शताब्दी जैसी महत्वपूर्ण रेलगाड़ियां भी लेट चलने से रेलवे की छवि को लग रहा आघात

punjabkesari.in Tuesday, Dec 03, 2024 - 05:21 AM (IST)

विभाजन के बाद फ्रंटियर मेल जालंधर से दिल्ली के लिए रात के 10 बजे चलती थी और सुबह 6 बजे यात्रियों को दिल्ली पहुंचा देती थी। व्यवसायी तथा अन्य यात्री इस गाड़ी में यात्रा करने को अधिमान देते थे। बाद में फ्रंटियर मेल के स्थान पर शताब्दी एक्सप्रैस आ गई। इस ट्रेन की विशेषता यह है कि यह समय पर चलती तथा समय पर पहुंचती है। एक शताब्दी एक्सप्रेस गाड़ी सुबह 5.58 बजे जालंधर से चलकर कर दोपहर 11.02 बजे दिल्ली पहुंचती है। हाई प्रोफाइल ट्रेन होने के कारण इसमें सामान्य यात्रियों के अलावा महत्वपूर्ण लोग व लुधियाना तथा पंजाब के  शहरों से बड़ी संख्या में कारोबारी दिल्ली जाते हैं और खरीदारी आदि के अलावा अन्य काम करके उसी दिन शाम को साढ़े चार बजे दिल्ली से चलने वाली इसी गाड़ी से रात को वापस लौट आते हैं। 

एक अन्य शताब्दी एक्सप्रैस शाम को 5.55 बजे जालंधर से चल कर 10.50 बजे रात को दिल्ली पहुंचती है। दिल्ली जाने और वहां से आने के लिए मैं इसी गाड़ी को अधिमान देता हूं। एक दिसम्बर को मैं दफ्तर के कार्य से 2 दिनों के लिए जालंधर से शताब्दी ट्रेन द्वारा दिल्ली के लिए रवाना हुआ। स्टेशन पहुंचने पर मुझे इसके 40 मिनट लेट होने का पता चला क्योंकि सुबह के समय भी यह अमृतसर लेट पहुंची थी। हालांकि जालंधर स्टेशन पर तो इसे 40 मिनट लेट दिखाया जा रहा था परंतु अन्य स्टेशनों तथा मोबाइल ऐप पर इसे सही टाइम पर ही बताया जा रहा था जिसका कारण रेलवे द्वारा मोबाइल पर अपनी ऐप के साफ्टवेयर में गड़बड़ होने के कारण उसका अपडेट न होना बताया गया। जालंधर से चल कर फगवाड़ा में इसका 2 मिनट का ठहराव होने की घोषणा की गई थी परंतु 2 मिनट की बजाय यहां गाड़ी को लगभग 15 मिनट रोके रखा गया। इस प्रकार गाड़ी और लेट हो गई। 

जब दिल्ली पहुंचने पर यह अनाऊंसमैंट की गई कि ‘‘नई दिल्ली स्टेशन आ गया है और हम आशा करते हैं कि सब यात्रियों ने यात्रा का आनंद लिया होगा।’’  तो इसे सुनकर यात्री हंसने लगे क्योंकि गाड़ी एक घंंटा लेट होने के कारण सब लोगों को काफी परेेशानी का सामना करना पड़ा था। गाड़ी लेट होने के कारण हम रात के लगभग 12 बजे नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचे जहां से हमें घर पहुंचने में लगभग 40 मिनट लगते थे लेकिन रास्ता बिल्कुल साफ और कोई धुंध नहीं होने के कारण हम कुछ क्षण पहले ही घर पहुंच गए। बहरहाल, हालांकि भारतीय रेल एशिया का दूसरा सबसे बड़ा रेल नैटवर्क है। इस लिहाज से इसकी परिचालन व्यवस्था बढिय़ा होनी चाहिए परंतु कई खामियों की शिकार होने के कारण भारतीय रेलों का परिचालन संतोषजनक नहीं है। लगातार हो रही छिटपुट दुर्घटनाएं और रेल गाडिय़ों की लेट-लतीफी इशारा कर रही है कि भारतीय रेलों में सब ठीक नहीं है। अब तो रेलगाडिय़ों का लेट चलना एक आम बात हो गई है। शताब्दी जैसी महत्वपूर्ण गाडिय़ां भी इसका अपवाद नहीं रहीं, जिससे रेलवे की प्रतिष्ठïा को भी आघात लग रहा है। 

गत वर्ष सूचना के अधिकार (आर.टी.आई.) के अंतर्गत पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में भारतीय रेलवे ने बताया था कि वर्ष 2022-23 में लगभग 17 प्रतिशत यात्री रेलगाडिय़ां अपने निर्धारित समय से लेट चल रही थीं जिस कारण 1.10 करोड़ मिनट नष्ट हुए। अत: रेल मंत्री को यह यकीनी बनाना चाहिए कि महत्वपूर्ण गाडिय़ां लेट न हों। इसके लिए भारतीय रेलों के कार्यकलाप और रख-रखाव में तुरंत बहुआयामी सुधार लाने की जरूरत है। इसमें रेल विभाग में स्टाफ की कमी दूर करना, जरूरी तकनीकी सुधार लागू करना और रख-रखाव में त्रुटियों को दूर करने के अलावा असंतोषजनक रेल सेवाओं के लिए जिम्मेदार पाए जाने वाले स्टाफ के विरुद्ध उचित कार्रवाई करना शामिल है।—विजय कुमार 


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