‘5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था : लक्ष्य से अधिक महत्वपूर्ण है प्रयास’

punjabkesari.in Thursday, Mar 18, 2021 - 05:04 AM (IST)

वैश्विक महामारी के संभवत: अंत और टीकाकरण अभियान की शुरूआत की अवधि में प्रस्तुत बजट 2021-22, विकास बजट होने की उम्मीद पर खरा उतरता है। बजट में न केवल अर्थव्यवस्था को महामारी-पूर्व की स्थिति में ले जाने के लिए आवश्यक विकास-घटक मौजूद हैं, बल्कि सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बीच इन घटकों के वितरण की स्पष्टता भी है। 

इसमें अभी क्षमता-निर्माण करने की बात कही गई है, ताकि बाद में उच्च विकास दर को बनाए रखा जा सके। बजट में समावेशी विकास रणनीति के प्रति संवेदनशीलता भी है। इसके अलावा, बजट में अर्थव्यवस्था की विकास क्षमता को बढ़ाने के लिए साहसिक सुधार के उपाय भी हैं। क्या बजट 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य हासिल करने में एक अग्रदूत की भूमिका निभा पाएगा? भारत लक्ष्य अवधि तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिए दो अलग-अलग रास्तों का चयन कर सकता है। एक तरीका हिसाब-किताब करने से संबंधित है, जिसे अक्सर उन लोगों द्वारा उद्धृत किया जाता है, जो लक्ष्य को ही अविश्वसनीय मानते हैं। 

इसे ऐसा यांत्रिक रूप दिया जाता है, जिससे लगता है कि लक्ष्य हासिल करने लायक है। इसके लिए जीडीपी की उच्च वृद्धि के अनुमान को प्रमुखता दी जाती है, जिसमें उच्च मुद्रास्फीति और मजबूत मुद्रा शामिल होते हैं। सहज रूप से यह तब हो सकता है, जब बड़े पैमाने पर पूंजी का निरंतर प्रवाह हो, जो आंशिक रूप से एक तरफ भारतीय मुद्रा को मजबूती प्रदान करे और दूसरी तरफ विदेशी मुद्रा के भंडार में वृद्धि करे। 

भंडार में वृद्धि से नकदी का प्रवाह बढ़ता है, जिससे अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति बढ़ जाती है। अंतिम परिणाम के रूप में हम पाते हैं -विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि, एक मजबूत मुद्रा, उच्च मुद्रास्फीति और सबसे अधिक असंतोषजनक निम्न विकास दर और कम रोजगार। यह संदेहास्पद है कि क्या यह कमजोर परिणाम भी जारी रह सकता है, क्योंकि मुद्रास्फीति को लक्षित करने वाला केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति की चिंता को खत्म करते हुए कहता है कि पूंजी प्रवाह, केवल उच्च मुद्रास्फीति-निम्न विकास अर्थव्यवस्थाओं को जोखिम के रूप में देखती है। लक्ष्य पर पहुंचने का दूसरा रास्ता वास्तविक तरीका है, जिस पर बजट 2021-22 में भौतिक, वित्तीय पूंजी और अवसंरचना स्तंभों के तहत विस्तार से चर्चा की गई है। सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा संचालित एक मजबूत अवसंरचना, अर्थव्यवस्था में निवेश की दर को बढ़ाती है। आय और खपत के स्तर को बढ़ाने के लिए तब गुणक की भूमिका शुरू होती है। 

अधिक खपत, बदले में निजी निवेश को प्रेरित करती है। प्रेरित निजी निवेश आय और खपत के स्तर को और भी बढ़ाता है, क्योंकि गुणक की भूमिका एक बार फिर से शुरू हो जाती है। इस प्रकार बजट पूंजीगत व्यय को बढ़ाता है, जिससे गुणक-उत्प्रेरक इंटरफेस की शुरूआत होती है और अर्थव्यवस्था में निवेश-आय-खपत चक्र को गति मिलती है। यह वास्तविक तरीका वास्तविक जी.डी.पी. में वृद्धि करता है, रोजगार के अवसर पैदा करता है और जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए मुद्रास्फीति को स्थिर और निम्न स्तर पर रखता है। यह उत्पादकता लाभ के माध्यम से निर्यात प्रतिस्पर्धा पर इसके प्रतिकूल प्रभाव को कम करके मजबूत मुद्रा को भी इसके लिए अनुकूल बनाता है। बजट में मानव पूंजी और नवाचार तथा  अनुसंधान एवं विकास के स्तंभों को मजबूत करने की बात कही गई है, जिसमें अर्थव्यवस्था में उत्पादकता बढ़ाने की रणनीति शामिल है। 

अगले 2-3 वर्षों में दुनिया की अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं में उच्च वास्तविक जी.डी.पी. वृद्धि दर दुर्लभ होगी, क्योंकि वह धीरे-धीरे ही महामारी के प्रभाव से उबरने में सक्षम होंगे। आई.एम.एफ. ने भी अपने जनवरी, 2021 में जारी वल्र्ड इकोनॉमिक आऊटलुक में 2021 और उसके बाद के वर्षों के लिए वैश्विक उत्पादन में मामूली वृद्धि का अनुमान जताया है। दुनिया की आय धीरे-धीरे बढ़ेगी, इसलिए भारत की जी.डी.पी. वृद्धि के लिए, निर्यात से मिलने वाले प्रोत्साहन में थोड़ा वक्त लगेगा। स्पष्ट रूप से अगले कुछ वर्षों तक घरेलू बाजार ही भारत के विकास का प्रमुख आधार रहेगा, क्योंकि घरेलू विनिर्माण धीरे-धीरे उन वस्तुओं और सेवाओं की मांग को भी पूरा करेगा, जिनका सामान्यत: आयात किया जाता है। 

उच्च वास्तविक जी.डी.पी. विकास दर, अर्थव्यवस्था को तेज गति के साथ 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में सहायता करेगी। लक्ष्य तक पहुंचने में एक या दो साल की देरी हो सकती है। हालांकि, जब तक विकास वास्तविक तरीके से होता रहेगा, तब तक देश के सर्वांगीण विकास के संदर्भ में 5 ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था को एक प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि एक संख्या के तौर पर, जिसपर हिसाब-किताब करते हुए निगरानी रखी जाती है।-राजीव मिश्रा(आर्थिक सलाहकार, आर्थिक कार्य विभाग)


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