1 रुपए के ‘नोट’ की वापसी

punjabkesari.in Friday, Mar 13, 2015 - 12:25 AM (IST)

(रोहित बंसल) कब आपने अंतिम बार रुपए 11, 21, 51, 101 अथवा 1001 का नकद तोहफा देखा था? संभवत: हर बार।

मगर कब आपने अंतिम बार इस पवित्र राशि के अंत में एक कड़क तथा साफ-सुथरा 1 रुपए का नोट देखा था? सोच में पड़ गएन?

हममें से अधिकतर इस समस्या को 1 रुपए के सिक्के से सुलझा लेते हैं। अधिक आधुनिक किस्म के लोगों ने रुपए 10, 20, 50, 100 अथवा 1000 देना (तथा लेना) शुरू कर दिया है।

मगर कड़क 1 रुपए का नोट फिर लौट आया है! 1994 में बंद होने के 20 वर्षों बाद।
1 रुपए के नोट पर हस्ताक्षर करने के लिए केन्द्रीय वित्त सचिव कानूनी रूप से अधिकृत हैं और उदयपुर के नाथद्वारा में श्रीनाथजी मंदिर में राजीव मेहऋषि ने प्रार्थना करने के बाद 1 रुपए का नोट जारी किया। 1 रुपए के नए नोटों का एक बंडल श्रीनाथजी के चरणों में चढ़ाया गया। कृष्ण भंडार के इंचार्ज सुधाकर शास्त्री ने यह जानकारी देते हुए बताया कि मेहऋषि ने 100 नोटों के बंडल पर हस्ताक्षर करने के साथ-साथ 1 रुपए के एक नोट पर भी दस्तखत किए।

अब आपको कुछ रोचक जानकारियां भी दे दें जो आप जानना चाहेंगे :
तकनीकी भाषा में 1 रुपए का नोट एक सिक्का है। आपने सही पढ़ा-कॉयनेज एक्ट 2011, जिससे मेहऋषि ने 1 रुपए का बैंक नोट जारी करने की शक्ति हासिल की, के अनुसार कॉयन यानी सिक्के का अर्थ यह है कि कोई भी सिक्का जो किसी भी धातु अथवा अन्य वस्तु से बना हो जिस पर भारत सरकार अथवा भारत सरकार द्वारा अधिकृत किसी व्यक्ति की मोहर लगी हो।

रिजर्व बैंक के कुछ लोगों का मानना है कि 1 रुपए के नोट की वापसी का श्रेय मेहऋषि को नहीं जाता, यद्यपि भारतीय मुद्रा पर दो भाषाओं में उनका नाम जरूर है।

रिजर्व बैंक की वैबसाइट पर रुपए 1 (रुपए 2 तथा 5) को समाप्त करने बारे कहा गया है। साथ ही यह भी बताया गया है कि कुल बैंक नोटों के प्रचलन में छोटी कीमत के बैंक नोटों की हिस्सेदारी सबसे अधिक है। इन नोटों की छपाई की लागत उनके जीवन से मेल नहीं खाती थी इसलिए इनकी छपाई बंद करके इन्हें सिक्कों के रूप में जारी कर दिया गया। हालांकि सिक्कों की आपूर्ति तथा मांग में अन्तर को पूरा करने के लिए 2001 में 5 रुपए के नोट को फिर जारी कर दिया गया। 2005 में 5 रुपए के बैंक नोट की छपाई फिर बंद कर दी गई।

यहां प्रश्र यह है कि क्या 1 रुपए के नोट की छपाई की लागत इतनी अधिक है कि एक महान देश उसके खर्च को वहन नहीं कर सकता। क्या इसे इसलिए छापा जा रहाहै कि लाखों भारतीयों की उस पवित्र मौके (शगुन) की जरूरत को पूरा किया जा सके? (पा.)


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