बच्चों को ‘सुधारने’ के नाम पर 62 प्रतिशत अभिभावक करते हैं पिटाई

punjabkesari.in Tuesday, Feb 24, 2015 - 02:04 AM (IST)

(विनम्रता बोरवाणकर) भारत की वित्तीय राजधानी यानी मुम्बई महानगर में एक सर्वेक्षण से खुलासा हुआ है कि बच्चों के लालन-पालन के संबंध में अभिभावकों की आदतें बहुत घटिया हैं। कम से कम 62 प्रतिशत अभिभावक अपने बच्चों की पिटाई करते हैं।

2012 में जब ऐसा ही सर्वेक्षण किया गया था तो 69 प्रतिशत लोगों ने यह माना था कि वे अपने बच्चों की पिटाई करते हैं व उनके कान खींचते हैं। ताजा सर्वेक्षण मुम्बई के 1700 अभिभावकों पर आधारित है। एक महत्वपूर्ण खुलासा यह हुआ है कि बच्चों को दंडित करने के मामले में माताएं अग्रणी हैं। जहां 29 प्रतिशत पिता यह मानते हैं कि वे अपने बच्चों को दंडित करते हैं, वहीं ऐसा करने वाली माताओं की संख्या 61 प्रतिशत है।

बच्चों की बुरी तरह पिटाई करने वाली माताओं में से केवल 9 प्रतिशत ही विशुद्ध गृहिणियां हैं जबकि 2012 के सर्वेक्षण में ऐसी माताओं की संख्या 62 प्रतिशत थी। सर्वेक्षण ‘बॉर्न स्मार्ट’ नामक संगठन ने किया था जो बच्चों के लालन-पालन से संबंधित है।

बच्चों की पिटाई करने वाले 80 प्रतिशत अभिभावकों ने माना कि उनके साथ खुद बचपन में ऐसा ही व्यवहार होता रहा है। बच्चों की पिटाई के मामले में अभिभावकों के खुद के बचपन के कटु अनुभव महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। ‘बॉर्न स्मार्ट’ दल की सदस्य और ‘अर्ली चाइल्डहुड एसोसिएशन’ की अध्यक्ष स्वाति पोपट वत्स ने बताया कि जो लोग बचपन में पिटते रहे होते हैं वे स्वयं अभिभावक बनने पर ऐसा ही व्यवहार करना बिल्कुल स्वाभाविक मानते हैं।

बच्चों को दंडित करने के मामले में अभिभावकों द्वारा सबसे प्रमुख आम कारण यह बताया जाता है कि वे खुद काम के कारण थके हुए और जीवन की समस्याओं से इतने हताश होते हैं कि बच्चों को नियंत्रित करने के योग्य नहीं होते। दूसरी बात वे यह भी बताते हैं कि पिटाई सचमुच ही अपना रंग दिखाती है और बच्चे इससे सुधरते हैं।

सर्वेक्षण से यह भी खुलासा हुआ कि 2 से 8 वर्ष की आयु के बीच वाले बच्चे ही सबसे अधिक दंडित होते हैं जबकि 8 से 10 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों को मुख्य तौर पर या तो जेब खर्च बंद करने या फिर बोर्डिंग स्कूल में भेज देने की धमकी दी जाती है। वत्स ने कहा कि बच्चों की पिटाई करने व उन्हें दंडित करने से उनके दिमाग कतई चुस्त नहीं होते बल्कि उनके अंदर पाश्विक भावनाएं अधिक बलवती होती रहती हैं। (टा.)


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