केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की ‘साफ-साफ बातें’

punjabkesari.in Tuesday, Jan 29, 2019 - 02:59 AM (IST)

अपनी स्पष्टवादिता के लिए प्रसिद्ध श्री नितिन गडकरी ने अपना राजनीतिक करियर ‘भारतीय जनता युवा मोर्चा’ और ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद’ से शुरू किया। वह 1995 से 1999 तक महाराष्ट्र सरकार में लोक निर्माण मंत्री रहे। इस दौरान उन्होंने बड़ी संख्या में राज्य में सड़कों, राजमार्गों और फ्लाई ओवरों का जाल बिछाने के अलावा मुम्बई-पुणे एक्सप्रैस वे का निर्माण करवाया और अपने मंत्रालय को नीचे से ऊपर तक नया रूप दिया। 

वह महाराष्ट्र भाजपा के अध्यक्ष के अलावा 1 जनवरी, 2010 से 22 जनवरी, 2013 तक भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे और वर्तमान में केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग, पोत परिवहन और जलसंसाधन तथा नदी विकास मंत्री के रूप में सराहनीय कार्य कर रहे हैं। श्री नितिन गडकरी पिछले कुछ समय से अपने साक्षात्कारों में कुछ बातों की स्वीकारोक्ति करने के साथ-साथ कुछ रचनात्मक सुझाव देते आ रहे हैं जो सभी दलों के नेताओं पर लागू होते हैं। इनमें से कुछ निम्र में दर्ज हैं : 

05 अगस्त, 2018 को श्री गडकरी ने कहा, ‘‘आरक्षण रोजगार देने की गारंटी नहीं है क्योंकि नौकरियां कम हो रही हैं...सरकारी भर्ती रुकी हुई है।’’ 10 अक्तूबर को श्री गडकरी ने स्वीकार किया, ‘‘हम इस बात से पूर्णत: आश्वस्त थे कि हम कभी सत्ता में नहीं आएंगे। इसलिए हमें बड़े-बड़े वादे करने की सलाह दी गई थी। अब जब हम सत्ता में हैं तो जनता हमें वादों की याद दिला रही है। हालांकि अब हम हंस कर आगे बढ़ जाते हैं।’’ 24 दिसम्बर को उन्होंने कहा, ‘‘जीत के कई बाप होते हैं लेकिन हार अनाथ होती है। संस्था के प्रति जवाबदेही साबित करने के लिए नेतृत्व को हार और विफलताओं की भी जिम्मेदारी लेनी चाहिए।’’ ‘‘सफलता का श्रेय लेने के लिए लोगों में होड़ रहती है लेकिन विफलता को कोई स्वीकार नहीं करना चाहता। सब दूसरे की ओर उंगली दिखाने लगते हैं।’’ 

25 दिसम्बर को श्री गडकरी ने सुझाव दिया, ‘‘सिस्टम को सुधारने के लिए दूसरों की बजाय पहले स्वयं को सुधारना चाहिए।’’ इसके लिए उन्होंने देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के भाषण का उदाहरण दिया। घमंडी नेताओं पर तंज कसते हुए वह बोले, ‘‘लोगों को साथ लेकर चलना चाहिए अगर आपके साथ लोगों का समर्थन नहीं है तो आपके अच्छे या प्रभावशाली होने का कोई मतलब नहीं है।’’ 04 जनवरी, 2019 को उन्होंने कहा, ‘‘इस समय देश को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है उनमें बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है। उपलब्ध रोजगार एवं बेरोजगारों की संख्या में अंतर होने के कारण हर कोई सरकारी नौकरी नहीं प्राप्त कर सकता।’’ 

07 जनवरी को श्री गडकरी ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की इन शब्दों में प्रशंसा की, ‘‘उन्हें अपनी क्षमता साबित करने के लिए किसी तरह के आरक्षण की आवश्यकता नहीं पड़ी और उन्होंने कांग्रेस के अपने समय के पुरुष नेताओं से बेहतर काम किया।’’ उल्लेखनीय है कि भाजपा एमरजैंसी लगाने के लिए इंदिरा गांधी की आलोचना करती रही है। 13 जनवरी को श्री गडकरी ने कहा, ‘‘नेताओं को अन्य क्षेत्रों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। लोगों को अपने-अपने क्षेत्रों के मामलों को स्वयं निपटाना चाहिए।’’ श्री गडकरी ने यह बात यवतमाल में मराठी सम्मेलन के आयोजकों द्वारा लेखिका नयन तारा सहगल को सम्मेलन में भाग लेने का निमंत्रण देने के बाद ‘मनसे’ के विरोध पर निमंत्रण वापस ले लेने पर टिप्पणी करते हुए कही। 

और अब 27 जनवरी को मुम्बई के एक समारोह में श्री गडकरी ने नेताओं द्वारा लोगों को सब्जबाग दिखाने के रुझान पर टिप्पणी करते हुए कहा ‘‘कोई भी सत्ता आंखें निकाल सकती है पर दिल के अंदर छिपे हुए सपनों को समाप्त नहीं कर सकती।’’ ‘‘सपने दिखाने वाले नेता लोगों को अच्छे लगते हैं पर दिखाए गए सपने जब पूरे नहीं होते तो जनता उनकी पिटाई भी करती है। इसलिए सपने वही दिखाओ जो पूरे हो सकें।’’ अपने उक्त बयानों से श्री गडकरी ने जहां अपने वैचारिक खुलेपन का संकेत दिया है, वहीं केवल अपनी पार्टी को ही नहीं बल्कि सभी राजनीतिक दलों को आइना दिखाया है जिसका संज्ञान लेकर सभी राजनीतिक दलों को इन बातों पर गंभीरतापूर्वक मनन करना चाहिए ताकि उनके भीतर जो त्रुटियां हैं उन्हें दूर करके वे देश और समाज की बेहतर ढंग से सेवा कर सकें।—विजय कुमार   


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