राजनीतिक धरातल पर भारत-चीन में कुछ हलचल

punjabkesari.in Monday, Jul 31, 2017 - 12:24 AM (IST)

पिछले 6 सप्ताह के घटनाक्रम को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि पूर्वी हिमालय में उच्चतम पठार पर त्रिसंगम पर कुछ भी नहीं बदला है जहां विश्व की 2 सबसे बड़ी सेनाएं एक-दूसरे के सामने उस स्थान पर अलर्ट पर खड़ी हैं जिसका मालिक एक तीसरा देश, भूटान है लेकिन जहां तक राजनीतिक चालों का संबंध है, जमीनी तौर पर बहुत कुछ बदल गया है। 

जहां शी अगस्त में राजनीतिक स्तर पर बड़ा फेरबदल करना चाहते हैं उसी समय भारत से युद्ध नहीं चाहते परन्तु चीनी मीडिया जैसे कि ‘ग्लोबल टाइम्स’ युद्ध के विचार को त्यागना नहीं चाहता। एक चीनी समाचार पत्र ने हाल ही में भारत को एक मुंह तोड़ जवाब देने की बात कही अर्थात एक त्वरित निर्णायक युद्ध जिसमें अमरीका द्वारा कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करने से पूर्व ही चीन अपनी विजय दर्ज कर सके। यह स्थिति अमरीका द्वारा यह कहने के बाद बनी है कि युद्ध की स्थिति में वे भारत को सैन्य समर्थन और शस्त्रास्त्र की सहायता उपलब्ध करेंगे। इसके अलावा इंगलैंड और इसराईल ने भी चीन के साथ युद्ध की स्थिति में भारत को शस्त्रों की सहायता देने का वायदा किया है। 

अधिकारी महसूस करते हैं कि चीन इस क्षेत्र में अपनी शक्ति स्थापित करने के लिए भारत को एक उदाहरण के रूप में पेश करना चाहता है। ताईवान, वियतनाम, दक्षिण कोरिया, जापान आदि देश न सिर्फ दक्षिण चीन सागर में चीन के दावों का विरोध कर रहे हैं बल्कि एशिया में राजनीतिक क्षेत्रों में भी इसका विरोध कर रहे हैं। इस परिप्रेक्ष्य में सब कुछ भारत के पक्ष में दिखाई देता है और इन हालात में उससे निजी विरोध रखने वाली शक्तियों को सबक सिखाने के लिए चीन के लिए भारत पर विजय प्राप्त करना जरूरी है। 

यही कारण है कि पहली अगस्त को चीनी सेना की स्थापना के 90वें वर्ष के समारोहों के अवसर पर चीन की 14 दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सेना खेल उत्सव अथवा सैन्य ओलिम्पिक्स की शुरूआत करने की योजना है। इस आयोजन में 11 देशों के प्रतियोगी 28 प्रतिस्पर्धाओं में भाग लेंगे जिनमें इंफैंट्री वाहनों की लड़ाई, वायु प्रतिरक्षा प्रक्षेपास्त्रों, न्यूक्लीयर जैविकीय जासूसी, आकाशी हमले आदि शामिल हैं। दिलचस्प बात यह है कि दक्षिण चीन सागर में चीन के साथ संयुक्त जल अभ्यासों में भाग लेने के बाद रूस भी इन खेलों में भाग ले रहा है। इन देशों के बीच नई-नई बनी दोस्ती, व्यापार के अन्य क्षेत्रों में भी आगे बढ़ रही है। हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि सोवियत संघ के रूप में रूस, अमरीका की सहायता से चीन के परमाणु कार्यक्रम को ध्वस्त करने के लिए तैयार था परंतु चीनी कूटनयिक पग अब एक दूसरा ही पहलू दर्शा रहे हैं। 

लंदन में चीनी सेना की 90वीं वर्षगांठ के सिलसिले में चीन के राजदूत ल्यू सिया ओमिंग ने कहा कि चीन विश्व में शांति की स्थापना के लिए सेना तैयार करना चाहता है। इसके अलावा बीजिंग में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने भारतीय पत्रिकाओं में प्रकाशित समाचारों की यह कहते हुए उपेक्षा कर दी कि ये भारत सरकार के विचारों की अभिव्यक्ति नहीं करते। दूसरी ओर भारत नपे-तुले ढंग से इस समस्या से निपट रहा है और इसकी प्रतिक्रिया अत्यंत संयत रही है। श्री अजीत डोभाल की बीजिंग यात्रा और ब्रिक्स सम्मेलन की लाइनों पर बातचीत किसी भी प्रकार के उन्मादपूर्ण विचार से दूर कूटनयिक दृष्टि से प्रभावशाली रही। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज द्वारा भारतीय परियोजनाओं में बोली देने से चीनी कम्पनियों को प्रतिबंधित करने संबंधी प्रतिक्रिया एक संवेदनशील जवाब थी। भारत को 3 बातें ध्यान में रखने की आवश्यकता है:

1. जहां चीन ने भारत के साथ वार्तालाप की शुरूआत की है इसके साथ ही यह भूटान के अधिकारियों के साथ भी बातचीत कर रहा है तथा उसका कहना है कि भूटान एक बौद्ध देश होने के नाते चीनी संस्कृति के अधिक निकट है और इसकी विदेश नीति अनिवार्य रूप से भारतीय विदेश नीति से स्वतंत्र होनी चाहिए जिसके लिए उसे चीनी संरक्षण का आश्वासन दिया गया। 

2. चीन ने लगभग 10 हाइड्रो प्लांट और 9 आर्थिक ‘सेज’ पाकिस्तान में कायम किए हैं जिससे पाकिस्तान की अर्थ व्यवस्था पर इसकी पकड़ मजबूत हो गई है और यह अनेक क्षेत्रों में उसे सहायता दे रहा है। 

3. युद्ध की स्थिति में भारत को अकेले ही चीन के साथ मुकाबला करना होगा। इन परिस्थितियों में भारतीय सेना में शस्त्रास्त्र, भोजन और परिवहन संबंधी सभी कमियां तथा त्रुटियां दूर करने की आवश्यकता है। 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News