अमरीका द्वारा सहायता बंद करने के बाद पाक क्या करेगा

punjabkesari.in Monday, Jan 08, 2018 - 02:52 AM (IST)

‘मित्रों तथा सहयोगियों में विश्वास का बंधन होता है’- 1 जनवरी को ट्रम्प के उस पहले ट्वीट पर एक पाकिस्तानी राजनेता की सतर्क टिप्पणियों में एक यह भी थी। ट्रम्प ने कहा था, ‘अमरीका ने मूर्खतापूर्ण ढंग से गत 15 वर्षों में पाकिस्तान को 33 अरब डॉलर से ज्यादा की मदद दी और उसने बदले में झूठ और छल के सिवाय कुछ नहीं दिया। वह सोचता है कि अमेरिकी नेता मूर्ख हैं। हम अफगानिस्तान में जिन आतंकवादियों को तलाश रहे हैं, उन्होंने उन्हें पनाह दी। अब और नहीं।’ 

पाकिस्तानी विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ ने अमरीका को ‘फ्रैंड किलर’ (मित्रता का हत्यारा) बताते हुए कहा कि सहयोगियों को इस तरह बर्ताव नहीं करना चाहिए परंतु अमरीका ने आगे बढ़ते हुए पाकिस्तान को दी जाने वाली 1.9 अरब डॉलर की वित्तीय सहायता को स्थगित कर दिया। हालांकि, सन् 2002 से जारी 33 अरब डॉलर की नागरिक सहायता में से 11 अरब डॉलर की सहायता जारी रहेगी। 

रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि वित्तीय सहायता स्थगित करने से पडऩे वाला प्रभाव 900 मिलियन डॉलर से ज्यादा हो सकता है। इसमें पाकिस्तान को ‘फॉरेन मिलिट्री फाइनांसिंग (एफ.एम.एफ.) फंड’ के तहत ‘सैन्य उपकरणों तथा प्रशिक्षण’ के लिए दी जाने वाली 225 मिलियन डॉलर और ‘कोएलिशन सपोर्ट फंड’ (सी.एस.एफ.) के तहत पाकिस्तान को आतंकी समूहों के खिलाफ अभियान चलाने के लिए दी जाने वाली 700 मिलियन डॉलर की सहायता भी शामिल है। यह भी माना जा रहा है कि इसका प्रभाव वित्तीय से कहीं ज्यादा होगा। एक डिफैंस एनालिस्ट हासन अस्करी कहते हैं, ‘‘कम से कम वे हक्कानी जैसे आतंकी समूहों को कुछ वक्त के लिए अपनी गतिविधियों को रोकने या गुप्त रखने को कह सकते हैं।’’ 

हालांकि, अफगानिस्तान में ज्यादा सेना भेजने का फैसला लेने के बाद 25 अगस्त से ही ट्रम्प पाकिस्तान को आतंकी समूहों पर नकेल कसने के लिए चेतावनी देते रहे थे। तीन तरीके हैं जिनसे पाकिस्तान जवाब दे सकता है। पूर्व में जब पाकिस्तान को विश्वास में लिए बिना अमरीका ने ओसामा बिन लादेन को मारा था तो उसने खैबर दर्रे जैसे अफगानिस्तान को जाने वाले नाटो आपूर्ति मार्गों को बंद कर दिया था। अबकी बार अमरीका की ओर से नाराजगी प्रकट की जा रही है। इसलिए पाकिस्तान की ओर से उठाए गए सख्त कदम से स्थिति और जटिल हो सकती है। दूसरा, पाकिस्तान तालिबान नेताओं को सहयोग बढ़ा सकता है। पूर्व में शांति की सम्भावनाएं तलाशने के लिए अमरीका से मिलने वाले अफगानियों को पाकिस्तान ने गिरफ्तार किया है या वे मार दिए गए। ऐसे में पाकिस्तान गुप्त रूप से आतंकवादियों को और प्रोत्साहित कर सकता है। 

तीसरा, जैसा कि वीरवार को राजनीतिक तथा सैन्य लीडरों की बैठक में फैसला लेने के बाद देखा गया है कि विदेश मंत्री मित्र राष्ट्रों की यात्रा शुरू करने जा रहे हैं जिसकी शुरूआत चीन से हो रही है। ट्रम्प की चेतावनी के बाद वैसे भी पाकिस्तान के लिए चीन की भूमिका राजनीतिक तथा वित्तीय स्तर पर बेहद महत्वपूर्ण हो गई है। चीन भी इकोनोमिक कोरिडोर (सी.पी.ई.सी.) में झोंके गए अपने निवेश की सुरक्षा को सुनिश्चित करना चाहेगा। 

हालांकि, ट्रम्प ने भारत के पक्ष तथा अफगानिस्तान में इसकी सहायता लेने में बात की है, हमें निम्न बातें ध्यान में रखनी होंगी : 
1. क्या ट्रम्प के शब्द मजबूत तथा प्रभावी कार्रवाई का रूप लेंगे क्योंकि भारत इससे पहले भी इस तरह के कड़े शब्द सुन चुका है। 2009 में ओबामा से और 2011 में हिलेरी क्लिंटन से। 
2. ट्रम्प तथा टिल्लरसन दोनों ही नहीं चाहते हैं कि परमाणु शक्ति सम्पन्न पाकिस्तान उनके नियंत्रण से निकल जाए, वे केवल उसे जगाना चाहते हैं।
3. 40 वर्षों से दी जा रही अमरीकी मदद चाहे वह सैन्य या वित्तीय हो, का प्रयोग ताजातरीन हथियार खरीदने में ही हुआ है। ऐसे में यदि अमरीका कुछ वक्त के लिए इसे रोकता है तो  इससे पाक सेना पर खास प्रभाव नहीं होगा। वैसे भी आतंकी हमलों में अपने 20 हजार नागरिकों को खोने के बावजूद आतंकियों की ट्रेङ्क्षनग की नीति को चालू रखने वाली पाक सेना इतनी आसानी से यह सब बंद करने वाली नहीं है। 
येरूशलम के मुद्दे पर अमरीका से नाराज मध्य-पूर्व पाकिस्तान की मदद के लिए आगे आ सकता है। ऐसे में पाक सेना वित्त पोषित तथा सक्रिय रहते हुए भारत के खिलाफ नफरत का युद्ध जारी रखेगी। 


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