किसी का हुक्का-पानी बंद करने से बड़ी सजा कुछ नहीं

punjabkesari.in Sunday, Apr 27, 2025 - 04:41 AM (IST)

कहते हैं न कि किसी का हुक्का-पानी बंद करने से बड़ी सजा कुछ नहीं होती। अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे पाकिस्तान के साथ भारत ने जैसे को तैसा वाला जवाब देकर तिलमिला दिया है। अब अपनी सफाई में पाकिस्तान कुछ भी कहे लेकिन दुनिया को पता है कि वह पहलगाम आतंकी हमले जैसी जहरीली, अमानवीय और कायराना हरकतों के इंतजार में था। आगे निश्चित रूप से वहां गृह युद्ध जैसे हालात बनने ही हैं इससे इंकार नहीं किया जा सकता। अभी तो भारत ने केवल पाकिस्तान के पानी पर चाबुक चलाया है जबकि दूसरे तमाम सख्त कदम बाकी हैं।

सिंधु जल संधि के तहत पिछले 6 दशकों से भारत को ब्यास, रावी और सतलुज नदियों के पानी का हक मिला था तो 3 पश्चिमी नदियों सिंधु, चिनाब और झेलम के पानी पर पाकिस्तान का भी हक था। भारत ने इसे तत्काल प्रभाव से निलंबित कर बहुत ही सख्त संदेश पाकिस्तान और दुनिया को दिया है। वहां पहले से ही जबरदस्त पानी की किल्लत है, अब मुसीबतें और बढऩी हैं। भारत ने यह कदम उस समय लिया जब मई में दोनों देशों के जल आयुक्तों की बैठक होनी है और 1 जून को दोनों सरकारों को निरीक्षण दौरे या नदियों में जल प्रवाह के डेटा की नई रिपोर्ट सौंपी जानी है। खिसियाया पाकिस्तान भले ही कहे कि भारत पानी नहीं रोक सकता क्योंकि उसके पास अभी ऐसे संसाधन नहीं हैं ताकि इन नदियों के पानी का भंडारण कर सके। लेकिन देर-सवेेर पाकिस्तान को बताए बिना इन नदियों पर बनाए जा रहे बांधों, बैराजों या जल भंडारण के बुनियादी ढांचों के डिजाइन बदलने से, पाकिस्तान को लंबा और भारी नुकसान पहुंचा सकता है। 

निश्चित रूप से भारत का यह कदम बहुत सख्त है क्योंकि दोनों देशों के बीच युद्ध के दौरान भी समझौता निलंबित नहीं हुआ था। अब एकाएक निलंबित करना भारत की बड़ी रणनीतिक और कूटनीतिक चाल मानी जा रही है। सबको पता है समझौते का मध्यस्थ विश्व बैंक है, बावजूद इसके भारत के कड़़े कदम ने आतंकियों के पनाहगारों को दुनिया भर में भी सख्त संदेश जरूर दिया है। आखिर भारत कब तक झेलें : यदि यह समझौता पूरी तरह से खत्म हो गया तो पाकिस्तान सूखे की जद में आ जाएगा। वहां के लोगों को पानी की भारी किल्लत होगी और ऐसी कि उसे भिखारी की तरह हाथ तक फैलाने पड़ सकते हैं। पाकिस्तान को अपनी शर्मनाक और अमानवीय क्रूर हरकतों से पहले यह सब सोचना चाहिए था। आखिर भारत कब तक झेले? स्वतंत्रता से पहले अंग्रेजी हुकूमत के दौरान दक्षिणी पंजाब में सिंधु नदी घाटी पर एक बड़ी नहर बनवाई गई थी। विभाजन के बाद इसका पूर्वी हिस्सा भारत और पश्चिमी हिस्सा पाकिस्तान के हिस्से में आया। नहरों को भी तभी बांटा गया। बहाव बनाए रखने के लिए एक समझौता भी हुआ। 

1947 में 20 दिसंबर को हुए एक समझौते के तहत पानी का तय हिस्सा भारत द्वारा 31 मार्च 1948 तक पाकिस्तान को देने पर करार हुआ। जब उसी साल अप्रैल में यह समझौता आगे नहीं बढ़ा और भारत ने अपनी दोनों प्रमुख नहरों का पानी रोक दिया तो इसका जबरदस्त खामियाजा तुरंत पाकिस्तान ने भुगता और उसकी 17 लाख एकड़ जमीन सूखकर खराब हो गई। पाकिस्तान को इस संधि से अपनी जरूरतों का 80 प्रतिशत पानी सिंधु नदी से मिलता है। जिससे उसकी 80 प्रतिशत कृषि भूमि हरी-भरी रहती है। इसी पानी का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा सिंचाई में उपयोग होता है और जिस पर 23 करोड़ से ज्यादा लोगों की निर्भरता है। जहां सिंधु और उसकी सहायक नदियों के पानी पर कराची, लाहौर और मुल्तान जैसे शहरी इलाके निर्भर हैं तो पाकिस्तान के तरबेला और मंगला पॉवर प्रोजैक्ट भी इसी सहारे हैं। निश्चित रूप से भारत की ओर से इस कड़े रुख को पहले कदम के रूप में देखा जा रहा है। भले पाकिस्तान संधि निलंबन पर समझौतों या अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का हवाला देकर कुछ भी कहे। लेकिन वियना कन्वैंशन के अनुच्छेद 62 में गुंजाइश है कि संधि समाप्त करते समय मौजूद परिस्थितियों की अनदेखी नहीं की जा सकती। 

जिन मुद्दों पर समझौता या संधि हुई उस संबंध में हुए मौलिक परिवर्तन के आधार पर संधि को अस्वीकृत किया जा सकता है। चूंकि सिंधु जल समझौते से दुनिया के दूसरे देशों को भी कोई खतरा नहीं है। रूस, इसराईल जैसे देशों ने हाल ही में चार्टर के इस अध्याय को नहीं माना। ऐसे में भारत भी इसे मानने के लिए मजबूर नहीं है। अब भले ही पाकिस्तान छाती पीटे कि भारत ऐसा नहीं कर सकता। लेकिन परिस्थितियों के आगे भारत को इस बात का पूरा हक है। भारत को संधि से हटने पर भी बड़ा प्राकृतिक वरदान मिला है क्योंकि नदियां भारत से पाकिस्तान की ओर बहती हैं। ऐसे में दूसरे कई प्राकृतिक विकल्प हमारे पास हैं। लेकिन उसकी खेती और ऊर्जा उत्पादन की रीढ़ सिंधु जल संधि टूटने के बाद किस तरह तबाही की ओर होगा, पाकिस्तानी सोचकर भयभीत हैं। उधर, पाकिस्तान खुद अपनी कायराना हरकतों के चलते अपने मुल्क में खुद खेमेबाजी का शिकार है। वहां लोग जानते हैं कि भारत से सीधी दुश्मनी के क्या मायने हैं।-ऋतुपर्ण दवे


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