पी. चिदम्बरम के नाम एक पत्र

punjabkesari.in Monday, Sep 09, 2019 - 01:12 AM (IST)

प्रिय श्री चिदम्बरम जी,
रात टी.वी. देख रहा था। अचानक समाचार आया कि आपको तिहाड़ जेल भेजा जा रहा है। एकदम मन में विचारों की उधेड़बुन होने लगी। एक बेचैनी-सी अनुभव करने लगा। आज अखबार में पढ़ा कि पहले दिन आपको जेल में सोने के लिए न तो चारपाई दी गई और न ही लकड़ी का तख्त दिया गया। स्वाभाविक है आप सो नहीं पाए होंगे। मैं भी परसों रात काफी देर सोचते-सोचते सो नहीं पाया। 

आप कोई साधारण नेता नहीं हैं। कांग्रेस पार्टी के एक प्रमुख राष्ट्रीय नेता ही नहीं, आर्थिक मामलों के बहुत बड़े विद्वान भी हैं। मैं अधिकतर आपके लेख पढ़ता हूं और कई बार मुझे यह लगता था कि आपकी आलोचना सही है। देश की आर्थिक स्थिति के बारे में आपके तर्क विचारणीय होते हैं। उनमें पार्टी का दृष्टिकोण तो रहता ही है, फिर भी आपकी आलोचना कई बार सार्थक और स्पष्ट लगती थी। इतने बड़े और विद्वान नेता तिहाड़ जेल में भेज दिए गए। यही विचार मन को परेशान करता रहा। संसद में कई बार आपको देखा, मिला भी। कभी थोड़ी बातचीत भी हुई होगी। इससे अधिक आपके साथ मेरा कभी कोई परिचय नहीं रहा। सोचता हूं आज पहली बार मुझे आपको यह पत्र लिखने का अवसर-अवसर नहीं अपितु दुर्भाग्य मिला। क्योंकि ऐसे विषय पर लिखना पड़ रहा है जिसे सोच कर पीड़ा होती है। 

कुछ दिन पहले जब पुलिस के सिपाही आपके मकान की दीवार फांद कर अंदर गए और आपको लेकर गाड़ी में बैठे, आपको बीच में बिठाया, एक सिपाही आपकी दाईं तरफ और दूसरा आपकी बाईं तरफ बैठा। आपने बाहर देखा। मुस्कराने की कोशिश की और गाड़ी आपको लेकर चली गई। मैं सब बड़े ध्यान से देखता रहा। एक बार मैंने देखा कि आपको पुलिस जेल ले जा रही है और आप मुस्करा रहे हैं। अपना हाथ आगे बढ़ा कर अंगूठा भी हिला रहे हैं। मैं सोचने लगा-आप जैसा देश का इतना बड़ा नेता भ्रष्टाचार के मामले में पकड़ा जाए। वही सिपाही जो आपके आगे-पीछे सर-सर कह कर चलते थे, जो सैल्यूट देते थे, उन्हीं के घेरे में जाते हुए भी आप मुस्कराते रहे। मैं जानता हूं उस समय आपके अंदर का रोम-रोम चिंता और गम से छटपटा रहा होगा। फिर भी आप मुस्कराए। मुझे एकदम एक गाने की ये पंक्तियां याद आ गईं। 

तुम इतना जो मुस्करा रहे हो।
क्या गम है जिसको छिपा रहे हो॥
मैं सोचने लगा यह भगवान की कैसी व्यवस्था है कि इतनी अधिक विद्वता के साथ-साथ मनुष्य से ऐसी गलती भी करवाता है कि आप जैसे विद्वान आज तिहाड़ जेल में बंद हैं। प्रभु ने हमें बुद्धि, प्रतिभा सब कुछ दिया है परन्तु साथ में एक चंचल मन भी दिया है। हम केवल शरीर नहीं। शरीर भी, मन भी और उसके साथ आत्मा भी हैं। भारतीय ङ्क्षचतन यही कहता है कि मैं केवल शरीर नहीं, मैं तो इस शरीर के पहले भी था और इस शरीर के बाद भी रहूंगा। मैं उस परमपिता सर्व शक्तिमान का अंश हूं। मैं कभी न जन्म लेता हूं और न कभी मरता हूं। 

कोई भी अपराधी जब अपराध करने लगता है तो भीतर से एक आवाज जरूर आती है जो उसे कहती है कि वह ठीक नहीं कर रहा है। यही आत्मा की आवाज होती है परन्तु मन चंचल होता है वह मनुष्य को भटकाता है। मन घोड़े की तरह है। जो लोग मन रूपी घोड़े पर सवारी करते हैं वे एक अच्छा और आदर्श जीवन व्यतीत करते हैं परन्तु जो किसी कमजोरी के कारण मन रूपी घोड़े को अपनी सवारी करने देते हैं, वे भटकते हैं और अपराध की दुनिया में चले जाते हैं। आप दोनों के विरुद्ध इतने अधिक आरोप हैं, ऐसा नहीं हो सकता है कि ये सब गलत काम करते समय आपको भीतर से कभी यह आवाज नहीं आई कि यह सब ठीक नहीं हो रहा है। आप अपने पुत्र मोह में या किसी और कारण से उस क्षण थोड़े कमजोर हो गए और मन ने आपको भटका दिया और इस प्रकार कानून को अपने हाथ में लेकर आज आप तिहाड़ जेल में हैं।

मेरा अनुभव है कि ऐसी स्थिति प्रत्येक के जीवन में आती है। बड़े से बड़े धर्मात्मा और साधु के मन में भी कभी-कभी भटकने की स्थिति आई होगी। बड़े-बड़े अपराधी के मन में भी कभी-कभी उस रास्ते को छोडऩे की बात आई होगी। वह क्षणिक समय होता है जो संभल गया वह बच गया, जो फिसल गया वह गिर गया। एक क्षण की फिसलन बहुत दूर अंधेरे में ले जाती है। मुझे फिर एक गीत की पंक्ति याद आ रही है।
लम्हों ने खता की थी।
सदियों ने सजा पाई॥ 

मैं केन्द्र में खाद्य मंत्री था। पूरा विभाग संभल-संभल कर चला रहा था क्योंकि उसमें रहे कई मंत्री कई बार पकड़े गए थे। चीनी का विभाग मेरे पास था, जिसमें हिमाचल के ही सुखराम जी ने फिसल कर कुछ ऐसा किया था, जिसके कारण उन्हें 3 वर्ष की सजा भुगतनी पड़ी थी। एक बार चीनी की कमी हुई। बाजार में चीनी महंगी बिकने लगी। मैंने संबंधित दूसरे विभाग से सलाह की और तुरंत चीनी का निर्यात बंद कर दिया। 

महाराष्ट्र के चीनी उत्पादक कांग्रेस के नेता शरद पवार जी को लेकर प्रधानमंत्री अटल जी के पास पहुंचे। मेरी शिकायत की। अटल जी ने मुझे बुलाया और कहने लगे पवार जी आपकी शिकायत कर रहे हैं। चीनी का निर्यात बंद करने से चीनी उत्पादक किसान बर्बाद हो रहे हैं। मैंने निर्णय लेने से पहले उस विषय पर अच्छी तरह विचार कर लिया था। मैंने अटल जी से कहा कि किसानों को अधिक अंतर नहीं पड़ रहा है परन्तु कुछ करोड़पति जो निर्यात करते हैं उनकी कमाई बंद हो रही है। विश्व के कुछ देशों में चीनी की एकदम कमी आ गई है। कुछ बड़े व्यापारी वहीं पर चीनी भेज कर कमाई करना चाहते हैं। वे अधिक कमाई के कारण किसी भी भाव चीनी खरीद कर अधिक निर्यात कर रहे थे। 

देश में चीनी की कमी हुई और चीनी एकदम महंगी होने लगी इसलिए यह निर्णय करना पड़ा। अटल जी ने उन्हें विचार करने के लिए कहा। दूसरे दिन एक बड़े नेता के साथ कुछ व्यापारी मुझे मिले और कहने लगे कि चीनी का निर्यात 15 दिन के लिए खोल दें। उस संबंध में उन्होंने और कई तर्क दिए। साथ आए एक बड़े नेता ने बड़े जोर से मुझे उनकी बात मानने के लिए कहा। दूसरे दिन कुछ और नेता मुझ से मिले। उनमें कुछ अपनी पार्टी के भी थे। मुझे कहा कि मैं पालमपुर विवेकानंद ट्रस्ट के लिए अपने प्रदेश में धन संग्रह करवा रहा हूं। 

यदि निर्यात 15 दिन के लिए खोल दिया जाए तो उस ट्रस्ट के काम के लिए कई करोड़ रुपए वे लोग दे देंगे। यह भी कहा कि वह धन बाकायदा कुछ ट्रस्टों की तरफ से चैक द्वारा दिया जाएगा। मेरे एक निकट के नेता ने बाद में मुझे अकेले में समझाया और उस बात को मानने का आग्रह किया। मैंने उन्हें दूसरे दिन मिलने को कहा। आज सच कह रहा हूं एक बार तो ख्याल आया कि निर्णय तो लागू करना ही है यदि 15 दिन की देरी कर दी जाए और पालमपुर का इतना बड़ा काम हो जाए तो क्या फर्क पड़ता है। मेरे मन के घोड़ों ने कुछ देर मेरी सवारी करने की कोशिश की परन्तु थोड़ी देर के बाद ही मैं एकदम संभल गया और सोचा कि धन तो गलत तरीके से आएगा और अधिक देर तक यह बात छिपी नहीं रहेगी। मैंने एक घंटे के अंदर ही फोन पर उनको बता दिया। मुझे यह बात स्वीकार नहीं। निर्णय नहीं बदला जाएगा। 

मैं बचपन से गीता पढ़ता रहा हूं। राष्ट्रीय स्वयं सेवक  संघ की शाखा से मुझे ईमानदारी और देशभक्ति की शिक्षा मिली। उसके बाद स्वामी विवेकानंद मेरे जीवन के आदर्श बने। फिर भी जीवन के कई मोड़ों पर फिसलते-फिसलते बचा हूं। आप इतने बड़े विद्वान हैं। सर्वोच्च न्यायालय में वकालत करते हैं। आपकी धर्मपत्नी भी सर्वोच्च न्यायालय की एक प्रसिद्ध वकील है। भारत के वित्त मंत्री  और गृह मंत्री तक के दायित्व आपने संभाले। फिर भी आज आप तिहाड़ जेल में हैं। 

यह पढ़ कर बड़ी हैरानी हुई कि आपके परिवार ने विश्व के कई देशों में सम्पत्तियां बनाई हैं। कुछ देशों का नाम तो मैंने पहली बार सुना। आखिर यह छोटा-सा जीवन और अपना देश इतना बड़ा। फिर दूसरे देशों में ऐसे गलत तरीके से सम्पत्तियां बनाने के लिए आप क्यों तैयार हुए? आपकी विद्वता और वकालत की योग्यता, कहीं पर भी किसी ने आपको क्यों नहीं रोका। क्या पुत्र मोह के कारण आपकी आंखों पर पर्दा पड़ गया या क्या भारत में आपके परिवार के पास कम सम्पत्ति थी। काश! आपको किसी ने कवि की ये पंक्तियां सुनाई होतीं : कर लो इकट्ठे जितने चाहो हीरे मोती पर एक बात याद रखना कफन में जेब नहीं होती। 

एक बड़े पद पर रह कर और इतनी अधिक विद्वता के बाद भी आपने यह सब क्यों किया, जिसके कारण आज आप उसी तिहाड़ जेल में हैं जहां बड़े-बड़े अपराधियों को रखा जाता है। यह सोचते-सोचते मेरा दिमाग चकरा रहा था। तभी एक विचार आया कि रावण भी तो  बहुत बड़ा विद्वान था। चारों वेदों का ज्ञाता था। सोने की लंका उसके पास थी, फिर उसने माया का मृग बन कर मारीच को सीता को चुराने के लिए क्यों कहा। यह सोच कर लगता है यह सब सदा होता रहा है और शायद होता भी रहेगा परन्तु ऐसे मौके पर मैं पार्टी की आंख से नहीं देखता। बड़े नेताओं के ऐसे काम पूरे देश को बदनाम करते हैं और नई पीढ़ी को गलत संदेश देते हैं। काश! आप जैसा विद्वान नेता ऐसा न करता।-शांता कुमार


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