क्या अमरेन्द्र पंजाब का ‘अतीत गौरव’ बहाल कर सकेंगे

punjabkesari.in Wednesday, Mar 22, 2017 - 11:52 PM (IST)

पंजाब के नए मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह को शायद जल्दी ही यह एहसास हो जाएगा कि चुनाव तो उन्होंने मुख्यत: पूर्व सरकार के विरुद्ध प्रचंड एंटी इन्कम्बैंसी की भावनाओं एवं आम आदमी पार्टी की अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ा मारने की नीति के कारण जीत लिया है लेकिन पंजाब के अतीत गौरव को बहाल करना कोई आसान काम नहीं। 

एक दशक की फिजूलखर्ची, भारी कर्जदारी, कृषि क्षेत्र की भयावह बदहाली एवं रोजगार सृजन की कमी के चलते अमरेन्द्र सरकार के सामने बहुत विकराल चुनौती दरपेश है। आधारभूत ढांचे के विकास और प्रदेश में बिजली की स्थिति सुधारने के लिए पूर्व सरकार भी कुछ श्रेय की हकदार है, हालांकि इस काम के लिए केन्द्र सरकार द्वारा बहुत उदारता से वित्त पोषण किया गया था। 

लेकिन जाते-जाते वह सरकार पंजाब की अर्थव्यवस्था के चीथड़े उड़ा गई है क्योंकि प्रदेश पर न केवल 3 हजार करोड़ रुपए के बिलों का भुगतान बकाया है बल्कि 1.78 लाख करोड़ के ऋण का बोझ भी प्रदेश की पीठ पर लदा हुआ है। अमरेन्द्र सरकार के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल के सामने बहुत ही कठिन कार्य है लेकिन इसी कार्य को अंजाम देकर वह अपनी काबिलियत सिद्ध कर सकते हैं। 

किसी जमाने में पंजाब अपनी दमदार कृषि अर्थव्यवस्था एवं गुंजायमान लघु व मझौले उद्यमों के कारण देश के सबसे समृद्ध राज्यों में शामिल था। अब यह प्रदेश कई वर्ष पीछे फिसल गया है। समय बीतने के साथ-साथ कृषि वृद्धि दर बुरी तरह लडख़ड़ा गई है। 2004-2005 में जहां यह दर 0.95 प्रतिशत थी, वहीं 2014-15 में यह लुढ़क कर शून्य से भी 3.4 प्रतिशत नीचे चली गई है। देहाती क्षेत्रों का कर्जाईपन लगातार बढ़ता जा रहा है और दुर्भाग्य की बात तो यह है कि किसानों की आत्महत्याएं भी इसी अनुपात में बढ़ती जा रही हैं। कुछ वर्ष पूर्व तक इस राज्य में मुश्किल से ही किसी किसान की आत्महत्या का समाचार मिलता था। 

केन्द्रीय आंकड़ा कार्यालय के अनुसार जी.डी.पी.की विशुद्ध दर भी 2005-2006 के 10.18 प्रतिशत के स्तरसे लडख़ड़ाकर 2015-16 में 9.96 प्रतिशत पर आ गई है। पूर्व सरकार के मामले में एक समस्या तो यह थी कि यह इस तथ्य को स्वीकार करने में विफल रही कि कोई समस्या मौजूद है। ऐन जिस तरह वह दावा करती रही है कि प्रदेश में नशीले पदार्थों की कोई बड़ी चुनौती है ही नहीं, बिल्कुल उसी तरह वह हठधर्मी से इस बात पर अड़ी रही कि छोटे और मझौले उद्योगों ने पंजाब से पलायन नहीं किया है। 

यह तो इस प्रवृत्ति की शिकार थी कि ऐसी बातें केवल सरकार विरोधी प्रोपेगंडे के कारण की जाती हैं। उदाहरण के तौर पर यह तथ्य तो सरकारी रिकार्ड पर आधारित है कि 2007-2014 के बीच पंजाब में 19,000 फैक्टरियां बंद हो गई हैं लेकिन पूर्व सरकार वास्तव में यही राग अलापती रही कि इस अवधि के दौरान 13,000 नई फैक्टरियां स्थापित हुई हैं क्योंकि बिजली बोर्ड ने 13,000 औद्योगिक कनैक्शन जारी किए थे। 

पंजाब की लौह नगरी मंडी गोबिन्दगढ़ में से उद्योगों के पलायन और अधिकतर इकाइयों द्वारा काम बंद कर देने के कारण नौकरियों में भारी कमी आई है और बेरोजगारी बढ़ रही है। उल्लेखनीय है कि इन्हीं कारणों से ही पंजाब में 29-30 वर्ष आयु वर्ग के लोगों में बेरोजगारी की दर 10.2 प्रतिशत की राष्ट्रीय औसत की तुलना में 16.6 प्रतिशत है। 

चिंता का एक अन्य मुख्य क्षेत्र है प्रदेश में शिक्षा प्रणाली की दयनीय हालत। शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के नाम पर शुरू की गई बहुत ‘गौरवपूर्ण’ आदर्श स्कूल परियोजना के बारे में बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं लेकिन यह पूरी तरह विफल हो चुकी है। सरकारी स्कूलों के बारे में तो कुछ न कहना ही बेहतर होगा। अध्यापकों की गुणवत्ता और स्कूलों में उपलब्ध सुविधाएं दो ऐसे पहलू हैं जो तत्काल ध्यान की मांग करते हैं। प्राइमरी स्कूलों में बीच में पढ़ाई छोडऩे वालों की दर 2014-15 से 2015-16 के बीच 1.3 प्रतिशत से बढ़कर 3.1 प्रतिशत हो गई है और यह राष्ट्रीय औसत के रुझान के सर्वथा विपरीत है। एक अन्य बात जो अमरेन्द्र सिंह सरकार के लिए अवश्य ही गंभीर चिंता का विषय होनी चाहिए वह है सैकेंडरी स्तर पर पढ़ाई छोडऩे वालों की ऊंची दर। 

इसी बीच इंजीनियरिंग कालेजों जैसे प्रोफैशनल संस्थानों में जहां पढ़ाई की गुणवत्ता बहुत ही घटिया है, वहीं प्रदेश में स्तरहीन प्राइवेट यूनिवर्सिटियों की बाढ़-सी आ गई है जिससे बेरोजगारी की समस्या और भी गंभीर हो गई है क्योंकि ये यूनिवॢसटियां भारी मात्रा में ऐसे युवकों को डिग्रियां दिए जा रही हैं जो किसी भी रोजगार पर रखे जाने के योग्य ही नहीं। अमरेन्द्र सरकार ने विरासत में मिली ‘वी.आई.पी. संस्कृति’ एवं गैर-उपजाऊ खर्चों में कटौती करने का फैसला लेकर एक अच्छी शुरूआत की है। 

लेकिन ऐसी प्रतीकात्मक कार्रवाइयों के समान्तर ही अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक योजनाएं बनाई जानी चाहिएं ताकि पंजाब अपने खोए हुए गौरव को फिर से हासिल कर सके। अमरेन्द्र सरकार ने अपने वायदे के अनुसार नशेखोरी की लानत पर अंकुश लगाने के लिए कार्रवाई शुरू कर दी है। अपने वायदे के अनुसार मुख्यमंत्री बेशक 4 सप्ताह की अवधि में इस काम को अंजाम नहीं दे पाएंगे तो भी  निकट भविष्य में ही इस योजना का साकार हो जाना कोई छोटी उपलब्धि नहीं होगी। 

अमरेन्द्र सिंह ने अन्य राजनीतिक नेताओं के विपरीत पहले ही यह घोषणा कर रखी है कि यह उनका अंतिम कार्यकाल होगा। वैसे सच्चाई तो यह है कि उनका पूर्व कार्यकाल भी किसी उल्लेखनीय प्रगति के लिए नहीं जाना जाता। उन्होंने अवश्य ही सबक सीख लिए होंगे और अब उन्हें हर हालत में अपनी बेहतरीन योग्यता दिखानी होगी तभी उन्हें आधुनिक पंजाब के सबसे महान नेताओं में से एक माना जाएगा। 
 


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