जीवन की संध्या, संतानों की उपेक्षा के कारण बुजुर्ग अत्याचार और उत्पीड़न के शिकार

punjabkesari.in Thursday, Aug 27, 2020 - 04:08 AM (IST)

पुराने समय में माता-पिता के एक ही आदेश पर संतानें सब कुछ करने को तैयार रहतीं परंतु आज चंद संतानें अपनी शादी के बाद अपने माता-पिता की ओर से आंखें ही फेर लेती हैं। आम तौर पर संतानों का एकमात्र उद्देश्य किसी भी तरह माता-पिता की सम्पत्ति पर कब्जा करना ही रह जाता है तथा इसके बाद वे उन्हें घर से निकालने और उन पर अत्याचार करने के अलावा चंद संतानें तो उनकी हत्या तक कर डालने से भी संकोच नहीं करतीं।

* 17 अगस्त को श्री मुक्तसर साहिब में अपने बेटे-बेटियों द्वारा देखभाल न करने के कारण शरीर में कीड़े पडऩे से 82 वर्षीय बुजुर्ग महेंद्र कौर की मौत के सिलसिले में ‘पंजाब महिला आयोग’ ने मृतका के दोनों बेटों और बेटियों को दोषी मानते हुए उनके विरुद्ध ‘मैंटेनैंस एंड वैल्फेयर आफ पेरैंट्स एंड सीनियर सिटीजन्स’ एक्ट के अंतर्गत कार्रवाई करने का आदेश दिया है।
‘पावरकॉम’ से रिटायर मृतका का बड़ा बेटा राजविंद्र सिंह राजा कुछ समय पूर्व सुखदेव सिंह ढींडसा की पार्टी ‘शिरोमणि अकाली दल (डैमोक्रेटिक) में शामिल हुआ था जिसे पार्टी से निकाल दिया गया है। दूसरा बेटा बलजिंद्र सिंह एक्साझ्ज-टैक्सेशन विभाग में क्लर्क तथा पोती पूनम एस.डी.एम. है। 

* 20 अगस्त, 2020 को झारखंड के ‘राज राय डीह’ में पवनदेव दास नामक युवक ने अपने पिता की सरकारी नौकरी में मृत्यु के बाद मिले पैसों में से हिस्सा न देने पर अपनी विधवा मां चंदवा देवी की हत्या कर दी। 
* 20 अगस्त को ही पानीपत के गांव राजापुर में एक बेटे ने नशे के लिए पैसे नहीं देने पर अपनी मां को लोहे की छड़ से इतना पीटा कि उसकी मौत हो गई।
* 21 अगस्त को पुलिस की कार्रवाई से अप्रसन्न हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के बड़सर की बुजुर्ग महिला श्यामो देवी ने अपने बेटे और बहू पर उनके साथ बार-बार मारपीट करने की शिकायत करते हुए डिप्टी कमिश्नर से न्याय की गुहार की है। 

* 22 अगस्त को सोशल मीडिया पर सोनीपत में सरोज नामक नर्स द्वारा अपनी 82 वर्षीय सास सुखदेई को पीटने का वीडियो वायरल होने पर सरोज तथा उसकी मां ममता के विरुद्ध केस दर्ज करके सरोज को गिरफ्तार किया गया है। 
* 23 अगस्त को सोनीपत में गोहाना रोड पुलिस चौकी के बाहर धरने पर बैठी शांति देवी नामक बुजुर्ग महिला ने आरोप लगाया कि उनके बेटे-बहू और पोते ने उनसे बुरी तरह मारपीट करके उन्हें घर से निकाल दिया है। 
* 24 अगस्त को अहमदाबाद में अपने बेटे जगदीश दंताणी और बहू अमिता के साथ रहने वाली 65 वर्षीय वृद्धा शान्ता दंताणी ने दोनों के विरुद्ध शिकायत दर्ज करवाई कि दवा लाने के लिए पैसे मांगने पर गुस्से में आकर बेटे और बहू ने उन्हें मारपीट कर लहूलुहान करके घर से बाहर निकाल दिया। 

* 25 अगस्त को कौशाम्बी में एक बेटे और बहू ने अपने पिता को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। 
* 26 अगस्त को पानीपत में 90 वर्षीय धन्ना राम ने अपने बेटे की मृत्यु के बाद बहू व पोते द्वारा उन्हें सताने और रोटी न देने तथा घर से निकालने का प्रयास करने का आरोप लगाया।

ये घटनाएं तो मात्र 9 दिनों की हैं जो हमारे नोटिस में आई हैं और इनसे अनुमान लगाया जा सकता है कि समूचे देश में बुजुर्गों के साथ किस कदर और कितनी बड़ी संख्या में अत्याचार हो रहे हैं तथा स्थिति कितनी भयावह है।
इसीलिए पूज्य पिता लाला जगत नारायण जी ने 1960 के दशक में बुजुर्गों की समस्याएं उजागर करने के लिए लेखमाला ‘जीवन की संध्या’ शुरू की व परित्यक्त बुजुर्गों के रहने के लिए वृद्ध आश्रम खोलने का अभियान चलाया और अब देश में जगह-जगह वृद्ध आश्रम खोले जा चुके हैं। संतानों द्वारा बुजुर्ग माता-पिता के उत्पीडऩ को देखते हुए सबसे पहले हिमाचल सरकार ने 2002 में ‘वृद्ध माता-पिता एवं आश्रित भरण-पोषण कानून’ बनाया था। इसके तहत पीड़ित माता-पिता को संबंधित जिला मैजिस्ट्रेट के पास शिकायत करने का अधिकार दिया गया व दोषी पाए जाने पर संतान को माता-पिता की सम्पत्ति से वंचित करने, सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरियां न देने तथा उनके वेतन से समुचित राशि काट कर माता-पिता को देने का प्रावधान है। 

बाद में केंद्र सरकार व कुछ अन्य राज्य सरकारों ने भी इसी तरह के कानून बनाए हैं परंतु बुजुर्गों को उनकी जानकारी न होने के कारण इनका लाभ उन्हें नहीं मिल रहा। अत: इन कानूनों के बारे में बुजुर्गों को जानकारी प्रदान करने के लिए इनका समुचित प्रचार करने की भी आवश्यकता है। आखिर संतानें क्यों नहीं सोचतीं कि जिन मां-बाप ने उन्हें पाल-पोस और पढ़ा-लिखा कर अपने पैरों पर खड़ा किया, जीवन की संध्या में बुजुर्गों को उनके सहारे की आवश्यकता पडऩे पर वे उन्हें बेसहारा क्यों छोड़ देते हैं? शायद वे भूल गए हैं कि आज वे जो व्यवहार अपने माता-पिता से कर रहे हैं कल को वही व्यवहार उनकी संतानें उनसे करेंगी। 

इसीलिए हम अपने लेखों में बार-बार लिखते रहते हैं कि माता-पिता अपनी सम्पत्ति की वसीयत तो अपने बच्चों के नाम अवश्य कर दें परंतु उनके नाम ट्रांसफर न करें। ऐसा करके वे अपने जीवन की संध्या में आने वाली अनेक परेशानियों से बच सकते हैं परंतु आमतौर पर वे मोहवश यह भूल कर बैठते हैं जिसका खमियाजा उन्हें अपने शेष जीवन में भुगतना पड़ता है।—विजय कुमार 


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