वायु प्रदूषण के खतरनाक जोन में भारत की बड़ी आबादी
punjabkesari.in Monday, Sep 11, 2023 - 05:38 AM (IST)

भारत में बढ़ता प्रदूषण कितना जानलेवा हो चुका है इसे पिछले साल लेंसेट कमीशन ऑन पॉल्यूशन एंड हैल्थ रिपोर्ट ने साबित कर दिया। लेंसेट रिपोर्ट में कहा गया कि साल 2019 में विश्व में हुई कुल मौतों में से 6.7 मिलियन मौतों का कारण वायु प्रदूषण रहा जबकि 1.4 मिलियन मौतें जल प्रदूषण से हुईं। 9 लाख मौतों का कारण लेड प्रदूषण बताया गया है। इस रिपोर्ट को देखें तो भारत में हालात अधिक भयावह हैं। भारत में 6 में से एक मौत का कारण प्रदूषण हैं। रिपोर्ट में पाया गया कि भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है जहां प्रदूषण का स्तर सर्वाधिक है। इसलिए पिछले दशकों में भारतीयों की औसत आयु में लगभग 3 साल की कमी आई है। भारत में साल 2019 में 2.3 मिलियन से अधिक नवजातों की प्रीमैच्योर डैथ प्रदूषण के कारण हुई है।
प्रदूषण का बढ़ता स्तर इंसान के लिए कितना घातक हो रहा है इसे सिलसिलेवार समझना होगा। बढ़ते शहरीकरण से लगातार उद्योगों में बढ़ौतरी हुई है। चिमनियों से निकलती हानिकारक गैसों के कारण हवा में कार्बन डाईऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड, मीथेन का सांद्रण बढ़ गया है। आई.पी.सी.सी. के 2020 में जारी आंकड़ों के अनुसार साल 1990 से 2019 के बीच ग्रीन हाऊस गैस उत्सर्जन में 45 फीसदी की बढ़ौतरी हुई है। ये तमाम गैसें सूरज से आने वाली लघु तरंगों को पृथ्वी पर प्रवेश कराती हैं। लेकिन पृथ्वी से उत्सॢजत दीर्घ तरंगों को सोख लेती हैं। नतीजतन इस बढ़ते तापमान से कई विकट हालात देखने को मिलते हैं। जो इंसान के जीवन वर्षों का क्षरण कर रहे हैं। धरती के बढ़ते तापमान से जलवायु परिवर्तन होता है। अब गर्मियां लंबी होने लगीं।
मानसून असमय हो रहा है। सर्दियों का हिस्सा घटता जा रहा है। मौसम के इस बदलते मिजाज से फसलों की पैदावर प्रभावित हो रही है। देशों के सामने खाद्य असुरक्षा का संकट खड़ा हो रहा है। भुखमरी, गरीबी, कुपोषण के हालात बन रहे हैं। वैश्विक तापमान से ध्रुवों पर जमी बर्फ पिघल रही है। समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। इससे सामुद्रिक पारितंत्र बदल रहा है। सुनामी, चक्रवात जैसी समुद्री आपदाओं की आवर्ती बढ़ रही है। विशेषज्ञों के अनुसार भारत में प्रदूषण से होती मौतों का मुख्य जिम्मेदार पी.एम. 2.5 और पी.एम. 10 है। वायुमंडल में घूमते ये नैनो पार्टिकुलेट मैटर ऑटोमोबाइल उत्सर्जन, कंस्ट्रक्शन साइट से निकली धूल और धुएं में हैं। हवा में फैले ये पी.एम. 2.5 और पी.एम. 10 के कण सिर के बालों के 30वें हिस्से से भी महीन और बारीक हैं। जो आसानी से सांस से फेफड़ों में जाते हैं।
रक्तवाहिकाओं में घुसकर दिल का दौरा, उच्च रक्तचाप और दूसरी बीमारियां बनाते हैं। नतीजा इंसान की असमय मृत्यु होना। एनवायरमैंट ङ्क्षथक टैंक सी.एस.ई. के ताजा आंकड़ों के अनुसार पिछले 20 सालों में भारत में पी.एम. 2.5 के कारण मौतों में अढ़ाई गुणा इजाफा हुआ है तथा इससे भारतीयों की जीवन प्रत्याशा 2.6 वर्ष कम हो गई है, जो वैश्विक औसत से अधिक है। 1990 में 2,79,000 मौतें पी.एम. 2.5 के कारण हुई थीं। 2019 में यह संख्या 9, 79,000 तक जा पहुंची। इस अंतर को देखकर वायु प्रदूषण की घातकता को समझा जा सकता है।-सीमा अग्रवाल