मुताबिक नया संविधान पाकिस्तान पर लाद देगी क्योंकि अवामी लीग ने चुनाव के दौरान वायदा किया था कि यदि वह सत्ता में आई तो प्रांतों को अधिक स्वायत्तता देगी। केंद्र के पास केवल रक्षा, करंसी और विदेश मंत्रालय रहेगा। भुट्टो ने डर दिखाया कि देश पर लम्बे समय तक बंगालियों का प्रभुत्व हो जाएगा। भुट्टो साहिब यह भी भूल गए कि बंगाली भी पाकिस्तानी हैं और शेख मुजीबुर्रहमान की अवामी लीग कानूनी और जनतांत्रिक ढंग से चुनाव जीत कर आई है। 

संविधान सभा को तीन महीनों में नया संविधान बनाना था परन्तु उसकी कभी बैठक ही नहीं हुई। भुट्टो की धमकी के कारण नहीं बल्कि सेना के कुछ बड़े अधिकारियों की मिलीभगत ने पाकिस्तान को बर्बाद कर दिया। शेख-मुजीर्बुरहमान की विशाल सोच ने भुट्टो का खेल बिगाड़ दिया। 25 मार्च, 1971 को राष्ट्रपति याहिया खान ने संविधान सभा की बैठक अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी। याहिया खान यहीं तक ही नहीं रुके, उन्होंने अवामी लीग पर प्रतिबंध लगाकर उसके निर्वाचित नेता शेख मुजीबुर्रहमान को गिरफ्तार कर लिया।पूर्वी पाकिस्तान की जनता ने विद्रोह कर दिया। 

नि:संदेह भारत ने स्थिति का फायदा उठाया। पाकिस्तानी सेना इस विद्रोह को दबाने निकल पड़ी, 3 दिसम्बर, 1971 को भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ गया। मुक्ति वाहिनी जन सेवा बन गई। स्थितियां भारत के अनुकूल थीं। भारत ने इसका भरपूर लाभ उठाया। 26 मार्च को अवामी लीग और पूर्वी पाकिस्तान के बुद्धिजीवियों ने इकट्ठे होकर पाकिस्तान से आजादी और बंगला देश बनाने की घोषणा कर दी। कितनी राजनीतिक विडम्बना है कि 313 सीटों वाली नैशनल असैंबली में 169 सीटें जीतने वाले को जेल और 55 सीटें जीतने वाले भुट्टो को प्रधानमंत्री पद। 

देश तो बर्बाद होना ही था। इसमें अगर पाकिस्तान यह कहे कि हिंदोस्तान ने बंगला देश में मुक्ति वाहिनी के रूप में अपनी सेना भेज हमारी पीठ में छुरा घोंपा है तो यह पाकिस्तान की भूल है। अंतत: 16 दिसम्बर, 1971 में पाकिस्तानी फौज के 94,000 सैनिकों ने जनरल ए.के. नियाजी के नेतृत्व में भारतीय सेना के जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के  सामने आत्मसमर्पण कर दिया और विश्व के नक्शे पर ‘बंगलादेश’ का जन्म हुआ।-मा. मोहन लाल (पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)


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