भारत में आज अराजकता, अफरा-तफरी और बेबसी

punjabkesari.in Wednesday, May 12, 2021 - 05:19 AM (IST)

देश की मौजूदा चिंताजनक स्थिति का अंदाजा सर्वोच्च न्यायालय तथा राज्यों के कई उच्च न्यायालयों की ओर से कोरोना महामारी के प्रति केंद्र सरकार की गलत तथा पूरी तरह गैर गैर जिम्मेदाराना पहुंच के बारे में की जा रही गंभीर टिप्पणियों से लगाया जा सकता है। अस्पतालों में ऑक्सीजन, बैडों और दवाइयों की कमी से तड़प रहे मरीजों तथा उनके रिश्तेदारों की ओर से डाक्टरों तथा अन्य विशेष व्यक्तियों के सामने गिड़गिड़ाते हुए अपने मरीजों के इलाज हेतु की जाने वाली चीखो-पुकार प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति को झिझोड़ कर रख देती है। 

मरने वालों की रोजाना की गिनती हजारों में पहुंच गई है और नए मरीजों की कतार हर दिन लाखों का आंकड़ा छू रही है। स्वास्थ्य सेवाओं में लगे हुए कर्मचारी मानसिक दबाव में कार्य कर रहे हैं और दुखी होकर अनेकों डाक्टर नौकरियों से इस्तीफे दे रहे हैं। 

ठेकेदारी प्रथा के अधीन अस्थायी तौर पर भर्ती हुए स्वास्थ्य कर्मियों की कम तन वाह और अनिश्चित भविष्य पहले से ही बैठे हुए लोगों का जीवन तरस योग्य बना रहा है। इस आपदा में दवाइयों, ऑक्सीजन तथा दूसरे स्वास्थ्य उपकरणों की कालाबाजारी ने दर्शा दिया है कि सरकारें कितनी जि मेदार हैं तथा समाज विरोधी तत्व अपने स्वार्थ के लिए किस हद तक जा सकते हैं। देश के जो नेता संसार के दूसरे देशों में कोरोना महामारी के पहले दौर में लाखों की गिनती में हुईं मौतों के समय कोई संवेदना तथा हमदर्दी को प्रकट करने की बजाय कोरोना पर नियंत्रण पा लेने की झूठी सफलता का गुणगान अपने मुंह से करने में मस्त थे। अब ये लोग समस्त विश्व के सामने बेपर्दा हो गए हैं। 

इस आपदा के दौर में भारत की सहायता करने वाले देश इस बात की भी जांच कर रहे हैं कि उनकी ओर से की गई स्वास्थ्य सहायता जरूरतमंद लोगों तक पहुंच भी रही है या नहीं? ऐसी स्थिति पूरे देश के लिए शॄमदगी का कारण बनी है जिसके लिए पूरी तरह हमारे देश के नेता और सरकारी मशीनरी जि मेदार है। विश्व भर के वैज्ञानिक, स्वास्थ्य संस्थाएं तथा डाक्टर कोरोना महामारी बारे दी गई चेतावनियों को अनदेखा किए जाने के बारे में भी भारत सरकार को ही दोषी ठहरा रहे हैं। 

गैर वैज्ञानिक और अंधविश्वासी ढंग से कोरोना का इलाज करने वाले महापुरुष आजकल पूरी तरह से खामोश हैं। गौमूत्र का सेवन करने तथा घंटियां बजा कर कोरोना की रोकथाम करने का दावा करने वाले व्यक्ति वास्तव में मानवता विरोधी हैं जिन्होंने पहले इस बीमारी के फैलने में पूरा-पूरा योगदान डाला और बाद में इन रोगों से पीड़ित लोगों को गुमराह करके उनकी तकलीफों में वृद्धि की। धार्मिक श िसयतों और अंधविश्वासी लोगों ने जनता को वहमों में डाल कर एक करोड़ भोले भाले लोगों को हरिद्वार स्थित कुंभ के धार्मिक मेले में गंगा स्नान करने से रोकने की बजाय डुबकी लगाने के लिए प्रोत्साहित किया। 

अब वही लोग अपने साथ कोरोना का वायरस लेकर पूरे देश में इस रोग के फैलने का स्रोत बनते जा रहे हैं। विभिन्न अदालतों और बुद्धिजीवियों की ओर से चुनाव आयोग के बारे में की गई टिप्पणियों का अर्थ भी यही निकलता है जब राजनीतिक दलों के नेता नंगे मुंह लेकर साथ बैठ कर लोगों की भीड़ को देख कर गद्गद् हो उठते हैं तब फिर उनके चेहरे को मास्क से ढंकने, एक-दूसरे से दूरी बनाकर रखने और भीड़भाड़ वाले क्षेत्र में न जाने की शिक्षा एक फरेब से ज्यादा और क्या हो सकता है। 

जब देश के लोग केंद्र सरकार से अपने कार्यकाल के दौरान स्वास्थ्य सहूलियतों के ऊपर किए जाने वाले खर्चे तथा इससे संबंधित दूसरे प्रबंधों की जानकारी मांगते हैं तब भाजपा नेता एकदम पीले हो जाते हैं। यह ठीक है कि स्वास्थ्य सेवाओं का विषय राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आता है परंतु यह भी सब जानते हैं कि जी.एस.टी. इत्यादि कानूनों से जिस तरह केंद्र ने राज्यों के वित्तीय अधिकारों पर बड़ा डाका मारा है उससे राज्य सरकारों के वित्तीय संसाधन अपंग होकर रह गए हैं। 

ऑक्सीजन का आबंटन पूरी तरह से केंद्र सरकार का विषय है ‘‘प्रधानमंत्री रिलीफ फंड का अस्तित्व जो संकट के समय जरूरतमंदों के लिए एक विश्वसनीय सहारा था, के मुकाबले प्रधानमंत्री मोदी ने ‘प्रधानमंत्री केयर’ नाम का एक नया निजी खाता खोल दिया है जिसका हिसाब-किताब पूछने का किसी संस्था या व्यक्ति को कोई कानूनी अधिकार नहीं है।’’ 

कार्पोरेट घरानों और धनवान लोगों को इस फंड के माध्यम से गुमनाम तरीके से प्रधानमंत्री के साथ रिश्ता जोडऩे का मौका भी मिल गया जो उचित समय पर उनके लिए बेहद लाभकारी सिद्ध हो सकता है। यह सबकुछ पारदर्शी और लोगों के प्रति जवाबदेही वाले प्रबंध के ऊपर कालिख पोतता है जिसका भुगतान सारा देश कोरोना महामारी के दौर के अंदर देश भर में फैली अराजकता, अफरा-तफरी और बेबसी के रूप में भुगत रहा है।-मंगत राम पासला
 


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